नये जोड़े की पलंग-तोड़ सुहाग-रात

हेलो दोस्तो, मैं हू स्वरना. आप सब ने आज तक मेरी सारी स्टोरीस को बहुत प्यार दिया है, और बहुत अप्रीशियेट किया है. इसलिए बस आप सब के प्यार के लिए, इस लॉक्कडोवन् वाले माहौल में एक नयी स्टोरी स्टार्ट कर रही हू. ये स्टोरी आप सब को सेक्षुयली सॅटिस्फाइ करने और मज़ा देने के लिए लिख रही हू.

इस स्टोरी को पढ़ कर हर लड़के के लंड का पानी निकल आएगा, और लड़कियो की छूट गीली हो कर रस्स ज़रूर निकल जाएगा. आज जो कहानी मैं आप सभी को बताने जेया रही हू, वो एक इमॅजिनरी कहानी है, और उसके कॅरेक्टर्स भी बिल्कुल इमॅजिनरी है.

आशा करती हू, की आप सभी स्टोरी पढ़ कर मज़े करेंगे और अपने लंड और छूट का पानी निकाल कर संतुष्ट हो जाएँगे. या अपने पार्ट्नर के साथ ज़रूर चुदाई करेंगे. अब स्टोरी शुरू करती हू.

ये कहानी एक साल पहले की है, जब डिसेंबर के महीने में मयंक और कविता की शादी हुई थी. इसलिए अब आयेज की कहानी आप सभी मयंक की ज़ुबानी पढ़िएगा.

डिसेंबर के महीने में बहुत ठंड होती है. लेकिन मैं तो बस उस दिन शादी की पहली रात, मतलब सुहाग-रात के बारे में सोच-सोच कर मॅन ही मांन में बहुत खुश हो रहा था. क्यूकी ये मेरी पहली चुदाई थी, और इसके पहले मैने बस चुदाई फोटोस और वीडियोस में ही देखी थी.

सुहाग-रात के नाम से मानो शादी की सारी थकान भी डोर हो गयी थी. ज़्यादातर मेहमान तो शादी की शाम को ही निकल चुके थे. लेकिन कुछ मेहमान थे जो अभी भी रुके हुए थे, और वो सभी बाहर के हॉल में सो रहे थे.

हमारी सुहाग-रात के लिए मेरा अंदर वाला रूम डेकरेट किया हुआ था. मेरा लंड ये सब सोच कर ही पुर जोश में था, जो पुर 7 इंच का होके खड़ा था. लंड बैठने का नाम ही नही ले रहा था. वो रात मेरे और कविता दोनो के लिए यादगार थी, क्यूकी उस रात हम दोनो ही पहली बार सेक्स करने वाले थे.

जब सारे मेहमान सो गये थे, तब हम दोनो भी अपने रूम में सोने आ गये. हम दोनो ऐसे ही बैठ कर बाते कर रहे थे, और तभी मैने मौका देख कर कविता को अपनी बाहो में भर लिया और उसको किस भी कर लिया.
हम शादी के पहले बहुत बार मिले ज़रूर थे, लेकिन तब हम सिर्फ़ हग करते थे, और एक-दूसरे को किस करते थे.
इसलिए हमे किस का अनुभव तो पहले भी हो गया था.

उस रात भी हम एक-दूसरे को बहुत टाइम तक चूमते रहे, और मैने भी उसके होंठो को अपने होंठो के बीच दबा लिया. फिर किस करते-करते मैं कविता के ज्यूयलरी और कपड़े उतारने लग गया. उसके बाद मैने उसका ब्लाउस भी उतार दिया और खुद के भी कपड़े निकाल दिए. अब मैं सिर्फ़ अंडरवेर में आ गया था.

अब कविता सिर्फ़ ब्रा पनटी में थी, और मैं भी सिर्फ़ अंडरवेर में था. ठंड थी, इसलिए हम दोनो ऐसे ही ब्लंकेट के अंदर चले गये, और एक-दूसरे से लिपट कर लेट गये. फिर हम कड्ड्ल करते-करते शरीर को गरम करने लगे. ऐसे ही करते-करते जब हम दोनो गरम हो गये, तो मैने अपना अंडरवेर और उसकी ब्रा-पनटी सब उतार कर फेंक दिए.

उसके बाद हम दोनो 69 की पोज़िशन में आ गये, और एक-दूसरे के गुप्त-अंगो को चूसने-चाटने लगे. मुझे कविता की चिकनी छूट चाटने में बहुत मज़ा आ रहा था. ये ही मज़ा लेने के लिए मैने कविता को शादी की एक रात पहले कह दिया था, की वो छूट की शेविंग कर ले. और मैने खुद भी लंड को और वाहा की झांतो की आचे से सफाई कर दी थी.

जब कविता अब मेरा लंड चूस रही थी तो मुझे एक शरारत सूझी, और मैने ज़ोर से अपने लंड को धक्का दिया और उसके मूह में घुसेड दिया. मेरा लंड उसके गले में जेया कर फ़ासस गया, और वो वही बेड पे उछालने लगी और तड़पने लगी. अब हमारी इस चुसाई को चलते हुए बहुत देर हो गयी थी, और हम दोनो बहुत गरम भी हो गये थे. इसलिए अब मैने सोचा की यही सही वक़्त था चुदाई शुरू करने का.

मैने सबसे पहले अपने फ्रेंड्स से मिला हुआ गिफ्ट जो की कॉनडम्स थे, उसको खोला और अपने खड़े लंड पे लगा लिया. फिर मैने कविता को बेड पे सीधा लिटाया, और मैं उसके उपर चढ़ गया. उसके बाद मैं धीरे-धीरे अपने तनने हुए लंड से उसकी छूट रगड़ने लगा, ताकि उसकी छूट पूरी तरह से गीली हो जाए, और उसको पहली चुदाई के टाइम उतना दर्द ना हो.

छूट को लंड से रगड़ने के साथ-साथ मैं उसकी चूचियो को भी दबाने लगा, और वो बस लेती हुई सिसकारिया लेने लगी. उसकी चूचिया भी काफ़ी कड़क हो गयी थी, और दबा-दबा कर चूस-चूस कर बहुत भारी भी हो गयी थी. चूचियो को ऐसे ही दबाते-दबाते मैं उसके निपल्स को खींच कर चूसने लगा, और वो ज़ोर-ज़ोर से सिसकारिया लेती रही.

फिर तभी धीरे से मैने अपना खड़ा हुआ लंड उसकी गीली छूट के मूह पे लगाया, और हल्के धक्के से सुपारे को अंदर डालने लगा. पर जैसे ही तोड़ा सा लंड अंदर घुसा, तो वो दर्द से झटपटाने लगी और बोली-

कविता: आआहहहा मॅर गयी आहह उउहफफफ्फ़ माआ मॅर गयी आहह दर्द हो रहा है बहुत.

कविता के चिल्लाने से मैने तुरंत ही अपना लंड फिरसे बाहर निकाल दिया, और हाथ से उसका मूह बंद कर दिया, ताकि उसकी चिल्लाने की आवाज़ बाहर के रूम में मेहमआनो तक नही जाए. अब तो मैं ये ही सोचने लगा था, की अब आयेज कविता की छूट चुदाई कैसे करू.

तब मुझे एक आइडिया आया और मैने उसकी टाँगो को पूरा फैला दिया, और उसकी छूट के पास चला गया. फिर मैने उसकी छूट में बहुत सारा थूक डाल दिया, और तोड़ा अपने लंड पे भी लगा के रग़ाद दिया, और फिर मैं फिरसे धीरे-धीरे लंड उसकी छूट में डालने लगा.

पर ये सब करने के बाद भी वो फिरसे चिल्लाने लगी, और सिसकारिया लेने लगी ज़ोर-ज़ोर से, और बोलने लगी-

कविता: ह.. अफ.. जानू मुझे बहुत दर्द हो रहा है आहह..

मयंक: कुछ नही होगा जान. अभी सारा दर्द चला जाएगा, बस तोड़ा सा सहें कर लो.

ये सब बोलते-बोलते मैं उसकी हिम्मत बढ़ता रहा, और साथ ही लंड को भी धीरे-धीरे अंदर घुसेधता गया, और वो आहह आहह करते-करते सिसकारिया लेती रही.

थोड़ी देर बाद मैने हिम्मत करके एक ही धक्का ज़ोर का मारा और पूरा लंड उसकी छूट में घुसेध दिया. मेरे ये करते ही कविता पूरी आवाज़ में आहह आ करके चिल्लाने लगी, और वही बेसूध हो गयी. और मैं भी लंड उसकी छूट में घुसेध कर उसके उपर लेट गया, और कविता को होश में लाने की कोशिश करने लगा.

मैं उससे ज़ोर से हिलाने लगा, पर उसको होश ही नही आ रहा था. मैं वाहा से उठ कर पानी भी नही ला सकता था, क्यूकी अगर मैं उठ जाता, तो मुश्किल से घुसा हुआ लंड फिरसे छूट से निकल जाता. इसलिए मैं वही लेते-लेते उसके गले पर और चूचियो पे काटने लगा. तब जेया कर उसको ज़रा होश आया, पर होश में आते ही वो फिरसे बोलने लगी-

कविता: दर्द हो रहा है एयेए.. आहह.. आहह..

मैने भी धक्के लगाना चालू ही रखा, जैसे मैं मूवीस में देखता था. और साथ ही मैं उसको किस भी करता रहा, ताकि उसकी सिसकारियो की आवाज़ बाहर नही जाए. ऐसे ही थोड़ी देर के बाद वो उउम्मह आअहह आहा हल्की आवाज़ो में करती रही, और मैं उसकी चुदाई करता रहा.

ऐसे ही करते-करते मैने लंड को उसकी छूट में अंदर रखते ही साइड बदल दी. और अब कविता मेरे उपर आ गयी थी. मैने तब अपनी गांद उठा-उठा कर उसकी चुदाई शुरू कर दी, और अब वो भी मज़े लेने लगी थी. क्यूकी उसका दर्द कम हो गया था, और अब वो बोलने लगी-

कविता: अहहा उउःम्म आअहह ऐसे ही करते रहो जानू आहह..

ऐसे ही चुदाई करते-करते हम दोनो को यकीन नही हुआ था, पर पुर 50 मिनिट तक मैने उसको छोड़ा. ये मेरे लिए भी बहुत शॉकिंग था, की इतनी देर से चुदाई चलने के बाद भी मैं अब तक झाड़ा क्यू नही था.

अब चुदाई करते-करते बहुत देर हो गयी थी. इसलिए मैने फिरसे उसको अपने नीचे ले लिया, और बहुत ज़ोर से छोड़ने लगा और कविता बस बोलती रही की-

कविता: आहह बहुत मज़ा आ रहा है आह. पहली चुदाई का पूरा मज़ा आ आहह.. रहा है. ऐसे ही करते रहो जानू.

उसके बाद मैने अपनी स्पीड बढ़ा दी, और साथ ही उसकी सिसकारियो की आवाज़े भी बढ़ती गयी. ये सब की वजह से मैं भी पुर जोश में आ गया था, तो मैने भी सिसकारियो की आवाज़ो और मेहमआनो की परवाह नही की.

मैने ये सोचा, की अगर मेहमान सुन भी लेंगे, तो सोचेंगे चलो अछा है खूब आचे से सुहाग-रात माना रहे है.

ये ही सोच कर मैं बिना किसी चिंता के कविता को छोड़ता गया, और ज़ोर-ज़ोर से धक्के लगाने लगा. फिर जब मैं झड़ने के करीब आने लगा, तो मैने अपने लंड की छोड़ने की स्पीड बहुत तेज़ कर दी. कविता इतनी स्पीड सहन नही कर पा रही थी. इसलिए वो दर्द में मेरी बॅक पे नाइल्स मारने लगी और सिसकारिया लेती रही.

ऐसे ही कुछ 5 मिनिट बाद मैं भी झाड़ गया. मेरा सारा माल कॉंडम में भर गया था. चुदाई के बाद हम दोनो कुछ देर ऐसे ही लेते रहे. फिर जब मेरा लंड सिकुड गया, तो मैने लंड बाहर निकाल लिया. तब मैने देखा, की कॉंडम पूरा लाल हो गया था कविता के खून से. जब मैने चुदाई करके उसकी छूट की सील तोड़ी थी, उस वजह से खून निकला था.

फिर हम दोनो उठे, और एक साथ बातरूम में चले गये. वाहा जेया कर हमने खुद को सॉफ किया, और फिर नंगे ही बाहर आ कर लेट गये. हम एक-दूसरे को लिपट कर सो गये. कुछ देर बाद हम वापस उठे और हमने फिरसे चुदाई की. ऐसे ही हमने सुहाग-रात की रात 4 बार चुदाई की, और अपनी रात बिताई.

ये स्टोरी यहा ख़तम होती है. आशा करती हू आप सभी को स्टोरी पसंद आई होगी. मुझसे बात करने के लिए मुझे मैल कीजिए.