बेटे ने देखा मा और दादा का रोमॅन्स

हेलो दोस्तों, स्वागत है आपका इस न्यू कहानी में. अगर आपने अभी तक मेरी ओल्ड स्टोरीस नही पढ़ी है, तो जा कर पढ़ ले. चलिए ज़्यादा टाइम वेस्ट ना करते हुए स्टोरी पर आता हू.

आपको पता ही होगा की मेरा नाम है ऋतिक, और मेरी मा का नाम वंदना है. वंदना एक बहुत ही कातिलाना जिस्म की मालकिन है, और अगर सही से बतौ तो वो ना ज़्यादा पतली और ना ही ज़्यादा मोटी है. पर उसकी कमर ऐसी है की क्या ही बतौ. मॅन करता है की बस कमर पकड़ कर गांद मारते रहो उसकी.

जब से मैं मा को छोड़ना चाहता था. तब से मैं उनकी कमर का दीवाना हू, और तब से मैं बस उनकी कमर पकड़ कर उनको छोड़ना चाहता था जो की आयेज जेया कर मैने कर भी लिया. मा उस टाइम अराउंड 40 की थी, और तब तो वो और भी ज़्यादा कामुक थी.

उनको देख कर ऐसा लगता था की उनकी पूरी बॉडी से बस कामुकता तपाक रही हो. उनकी बॉडी शेप की बात करू तो उस टाइम उनकी गांद थोड़ी और बड़ी थी, बॉडी फूली हुई थी, और क्लेवगे भी अची ख़ासी दिखती रहते थी. क्यूंकी वो ब्रा नही पहनती थी.

इस स्टोरी के दूसरे कॅरक्टर है मेरे दादा जी, जिनका नाम रामशंकर है, और वो आर्मी से रिटाइर्ड है, और अक्सर वो गाओं ही रहते थे दादी और अपने भाइयों के साथ. 70-72 की आगे में भी वो एक सॉलिड बॉडी के मालिक थे, और वो हमारे साथ नही रहते, बल्कि वो गाओं में रहते थे. कभी-कभी हमारे यहा आते थे.

बात तब की है जब मैं मा से इन्सेस्ट था, और मैने उस टाइम 1स्ट्रीट एअर के एग्ज़ॅम दिए थे. हमारी गर्मी की छुट्टियाँ चल रही थी, और इसी बीच दादा जी कुछ दिन के लिए हमारे घर आने वाले थे, वो भी आज ही.

मैने भी मॅन में सोचा की कहा मैं यहा अकेले मा के मज़े लेने का सोच रहा था, और ट्राइ करता की उसे छोड़ साकु. पर अब एक हफ्ते तक कुछ भी नही कर पौँगा. मैं इन्ही सब सोच में पड़ा हुआ था, पर जब मेरा ध्यान मा की तरफ गया, तो देखा की मा के चेहरे पर थोड़ी खुशी थी.

मैं कुछ समझ नही पाया की ये खुशी किस चीज़ के लिए थी. थोड़ी देर बाद मा नहाने चली गयी, और मैं बातरूम के कीहोल के पास खड़ा हो गया. मा ने आज भी हर बार की तरह मेरी साइड अपनी पीठ की हुई थी, और मुझे उनकी पीठ के अलावा कुछ भी नही दिख रहा था.

मैने सोचा जब कुछ दिख ही नही रहा तो चलता हू यहा से. पर तभी मुझे कुछ चलने की आवाज़ आई. मुझे लगा बगल से कही आवाज़ आ रही होगी, पर फिर मुझे पता चला की ये आवाज़ बातरूम से आ रही थी. मुझे लगा की मा वाइब्रटर उसे कर रही थी, पर मा कुछ मोन या कुछ भी नही कर रही थी.

तोड़ा और ध्यान देने पर मुझे पता चला की ये आवाज़ रेज़र की थी, जिससे मा शायद अपनी झाँते सॉफ कर रही थी. थोड़ी देर बाद मा ने अपना एक हाथ उठाया, और फिर अपनी बगल के भी बाल सॉफ किए. तब मुझे यकीन हो गया की मा रेज़र से अपने बाल सॉफ कर रही थी.

मा ने अपने दोनो बगल के बाल सॉफ किए. तब तक मैने एक नज़र वाहा हॅंगर पर रखे कपड़ों पर डाली तो देखा की मा ने आज अपनी ब्रा और पनटी दोनो रखे थे.

मा घर में ब्रा पनटी पहनती नही थी, पर फिर भी मुझे लगा हो सकता था की ऐसे ही पहन रही हो. मा की ब्रा की बात करू तो वो पिंक कलर की हाफ ट्रॅन्स्परेंट और हाफ नेट वाली थी, और पनटी भी नेट वाली ब्लॅक कलर की थी.

इसके बाद मैं वाहा से हॅट गया, और अपने रूम में चला गया. आपको पता ही है की मेरा रूम उपर है, और मा का मेरे बगल में, बुत थोड़ी दूरी पर. थोड़ी देर बाद मा नहा कर अपने कमरे में गयी, और फिर हाफ अवर बाद बाहर आई. तब मैं हॉल में टीवी देख रहा था.

तब मा तैयार हो कर उधर से किचन में जाने लगी, तो मेरी नज़र मा पर पड़ी. मा ने एक ब्लॅक कलर की नेट वाली सारी पहन रखी थी, और साथ ही एक रेड कलर का ब्लाउस जो की सारी के अंदर से दिखाई दे रहा था, पर ब्लाउस आयेज से हुक वाला ना हो कर पीछे से रिब्बन वाला था.

मा ने आज पेटिकोट भी अपनी नाभि के नीचे बाँध रखा था. पर उनका पेटिकोट सारी में नही दिख रहा था. जब मा मेरे पास से गुज़री तो मैने सूँघा की उन्होने आज पर्फ्यूम भी उसे किया था, और जब मा ने मुझे पास किया तो मैने देखा की उनकी ब्लाउस पीछे से बिल्कुल ही पतली थी. उसमे से उनका ब्रा स्ट्रॅप भी विज़िबल था.

मा किचन में चली गयी, और फिर शाम को 4 बजे दादा जी ने फोन किया की मैं उनको लेने रेलवे स्टेशन आ जौ. मैं गया, दादा जी को लेकर आया, और मैने दादा जी को सोफे पर बिताया. फिर मा को आवाज़ दे कर मैं बिके की चाभी रखने अपने कमरे में चला गया उपर.

हमारा हॉल उपर से खुला था और मैने वही से ये देखने के लिए नीचे देखा की मा ने अब तक दादा जी को पानी दिया या नही. तो मैने देखा की मा नीचे झुक कर दादा जी के पैर चू रही थी, और उनका पल्लू नीचे गिरा हुआ था. उसको मा ने उठाया भी नही था, और दादा जी मा की नंगी पीठ को घूर रहे थे.

मुझे लगा चलो दादा जी भी ज़िंदगी के इस मोड़ पर मज़े ले रहे थे, तो तोड़ा ले लेने दो. और वैसे भी जब कोई और मा के मज़े लेता था, तो मुझे अछा लगता था की मा भी कितनो के लंड खड़ा करा देती है बिल्कुल किसी रांड़ की तरह.

इसके बाद मैने कीस रखी, और तेज़ी से नीचे आने लगा. ताकि दोनो डोर-डोर हो जाए. जब मैं नीचे आया, तो मा खड़ी थी, और दादा जी बैठे हुए थे. इसके बाद मा किचन में चली गयी छाई बनाने के लिए, और मैं भी इधर-उधर के कामो में लग गया.

शाम को हमने खाना खाया, और फिर मैं टीवी देखने लगा. मा किचन में चली गयी, और दादा जी नीचे के फ्लोर में बने एक रूम में. मैने कुछ देर टीवी देखा, और फिर जब मा उपर अपने कमरे में जाने लगी, तो मैं भी उनके पीछे लग गया और पीछे से उनकी गांद देखने लगा. मा गांद काफ़ी मतकाती हुई जेया रही थी.

कुछ दिन ऐसे ही गुज़र गये. एक दिन मैं कही बाहर गया हुआ था, और जब मैं वापस आके घर का गाते ओपन करके अंदर गया, तो मुझे नीचे कोई नही दिखा. मैं उपर अपने कमरे में गया, तो बगल में मा के कमरे से कुछ आवाज़ आ रही थी.

फिर मैं उनके कमरे के पास गया और कीहोल से देखा तो मा ब्लाउस पेटिकोट में बेड पर लेती थी, और उनका ब्लाउस खुला हुआ था. इसकी वजह से उनके मस्त बूब्स उपर की तरफ उठे हुए थे. दादा जी वही सोफे पर बैठे थे.

दादा जी: कितने दिन हो गये, तुझे आचे से छोड़े हुए.

मा: अब मैं क्या करू, ऋतिक हमेशा घर पर रहता है. मैं भी तो खुल कर नही चुड पाती हू

दादा जी: तो कुछ करो ना, की हम दोनो खुल कर प्यार कर सके.

मा: अछा, और अभी क्या किया है आपने?

दादा जी: इसको चुदाई थोड़ी ना कहते है. ये तो बस उपर-उपर से था जल्दी में.

मा: हा, तो क्या चाहते है आप? ऋतिक रहे, और मैं चिल्लाते हुए चुड़ू?

अब मा ने सारी पहन ली, और बेड से उठ गयी.

दादा जी: अर्रे कहा जेया रही है बहू? बैठ ना कुछ देर और.

मा: ऋतिक आता ही होगा, उससे पहले हम डोर हो जाए वही अछा रहेगा

दादा जी: अर्रे तो अभी टाइम है उसको. तू बैठ, कुछ देर और बात करते है.

मा उठी, और उन्होने रूम में रखा झाड़ू उठा लिया. दादा जी ने बस एक पाजामा पहना हुआ था. वो उठे, और मा के पीछे खड़े हो गये.

मा: हटिए, मुझे सॉफ कर लेने दीजिए.

दादा जी: हा तो करो ना, मैं कों सा रोक रहा हू.

मा: आप थोड़ी ना रोक रहे है.

दादा जी: तो?

मा: आपका लंड रोक रहा है.

इतना बोलने के बाद मा हासणे लगी, और दादा जी ने उन्हे मोड़ कर अपने से चिपका लिया.

दादा जी: मॅन तो कर रहा एक रौंद और हो जाए अभी.

मा: और अगर ऋतिक आ गया तो?

दादा जी: उसी बात की तो चिंता है.

मा: इसीलिए तो बोल रही जो मिल गया उसमे खुश रहो.

दादा जी: तू चीज़ ही ऐसी है की तुझे कोई कितना भी पा जाए, वो कभी संतूश नही होगा.

मा वापस से मूड कर झाड़ू लगाने लगी, और दादा जी उनसे बिल्कुल चिपक कर उन पर झुक गये, और अपने हाथ मा के ब्लाउस के अंदर डाल दिए, और मा वैसे ही झाड़ू लगाने लगी.

अब मैने सोचा की इन दोनो को अलग किया जाए तो मैं बाहर गया, और वाहा से मा को कॉल किया, की गाते क्यूँ लॉक किया है, ओपन करो. मा नीचे आई और उन्होने गाते को हॅंडल से खोल दिया.

मा: अर्रे लगता है मैने ही ग़लती से लॉक कर दिया था. कब से खड़ा था तू यहा?

मैं मा के झूठ पर हैरान था.

पर मैने बोला: कब से तो मैं चिल्ला रहा था, पर कोई था ही नही यहा.

फिर दादा जी टीवी वाले रूम से निकल कर आए. अब तक उन्होने अपना कुर्ता पहन लिया था.

दादा जी: अर्रे मैं टीवी देख रहा था, उसमे तेरी आवाज़ ही नही आई.

मैं दोनो के झूठ पर हैरान था की कैसे अभी दादा जी अपनी ही बहू के पीछे खड़े थे, और अभी कैसे दोनो अंजान बन रहे थे. और मा जो अभी कुछ देर पहले ब्लाउस खोल कर दादा जी के सामने लेती हुई थी, और शायद उससे पहले दोनो ने एक-दूसरे के शरीर को चूसा भी होगा. वही मा अब दादा जी के सामने पल्लू में थी, और अपनी बॉडी उनसे च्छूपा रही थी.

मैं सब कुछ जानते हुए भी अंजान बन रहा था, क्यूंकी अब मुझे उनकी चुदाई जो देखनी थी.

ये पार्ट यही रोकते है, उमीद करता हू आपको लास्ट स्टोरीस के जैसे ये भी पसंद आएगी. फीडबॅक और सजेशन्स के लिए थॅंक्स जिन्होने भी दिया है.