लड़की के जवान लड़के से चुदने की हॉट कहानी

ही फ्रेंड्स, मैं हू 35 साल की गोरी-चित्ति, लंबी, तीखे नैन नक्श वाली आशिकी. मैं अपने नाम के अनुरूप आशिक मिज़ाजी हू. 35 की उमर में सिंगल हू, तो ज़ाहिर है मुझे आज-तक भरपूर चुदाई का मज़ा कभी नही मिला.

मैं एक हद तक छुड़वाने को तड़पति रहती हू. ऐसे मेरी सेक्सी बॉडी का कमाल है, की मैं आज भी कमसिन काली की तरह ताज़ी और खुश्बुदार हू. मेरे बदन की खुश्बू मेरे आशिकों को मेरे पास ले ही आती है.

आशिक तो मिलते है, चुदाई भी करते है. पर वो नही मिलता, जो मैं चाहती हू. मुझे कोरे कमसिन छ्होरों से छुड़वाना बेहद पसंद है. 18 से 20 की उमर के छ्होरे का लंड छूट में तूफान ला देता है.

भोजपुरी फ़िल्मो का वो गाना “आइल तूफान मैल गाडिया हो साढ़े टीन बजे रतिया” शायद इन्ही छ्होरों को ध्यान में रख कर लिखा गया होगा. इधर-उधर की बातें बहुत हुई. अब मैं कहानी पर आती हू.

मैं जॉब की तलाश में आमेडबॅड की यात्रा पर थी. ट्रेन में आजू-बाजू की सीट्स पर जो सहयात्री थे, उसमे से एक बेहद हॅंडसम स्मार्ट लड़का भी था, जो करीबन 18 से 22 आगे का होगा. लंबा, गोरा, आत्लेटिक बॉडी का था वो.

उसकी मनमोहक च्चवि पर मैं ऐसा मोहित हुई, की उसको खुद में समा लेने की चाहत ने मुझे बैचाईन कर दिया. बार-बार मैं उसकी मनमोहक च्चवि को निहारती, और आत्म-विभोर होके प्लॅनिंग करती, की कैसे इस कोरे कुवारे छ्होरे को आत्मसात किया जाए.

छ्होरा भी बार-बार मेरे रूप सौंदर्या का रस्स-पॅयन करता, और फिर आँखें फेर लेता. मेरी काली शराबी आँखों के नशे का असर उस छ्होरे पर भी हो रहा था. मैं मार्क कर रही थी, मेरे अंग-अंग को वो निहारता, कभी मेरे गोरे गालों को, तो कभी मेरे रस्स-भरे गुलाबी होंठो पर, तो कभी मेरी मस्त अल्हाध चूचियों पर उसकी निगाहें टिकती.

मतलब सॉफ था. आग दोनो तरफ बराबर की जल रही थी. ज़रूरत थी तो दोनो की आग को एक साथ मिला दिया जाए. मैं मौके की तलाश में थी, की बात-चीत का सिलसिला कैसे शुरू किया जाए. शायद वो भी इसी की तलाश में था.

फिर एक स्टेशन पर गाड़ी रुकी. वो लड़का अपनी सीट से उठा, और बोला-

लड़का: माँ, ज़रा मेरे समान का ध्यान रखना. मैं नीचे से होके आता हू.

मैने ओक में सर हिलाया और बेहद खुश हुई, की चलो अब बात-चीत का सिलसिला शुरू करने में सहूलियत होगी. गाड़ी खुलने को थी, तो वो नौ-जवान जो मेरे दिल का राजा बन चुका था, वापस आया. फिर बातों का क्रम शुरू हो गया. सबसे पहले मैने पूछा-

मैं: तुम कहा तक जेया रहे हो?

उसने बताया: मैं आमेडबॅड जेया रहा हू.

मैं बोली: मैं भी तो आमेडबॅड ही जेया रही हू.

आयेज मैने पूछा: ये तुम्हारी आमेडबॅड की पहली यात्रा है, या पहले भी जेया चुके हो?

उसने बताया: मैं काई बार आमेडबॅड जेया चुका हू.

बस फिर क्या था. रूप का जाल तो उस पर पहले से डाला हुआ था. दूसरा मोहक जाल मैने अपनी मोहक मुस्कान के साथ उस पर फेंका.

मैं: देखो, प्लीज़ मैं आमेडबॅड के लिए बिल्कुल नयी हू. मुझे होटेल में कमरा दिलाने तक मेरी मदद करना.

शायद वो भी यही चाह रहा था, इसलिए खुशी-खुशी तैयार हो गया.

वो बोला: मुझे भी तो होटेल ही लेना है, तो एक ही जगह ले लेंगे.

मैं बोली: हम लोग एक रूम को भी शेर कर सकते है.

मेरी बातों पर वो खुशी से उछाल पड़ा.

फिर वो बोला: हाए रे मेरी किस्मत.

मैं उसकी तरफ मादक मुस्कान बिखेर कर अंदर ही अंदर खुशी से झूम पड़ी. मेरे मॅन में आया, चल रानी छुड़वाने का पूरा प्लॉट तैयार हो चुका है. अब केवल ज़रूरत थी अखाड़े पर दोनो योधाओं के भीड़ जाने की.

बातें होती गयी. उसने अपना नाम अनिमेश बताया. वो पढ़ाई के लिए आमेडबॅड जेया रहा था. बातें करते कैसे रास्ता काट गया कुछ भी पता नही चला. लेकिन एक चीज़ ये हुई, की पहले जो आग दोनो के जिस्म में जल रही थी, अब ज्वाला बन कर धड़कने लगी थी.

हम लोगों ने आमेडबॅड में होटेल लिया, और रूम में आते ही सारे बंधन को तोड़ एक-दूसरे से लिपट गये. मैं अनिमेश के खड़े लंड की ताक़त को महसूस कर रही थी, तो अनिमेश मेरे मादक बदन की मदिरा पी कर होश गावाता जेया रहा था.

अनिमेश अपने होंठो से मेरे मढ़-भरे गुलाबी होंठो का रस्स चूस रहा था. मैं भी सबर नही कर पाई, और पूरी आवेशित हो कर अनिमेश के लंड को अपनी नाज़ुक हथेली में ले लिया. पंत के उपर से ही लंड के विशाल साइज़, और उसकी ताक़त का अंदाज़ा मुझे लग गया था.

मैने अपनी महारानी को समझाया, की तोड़ा सबर करो रानी, ये मस्त लोड्‍ा तेरे भीतर जाके तूफान ला देगा. तेरी नास्स-नास्स को ढीली कर देगा. फिर मैने अनिमेश की पंत को उतार दिया, और उसका अंडरवेर भी उतरा.

अंडरवेर उतारने के साथ ही स्प्रिंग की तरह उछाल कर उसका लोड्‍ा बाहर आ कर उसकी नाभि से टकराने लगा. अनिमेश जो अब तक होंठ ही चूस रहा था, मैने उसके हाथ अपने हाथ में लिए, और चूचों पर रख दिए.

अब अनिमेश मेरी चूचियों से खेलने लगा. उसने धीरे-धीरे मेरे सारे कपड़े उतार दिए. युध के मैदान में दोनो योढ़ा बर और लंड के साथ एक-दूसरे पर वॉर करने के लिए एक-दूं आमने-सामने खड़े थे. मैने अपने प्रतिद्वंदी योढ़ा को अपनी बर की तरफ दिखाया, जो ताप-ताप तपाक रही थी.

फिर मैं बोली: इस अमृत को पी ले, ताक़त मिलेगी. तभी तू मेरी रानी को मॅट दे पाएगा. वरना मेरी छूट तेरे लंड को कक्चा निगल जाएगी.

मेरी बातों का असर हुआ, छ्होरा झट से अपना मूह लावनी की तरह मेरी बर पर लगा दिया, और लगा चत्तर-चत्तर चाटने. छ्होरा मेटी बर चाट रहा था. मैं मस्ती में सिसकार रही थी. बर चाट-ते हुए कभी-कभी अनिमेश अपनी जीभ को बर में घुसा देता, और मैं उछाल पड़ती.

चुदाई का खेल पुर शबाब पर था. मुझे बहुत मज़ा आ रहा था. आज मैं जी भर के छुड़वा लेना चाहती थी. मेरी कसमसाती बर को अब जीभ नही, उसको तो अब फौलादी लोड्‍ा चाहिए था, जो छोड़ कर बर का भोंसड़ा बना दे. मैने अनिमेश के बाल पकड़ कर उपर की तरफ खींचा, और बोली-

मैं: अर्रे बुरछट्‍टे ज़ालिम अब जीभ से नही काम चलेगा. अब बर में लोड्‍ा पेल कर मार धक्का, और ढाका-धक छोड़. बर का भोंसड़ा बना दे.

फिर अनिमेश ने मेरे नंगे बदन को उठा कर बेड पर रखा, और बोला-

अनिमेश: बन जेया कुटिया मेरी रानी. मैं कुत्ते की तरह जंप करके पहले तेरी बर छोड़ूँगा कुटिया-कुत्ता स्टाइल में.

ये मुझे बेहद पसंद है, सो मैं झट से कुतिया बन गयी. अनिमेश सही में जंप के साथ मुझ पर चढ़ गया, और दे ढाका-धक, ले खचा खच बर छोड़ने लगा कुटिया वाले स्टाइल में.

मेरी बर पूरी तरह खुल जाती है, और लोड्‍ा पूरी गहराई तक बर में आता-जाता और ढाका-धक छोड़ता है. मैं छुड़वा रही थी, साथ में आ श आ श भी कर रही थी. आ श की आवाज़ पुर कमरे में गूँज रही थी.

अनिमेश मुझे छोड़ता जेया रहा था, और हांफता भी जेया रहा था. अब बारी थी पासा पलटने की. फिर अनिमेश उतरा, और मैं चिट लेट गयी. अनिमेश ने मेरी टाँगो को फैलाया, और मेरी बर फैल कर लोड के स्वागत के लिए तैयार पड़ी थी. फिर अनिमेश सूपदे को मेरी बर पर रग़ाद रहा था. उसी समय मैं बोली-

मैं: यार तू तो माँझे हुए खिलाड़ी की तरह छोड़ता है. पहले कितनी बर छोड़ चुका है?

अनिमेश बोला: कसम से यार ज़िंदगी में पहली बार तेरी बर छोड़ने को मिली है.

मैं गड़-गड़ होके बोली: हा लेकिन तू तो बहुत ही माँझे खिलाड़ी की तरह छोड़ रहा है.

अनिमेश ने कहा: छोड़ मैं रहा हू पहली बार, लेकिन चुदाई का खेल मैं सैंकड़ो बार देखा हू. देख-देख कर एक्सपीरियेन्स हो गया है.

मेरी उत्सुकता बहुत बढ़ गयी, बस पूच बैठी कहा देखे हो इतनी बार.

तो अनिमेश बोला: मेरे पापा मों को रोज़ छोड़ते है, और मैं च्छूप-च्छूप कर देखता हू. और एक्षपेरियँसे गईं करता हू.

मेरी हस्सी छ्छूट गयी, और बोली: चल अपने एक्सपीरियेन्स को दिखा, और छोड़ कस्स के छोड़. ऐसे छोड़, की बर के हर दरवाज़े खुल जाए. मेरी बर लंड के लिए दिन रात तड़पति है. आज मिटा दे मेरी हर तड़पन को.

अनिमेश सुन कर जोश से भर गया, और दे खचा-खच दे खचा-खच छोड़ने लगा. इतनी देर की चुदाई में दो बार मेरी बर पानी का बौछार कर चुकी थी. चुड़वते-चुड़वते मैं अब मस्त से पस्त हो चुकी थी. पर उसके उलट अनिमेश अब भी पूरी ताक़त से छोड़े जेया रहा था. अब उसकी पकड़ काफ़ी मज़बूत हो गयी थी. उसका लोड्‍ा फूल कर धोशा बेंग बन गया था.

ठीक उसके उलट मेटी बर सिकुड कर छ्होटी हो गयी थी. अनिमेश ढाका-धक छोड़ता और बक रहा था-

अनिमेश: क्या कमाल की बर है तेरी रानी. मैं गया, मैं गया.

ये कहते हुए अनिमेश के लंड से वीर्या की बौछार बर में हो गयी. गरमा-गरम वीर्या पा कर मैं सराबोर हो गयी. अनिमेश एक तरफ लूड़क गया था. मैं बिल्कुल तृप्त हो कर सो गयी.

आज की कहानी बस यही समाप्त. अब इजाज़त दीजिए मेरे दोस्तों. पर अपने कॉमेंट देना मत भूलना.