बड़े बेटे के बाद मां की छोटे बेटे से चुदाई की कहानी

अभिषेक आने वाला था, तो मैंने सोचा क्यों ना नहा कर फ्रेश हो जाऊँ। साफ़ सुथरी होकर फिर चुदाई की गन्दगी में कूदने में अच्छा सा लगता है। मैं नहा-धो कर आयी, वो पिंक वाली क्यूट सी बिकिनी पहनी, जो सिर्फ मेरे चूत को एक छोटे से कपड़े से ढक रही थी, और मेरी गांड की दरार पे एक डोरी सी थी।

मेरे दुदू भी बिल्कुल खुले हुए ही थे, और सिर्फ मेरे निप्पल ढके हुए थे। मैंने पिंक रंग की ही लिपस्टिक लगाई। मैंने जब खुद को कमरे के बड़े से आईने में देखा तो खुद को देख कर दंग रह गयी। मैं सच में किसी अश्लील चलचित्र की अभिनेत्री से कम नहीं लग रही थी। मैं बेहद हॉट लग रही थी।

मैं अब अपना ओवरकोट पहन कर इंतज़ार करने लगी। साढ़े दस बजे कमरे की घंटी बजी, मैंने दरवाज़ा खोला तो अभिषेक था। वो अंदर आगया। मैंने रूम लॉक कर दिया और वहीँ खड़े-खड़े अपने ओवरकोट को गिरा दिया। मैं अपने बेटे अभिषेक के सामने उसकी पसंद की डोरियों वाली बिकिनी में थी, और मुझे शर्म आ रही थी।

पता नहीं क्यों, औरतें किसी के सामने नंगी हो जाएँ, उससे चुदवा लें, पर जब वो तैयार हो और उसका प्रेमी उसकी खूबसूरती को देख कायल हो जाए, फिर वो औरत पूरे कपड़े पहने हुए भी शर्मा जायेगी।

उसने मुझे अपनी बाहों में लिया और चूम कर कहा, “माँ, ये बिकिनी मत उतारना।”

और मेरा हाथ पकड़ कर मुझे बिस्तर पर ले आया।

जब वो मेरा हाथ पकड़ मुझे बिस्तर की ओर ला रहा था, मुझे एक नयी-नवेली दुल्हन जैसा महसूस हुआ जिसकी शायद आज चूत की सील टूटने वाली हो।

उसने मुझे कुतिया की तरह सेट किया, मेरे गांड की दरार से बिकिनी की डोरी को उठा कर गांड की चुदाई करने लगा, और मेरे बालों को हलके से पकड़ कर धक्के देने लगा। मुझे पता था वो गोवा की दवाई खायेगा तो अभी एक घंटे मेरी बिना रुके ताबड़तोड़ ठुकाई होगी।

हम एक दूसरे के आगोश में थे कि अचानक साढ़े ग्यारह बजे कमरे की घंटी बजी। हम दोनों अचानक इस दस्तक से बिलकुल डर गए। मैं अभिषेक को देखने लगी, और वो मुझे। जितनी देर में हम कुछ सोच पाते, उतनी देर में फिर से घंटी बजी। मैंने अभिषेक को इशारा करते हुए बाथरूम में जाकर छुपने को कहा।

फिर मैं जल्दी से उठी, अपनी ओवरकोट पहन कर गेट के पास पहुंचती, इतनी देर में तीसरी बार घंटी बजी। मैं हड़बड़ा कर दरवाज़ा खोली तो सामने अखिल था।

अखिल को देखते ही मेरे होश उड़ गए, “बेटु, तू?”, ऐसा महसूस हो रहा था मानो काटो तो खून नहीं।

अखिल बिना कुछ पूछे कमरे के अंदर घुस गया और मैं उसे रोक भी नहीं पाती, क्या कहती? बेटा था मेरा। माँ के पास कभी भी आ सकता है।

“क्या हुआ माँ? तेरे चेहरे को क्या हुआ? इतनी बिखरी हुयी क्यों हो?” उसने मेरे चेहरे के तरफ इशारा करते हुए पूछा।

अभिषेक के होंठों को चूसने की वजह से मेरी लिपस्टिक पूरी तरीके से लसरी हुई थी और बाल भी पूरे तरीके से बिखरे हुए थे। “नहीं बेटा, इतनी थकान हो गयी थी कि आते ही सो गयी। मेकअप उतारने की हिम्मत नहीं हुयी।”, मैंने जल्दी से अपने होश संभालते हुए कहा।

अखिल कमरे के अंदर आकर सीधा मेरे बिस्तर पर बैठ गया जहाँ चंद मिनट पहले अखिल का बड़ा भाई मेरी गांड बजा रहा था। मैं असमंजस्य में थी। कुछ समझ नहीं आ रहा था। थोड़ा डर भी था क्यूंकि अभिषेक बाथरूम में छुपा हुआ था, हैरान भी थी और परेशान भी।

मैं उसके सामने सोफे पर बैठते हुए पूछी, “क्या हुआ मेरे बेटु को? क्या हुआ मेरे बर्थडे बॉय को? नींद नहीं आ रही क्या?”

इतने में वो बोल पड़ा, “आपने तो मुझे कोई भी गिफ्ट नहीं दिया, माँ?”

एक तो मैं पहले ही घबराई हुयी थी और ऊपर से ऐसी परिस्थिति में ऐसे अजीब सवाल, “अरे, बेटु। तुझे बाइक गिफ्ट दिया तो।”

“वो तो भैया ने दिया, आपने क्या दिया मुझे?” उसने बड़े गंभीर आवाज़ में पूछा।

“अच्छा बोल, क्या चाहिए तुझे?” मैंने उससे सवाल किया।

इतने में वो उठा और मेरे पास आकर, मेरे पैरो के तले बैठ कर मेरे गोद में अपना सर रख दिया और चुप-चाप बैठा रहा। अब मैं समझ रही थी की कुछ तो अखिल के मन में चल रहा था, क्यूंकि आज सुबह से ही मैं उसका बदला बदला सा व्यवहार देख रही थी।

मेरी घबराहट अब अखिल के लिए ज़्यादा हो गयी, चिंता ज़ाहिर कर मैंने उससे पूछा, “क्या हुआ है तुझे, बेटा? मैं आज सुबह से देख रही हूँ, तू कुछ उखड़ा-उखड़ा सा है। आज तेरा जन्मदिन है, मेरे बेटु, पर तू खुश नहीं लग रहा। क्या हुआ? मुझे बता।”

वो कुछ नहीं बोला, बिलकुल चुप रहा।

अब मेरी चिंता बढ़ने लगी। अखिल का मौन, अभिषेक भी बाथरूम में। पर मैं अखिल के माथे को सेहला रही थी।

मैंने थोड़ी देर बाद फिर से पूछा, “क्या हुआ है मेरे बेटु को?”

बिलकुल धीमी आवाज़ में उसने कहा, “माँ, मुझे पता है आपने कुछ सालो पहले बच्चा गिराया था। ”

ये सुन के मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई। मेरा पूरा बदन कांपने लगा पर मैं कुछ बोल नहीं पायी, बिलकुल सुन्न हो गयी, बोलती भी क्या?

“मुझे पता है आप भैया से प्यार करती हैं। पिछले साल मैं अपने कोचिंग से आप दोनों से मिलने जब हमारे ऑफिस गया तो देखा गाड़ी लगी हुयी थी पर गेट लॉक था। मैंने आपको कॉल किया पर आपने कहा की आप दोनों ऑफिस में नहीं थे, पर मुझे आप दोनों की आवाज़ आ रही थी।

मुझे कुछ अजीब लगा। जब मैंने बिल्डिंग के पीछे जाकर झाँकने की कोशिश की, तो कुछ दिखा नहीं पर आवाज़ साफ़ आ रही थी की भैया आपको……” ये कहते हुए कुछ सेकंड के लिए चुप हो गया। मैं बस हैरान होकर सुन रही थी।

वो फिर बोल पड़ा, “ये सिर्फ एक दिन की बात नहीं, मैंने कई दिन आप दोनों का यही सिलसिला देखा। मुझे अजीब लगता, गुस्सा भी आता पर किसी को कुछ कह नहीं पाता। जब आपने बच्चा गिराया था, मैंने आप दोनों उस विषय पर बात करते हुए सुन लिया था। मैंने आपके कमरे में आपके नसबंदी की भी रसीद देखी जिसमे भैया के दस्तखत थे।

कल जब आप बिकिनी खरीद रहीं थी, मैं पीछे ही था और आप दोनों के आँखों के इशारों को समझ रहा था। मुझे पता है भैया ने ये विला क्यों बुक किया है और इस कमरे की खासियत भी जानता हूँ। मुझे पता है भैया रात में आपके पास आते हैं और…. ”

ये कह कर वो चुप हो गया, उठा और बाथरूम की तरफ बढ़ गया। अब तक मेरी धड़कन से मेरा दिल फटने को था।

“भैया अभी बाथरूम में है।” और उसने बाथरूम के गेट को खटखटाया। डर से मेरी रूह काँप गयी।

अभिषेक ने अंदर से गेट खोला। अखिल को देख कर वो थोड़ा सा सहम गया, पर बाहर निकल कर आया और सामने कुर्सी पर बैठ गया।

अखिल फिर बोल पड़ा, “माँ, मैं भले ही भैया से छोटा हूँ। पर मैंने आपको बचपन से देखा है। आप दोनों को ऐसा देख कर मुझे पहले बहुत घिन्न होती और मैं उसे बयाँ नहीं करता। पर मुझे एक साल लगा ये समझने को कि पापा के जाने के बाद आप बिखर गयी थी। हमें दिखाती नहीं थी पर टूट गयी थी।

लेकिन जबसे भैया और आपका साथ बना, आप खुश रहने लगीं। और हम सब के लिए आपकी ख़ुशी सबसे ज़्यादा ज़रूरी है। आपने हमारे लिए सब कुछ किया है। और भैया भी सिर्फ आपके लिए नहीं, हमारे लिए भी सोचते हैं। जब से भैया ने बिज़नेस को संभाला है, उन्होंने हमें पापा की कमी नहीं महसूस होने दी।

पापा की जगह कोई नहीं ले सकता पर भैया हमारे भाई से ज़्यादा हमारे संरक्षक के रूप में है। आप दोनों एक दूसरे के साथ खुश रहते हैं और आप दोनों की ख़ुशी समझने में मुझे एक साल लगा।”

मैं और अभिषेक अपनी नज़रों को नीचे करके बस चुप-चाप सुन रहे थे।

“माँ, मैं भी आपको प्यार करना चाहता हूँ, जैसा भैया करते हैं। मैं भी आपका ख्याल रखना चाहता हूँ भैया की तरह। मैं भी…… ” ये कहते हुए वो रुक गया।

इसी बीच मैंने अभिषेक को देखा, हम दोनों ने आँखों ही आँखों में बात कर ली और समझ लिया कि अखिल क्या चाहता था और अभिषेक ने आँखों से ही बयाँ कर दिया की अखिल भी अपनी माँ के प्यार का हकदार है।

कुछ देर मौन रहने के बाद अखिल ने कहा, “माँ, मैं ज़बरदस्ती नहीं करना चाहता। मुझे कोई हवस नहीं है आपके प्रति। मैं आप दोनों से प्यार करता हूँ, आप दोनों की इज़्ज़त करता हूँ। अगर आप नहीं चाहेंगी तो मैं चला जाऊंगा यहाँ से, पर मैं चाहता हूँ कि मैं भी आपको वो सारी खुशियां दूँ जो भैया देते हैं।”

इतनी देर से वो मेरी गोद में ही सर रख कर बोल रहा था, पर अब उसने अपने सर को उठा कर मेरी और देखा और मैंने उसकी आँखों में नमी देखी। मेरी भी आँखों में आंसू थे। और मैं उसके माथे पर हाँथ फेरे जा रही थी। तभी अभिषेक कुर्सी से उठा, उसने आकर अखिल को उठाया, उसके माथे पर चुम कर, मेरे माथे पर भी चूमा। और हम दोनों की तरफ देखते हुए कहा, “कल सुबह बात करते हैं” और वो चला गया।

उसका इशारा साफ़ था।

अभिषेक कमरे से जैसे ही बहार गया, मैंने उठ कर कमरे को अंदर से बंद कर दिया। और मैंने मेरे दूसरे बेटे अखिल से कहा, “आजा, मेरा बेटु।”

बस कहने की देर थी और मेरा बेटा अखिल आकर होंठों को अपने होंठो में लेकर चूमने लगा। वो मुझे पागलों की तरह चूम रहा था, और मेरे ओवरकोट के ऊपर से मेरे दुदू दबा रहा था।

मेरा हाँथ पकड़ कर वो बिस्तर पर आ गया, और मेरे ओवरकोट की डोरी को खोल कर ओवरकोट उतार दिया। मैं वही गुलाबी वाली बिकिनी में थी। वो मुझे देखता ही रह गया। कुछ देर बाद वो मेरे दुदू को पकड़ कर उसके ऊपर से कपड़े को हटा कर सीधा मेरे निप्पल को काटने लगा।

ऐसा ही उसने दूसरे दुदू के साथ भी किया और दुदू चूसने लगा। अखिल जिस तरीके से प्यार कर रहा था, ऐसा बिलकुल भी नहीं लग रहा था कि ये उसका पहली बार था। पर मैं इस पल को व्यर्थ सवाल पूछ कर ज़ाया नहीं करना चाहती थी।

बीच-बीच में वो दुदू छोड़ कर फिर से होंठो को चूसने लगता। इतने में मैंने देखा उसके पयजामे में एक बड़ा सा तम्बू बन कर खड़ा हो रहा था।

मैं चुम्बन तोड़ कर उसे ज़रा धक्का देकर नीचे आ गयी और उसके पयजामे को नीचे सरकाने लगी। उसने नीचे चड्डी पहन रखी थी, पर अब उसकी चड्डी में बने तम्बू को देख मैं घबराने लगी। जैसे ही मैंने उसकी चड्डी को नीचे सरकाया। जो उछल कर निकला, मैं उसे देख कर दंग रह गयी। अखिल का लंड नहीं था, उसका लौड़ा था। 9-10 इंच बड़ा, हाँथ की गोलाई जितना मोटा, और बिल्कुल नाग जैसा काला। उसके लौड़े को देख कर मेरी सांसें अटक गयी।

पर उसके लौड़े से एक मादक से खुशबू आ रही थी, जो काफी आकर्षित कर रही थी। इतने में उसने मेरे चेहरे को पकड़ा और अपना लौड़ा मेरे मुँह में घुसेड़ने लगा। पर उसके घुसेड़ने के तरीके से मैं बिलकुल निश्चित हो गयी, कि ये उसके लिए पहली बार नहीं था।

उसके लौड़े को मैं आधा भी नहीं ले पा रही थी, पर वो बहुत खूबसूरती से मेरे मुँह को चोद रहा था। इतना बड़ा लौड़ा लेते हुए मेरे आंसू टपकने लगे, मुंह से लार बाहर निकल रही थी, और सिर्फ “उग ग ग गह गह ग ग उग” की आवाज़ आ रही थी। और मैं मन ही मन डर रही थी, कि अगर ये लौड़ा मेरी चूत और गाँड़ में घुसेगा तो क्या होगा?

अखिल के लौड़े को चूसने में मुझे मज़ा आने लगा। लौड़ा मेरे मुँह में समा नहीं रहा था, पर मैं अब उसकी आदि होने लगी थी। इतने में उसने मेरे मुँह से अपना लौड़ा निकाल कर मुझे बिस्तर पर धकेल दिया और अपनी कमीज उतार दी। उफ़, मेरा ही बेटा था पर आज पहली बार उसके शरीर को निहार रही थी। अखिल वैसे भी कद काठी में सबसे लम्बा था। बिलकुल एथेलेटिक शरीर, एब्स और ऊपर से इतना बड़ा लौड़ा। कोई भी औरत उसे देख कर पागल ही हो जायेगी।

वो मेरे पास आकर नीचे झुका और मेरी चूत पर अपने होंठ रख दिए और मेरी चूत को चूमने लगा। मैं तो मदहोश ही हो गयी। मेरी चूत गीली करके वो अब लंड घुसाने को तैयार था। लेकिन अखिल बेरहम निकला। उसने इतना बड़ा लौड़ा एक बार में अंदर घुसेड़ दिया और मैं दर्द से चीख पड़ी। पूरा कमरा मेरी चीख से गूँज गया। अगर यही चीज़ किसी और कमरे में होती, तो अभी तक सारे लोग उठ कर आ जाते देखने।

और वो मुझे ताबड़-तोड़ चोदने लगा। और आज जो मैं कह रही थी, उन शब्दों का इस्तेमाल मैंने पहले कभी नहीं किया, “बेटु आराम से, धीरे बेटा, धीरे चोद बेटा। मेरी चूत फट जायेगी बाबू। आराम से चोद। मैं यहीं हूँ, कहीं नहीं भाग रही बेटा। आराम-आराम से चोद शोना। दर्द हो रहा बेटा, धीरे चोदे मेरी जान।”

दर्द से मेरी आँखों से पानी निकल रहा था, पर ये दर्द अच्छा लग रहा था। अखिल बीच-बीच में मेरे निप्पल बहुत ज़ोर से मसलता, दुदू को पकड़ कर खूब दबाता, चोदते-चोदते निप्पल चूसता। लेकिन एक चीज़ मुझे बेहद पसंद आयी जो आज तक किसी ने नहीं किया। अखिल चोदते हुए मेरे हांथों को उठा कर मेरी बगल को चाटता। ये मुझे बेहद पसंद आया।

ये मेरे लिए एक नया अनुभव था।

आधे घंटे तक चोदने के बाद वो बिना पूछे ही मेरे अंदर झड़ गया, क्यूंकि उसे पता था कि मैंने नसबंदी करा ली थी तो कोई डर की बात नहीं।

ए०सी० वाले कमरे में भी हम दोनों पसीने से पूरे लथपथ हो गए थे। पर मेरी सांसें फूल रही थी। आलोक जी और अभिषेक ने मेरी खूब चुदाई की थी। अभिषेक ने बेरहम हो कर चुदाई की थी, पर मेरी सांसें इतनी कभी नहीं फूली थी।

अब वो मेरे पास आकर गिर गया,‌ और मुझसे लिपट गया और मेरे होंठो को चूमने लगा। एक हाँथ से वो मेरे दुदू दबा रहा था और दूसरे से मेरी गाँड सहला रहा था। और मैं उसके बड़े से लौड़े को सहला रही थी। उसका लौड़ा पूरे तरीके से मेरे हांथों में भी नहीं आ रहा था।

कहानी अभी बाकी है दोस्तों।