होली के खेल खेल मे मौसी की चुदाई

ही फ्रेंड्स, मैं हू नीलम. एक-दूं नीलम की तरह तराशा हुआ मेरा कोमल नाज़ुक बदन है. 5’6″की मेरी हाइट है, और गोरा चमकदार रंग है. बड़ी-बड़ी कजरारी मस्ती भारी आँखें है मेरी, और गोरे मुलायम गाल है.

रसभरे गुलाबी होंठ है मेरे, और होंठो के पीच्चे मोतियो की लदी से मेरे दाँत है. जब मेरी मुस्कान निकलती है, तब दाँतों की खूबसूरती देखते ही बनती है. इस सारे सौंदर्या पर भारी पड़ती मेरी बड़ी-बड़ी मदभरी चूचिया कमाल की है.

उभरे हुए मेरे नितंभ क़यामत धाते है. मुझे मेरे मादक सौंदर्या का आभास तभी से हो रहा था, जब मैं जवानी की दहलीज़ पर कदम रख रही थी. मेरे बदन में ग़ज़ब का परिवर्तन आ रहा था. सीने पर मेरे मटर के दाने सी मेरी चूचिया अब टमाटर के आकर की हो गयी थी.

मेरी गांद गोल-गोल होके उभर रही थी. लोगो की निगाहे मुझ पर अटकने लगी थी. लोग मेरी टमाटर सी चूचियो को देख कर हाए-हाए करने लगे थे. दिन महीने साल गुज़रते गये, और मेरा रूप निखरता ही गया. लेकिन हाए रे मेरी किस्मत, इस सुंदर फूल सी काया का रस्स चूसने वाला कोई भँवरा नही था.

ऐसा भी नही है, की बिन भंवरे के मैं अनचुड़ी कुँवारी काली हू. मैने जवानी की दहलीज़ पर पैर रखे और जुगाड़ से छुड़वाना शुरू कर दिया. अब मैं कहानी पर आती हू.

बात 18 मार्च होली के दिन की है. होली की मस्ती में मेरा कामुक बदन वासना की आग में धू-धू करके जल रहा था. कही से भी मुझे चैन नही मिल रहा था. मैं लंड की प्यासी हुई पड़ी थी, और लंड छूट में लेने को तड़प रही थी.

मेरी छूट में ऐसी आग भड़की, जिससे बुझाने मेरे हाथ बरबस ही छूट पर फिरने लगे. मेरी आँखें शराबी हो चुकी थी. मुझे अपनी छूट में लंड चाहिए था. अब कभी मैं अपने हाथो से अपनी चूचियो को मसालती और सहलाती, तो कभी हाथ को छूट पर ले जाती.

फिर मैं छूट को सहलाती और दबाती. ठीक उसी वक़्त मेरी मेरी मूह बोली बेहन का बेटा राणा आया. राणा पुर 6′ का गबरू जवान था. वो हॅंडसम था, स्मार्ट था, और मज़बूत काड्द-काठी का बेहद आकर्षक च्चवि वाला जवान था.

फिर मैने राणा को बड़े ही प्यार से बिताया, पानी दिया और बोली-

मैं: मैं रेडी होके तुम्हारे साथ चलती हू.

इसी बीच राणा बोला: मौसी मैं तुम्हे रंग लगौ?

मैं हस्स कर बोली: हा क्यू नही.

सच काहु, तो राणा को देख कर मेरे अंदर कुछ-कुछ होने लगा था. फिर राणा मेरे बिल्कुल करीब आया, और बोला-

राणा: कहा लगौ?

मैं बोली: जहा तेरी मर्ज़ी.

ये बोल कर मैने मुस्कुरा दिया. फिर क्या था, राणा ने पल में अपने हाथ मेरी चूचियो पर रख दिए. मैं तो सन्न रह गयी. फिर दूसरे ही पल सोच के मॅन खुशी से भर गया, की चलो इतने सुंदर छ्होरे से छुड़वाने को मिलेगा. कहा मैं लंड के लिए तड़प रही थी, और यहा बिन बुलाए लंड मेरी छूट की सेवा के लिए दंद्वत सलामी दे रहा था.

मैने भी आयेज बढ़ कर राणा को अपने सीने से लगा लिया. मस्त चूचियो के नरम-नरम एहसास ने राणा के बदन में आग सी लगा दी. उसने मेरे ललाट को चूमा और गोरे नाज़ुक गालो को चूमने लगा. फिर उसने मेरे रस्स से भरे होंठो पर अपने होंठ लगा दिए.

अब वो होंठो के मादक रस्स का रस्स-पॅयन करने लगा. मेरे पुर बदन में सुरसुरी सी दौड़ गयी. मेरी चूचिया सख़्त होने लगी, और छूट मेरी कपकपाने लगी. मेरे हाथ अनायास ही राणा के लंड पर चले गये, जो उन्मुक्त घोड़े सा हिनहीना रहा था.

फिर मैने एक ही झटके में राणा की टाँगो से पंत को पूरा उतार दिया. लगभग 8″ लंबा और 4″ मोटा लॉडा मेरी आँखों के आयेज उठक-बैठक मार रहा था. मेरे होंठो को चूस्टे चाट-ते राणा मेरी चूचियो तक पहुँच गया था.

जैसे-जैसे राणा मेरी चूचियो को सहलाता और मरोदता, मैं मस्ती में सिसकती जाती. मुझे बहुत मज़ा आ रहा था. मेरी छूट से ताप-ताप पानी बहने लगा था. राणा मेरी टपकती छूट पर झपट पड़ा, और अपने मूह को लावनी बना कर छूट चाटने लगा.

अब वो मज़े से मेरी बर चाट रहा था. कभी-कभी वो जीभ को बर में घुसेध देता. बर में जीभ के जाते ही मैं उछाल पड़ती, और मेरे मूह से आ निकल जाती. मैं अब जल्द से जल्द उसका लॉडा अपनी बर में चाह रही थी.

फिर राणा ने मेरी गांद में हाथ दिया, और मुझे अपनी गोद में उठा लिया. उसने सीधा मुझे बेड पर चिट लिटाया, मेरी टाँगो को फैलाया, और एक टुक मेरी छूट को निहारने लगा. छूट महारानी के पूरण दर्शन के बाद उसने लॉड को बर पर सेट किया.

मेरी बर जो लॉडा लेने को तैयार बैठी थी, अपने मूह पर लॉड को आया देख कहने लगी-

छूट की आवाज़: आजा बेटा आजा, तुझे मैं जन्नत की सैर करा डू.

फिर राणा ने लॉडा मेरी बर में बेरेहमी से धकेल दिया. मेरी बर ने घाप से लॉड को अपने अंदर समा लिया. अब राणा गांद उछाल-उछाल कर मुझे छोड़ने लगा. मेरी बर भी कम नही थी. मेरी छूट राणा के लॉड के धक्को का जवाब उसको घपा-घाप अंदर लेकर दे रही थी.

राणा धक्के मारता और बोलता: ये ले मेरी रानी, ये ले.

ये बोलते-बोलते राणा ने अपना मूह फिरसे मेरे होंठो पर लगा दिया. राणा के हाथ मेरी चूचियो को मसल रहे थे. क्या नज़ारा था. बर में लोड्‍ा, चूची पर हाथ, होंठो पर होंठ, और ढाका-धक चुदाई.

मेरी बर में लबालब पानी भरा हुआ था. लॉड के हर धक्के से बर से फॅक-फॅक की आवाज़े आने लगी. लॉडा तूफ़ानी रफ़्तार से बर को छोड़े जेया रहा था. आधे घंटे की ताबाद-तोड़ चुदाई के बाद मेरी नास्स-नास्स ढीली हो गयी थी. लेकिन लॉडा था की रस्स उगलने का नाम ही नही ले रहा था.

उसका लॉडा लोहे की रोड की तरह बर को हुरे जेया रहा था, हुरे जेया रहा था. आख़िर-कार वो घड़ी आ गयी, जिसका मुझे इंतेज़ार था. राणा ने मेरे बदन पर शिकंजा कस्स लिया था.

आ आ आ की आवाज़ के साथ अकड़ते हुए, उसने अपना माल मेरी छूट में बरसा दिया. गरम-गरम झड़ने के एहसास ने मुझे स्वर्गिक सुख का एहसास करा दिया. मैं असीम सुख की कल्पना में खो गयी थी. राणा भी एक तरफ लूड़क गया था.

थोड़ी देर की शांति के बाद मैं तैयार होके राणा के साथ उसकी बिके पर उसके घर की तरफ चल दी. मैं अपनी दोनो चूचियो को राणा की पीठ पर डाले हुए थी. राणा मस्ती से गुनगुना रहा था, “फागुन आयो रे मस्ती च्चायो रे”.

फिर हम राणा के घर पहुच कर सब लोगो ने साथ खाना खाया. राणा के बाप ने भी अपने हाथो से मेरी चूचियो को रगड़ा. फागुन की मस्ती में मैं बोली-

मैं: दीदी को देखो जीजू, मुझे नही.

और मैने घर जाने की इजाज़त माँगी.

राणा मुझे छोड़ने मेरे घर आया और हम लोगो ने फिरसे छोड़ने छुड़वाने का खेल शुरू कर दिया. छुड़वा-छुड़वा कर मैं मस्त से पस्त हो गयी.

आज की कहानी यही तक मेरे दोस्तों. फागुन की मस्ती मेरी कहानी पढ़ कर चढ़ गयी हो, तो आप भी छुड़वा लेना मेरी सखियो, और छोड़ लेना मेरे दोस्तो. अब मुझे दीजिए इजाज़त थॅंक्स.