मेरे दोस्त की मां पुष्पा की रंडी की तरह चुदाई

हेलो दोस्तों, मेरा नाम प्राश है, और मैं आज आपको एक सच्ची कहानी बताने जा रहा हूं। ये कहानी सुन कर आप सब को बहुत मज़ा आने वाला है। ये कहानी मेरी पड़ोस वाली आंटी की है, जो कि मेरे दोस्त की मम्मी भी लगती है ,जो पेशे से एक टीचर है।

मेरा नाम प्राश है। मैं 24 साल का हूं। मेरी हाइट 6 फीट है, और मेरी बॉडी फिट है, और मेरा लंड 6 इंच का है। मैं, हर्ष, और प्रेम तीनों दोस्त है। मोहल्ले में एक साथ रहते है, मतलब हमारे घर बिल्कुल आस-पास है। प्रेम 25 साल का है, और हर्ष 22 साल का है। हम एक साथ खेलते रहते है, और एक-दूसरे के घर पे आना-जाना लगा रहता है।

हर्ष की मम्मी के बारे में बता देता हूं। कलर थोड़ा गोरा, बेहद खूबसूरत, उनको देख के लगता नहीं है कि वो हर्ष की मां है। एक-दम गदरायी हुई है। एक-दम माल लगती है। फिगर 40-38-42 है‌। हमेशा साड़ी पहनती है, और थोड़ी शर्मीली स्वभाव की है। उनके चूचे ब्लाउज में बहुत सही लगते है‌। एक-दम फिट ब्लाउज पहनती है।

लेकिन सबसे ज़्यादा उनकी गांड मुझे अच्छी लगती है। उनकी गांड को गल्ती से अपने लंड से टच कर लिया था मैंने। तब से उनको चोदने के सपने देख रहा था। साड़ी में वो सबसे अच्छी लगती है। हर्ष की मम्मी प्राइवेट स्कूल में टीचर है, और हर्ष के पापा बैंक में ऑफिसर है, और उनका स्वभाव बहुत भोला है।

एकबार की बात है, हम तीनों हर्ष के घर पे मैच देख रहे थे। तब क्रिकेट के वर्ल्ड कप का सीजन चालू था। तो 5-6 घंटे हम उसके ही घर पे ही रुकने वाले थे। आज आंटी ग़ज़ब दिख रही थी। काले कलर की साड़ी पहनी हुई थी, और लाल कलर का ब्लाउज पहना हुआ था, और रेड लिपस्टिक।

मैं तो बस आंटी को ही देखे जा रहा था। फिर आंटी कोल्ड ड्रिंक और स्नैक्स हमें परोस रही थी। अब नीचे रखने के समय उनका पल्लू गिर गया, और हमें स्वर्ग से ज़्यादा सुंदर उनके क्लीवेज के दर्शन हुए।

आंटी के बड़े-बड़े चूचे देख के मेरा लंड खड़ा हो गया। अब वो छुपाने के लिए मैंने बाजू में पड़ा हुआ टावल अपनी पैंट पे रख लिया, तांकि किसी को पता ना चले। मैंने प्रेम को देखा। उसका तो वो नजारा देख के मुंह खुला रह गया था।

वो बस आंटी को ही घूरे जा रहा था। फिर आंटी ने पल्लू उठा लिया और मैं और प्रेम एक-दूसरे को देख के मुस्कुरा रहे थे। हमने हर्ष को देखा लेकिन वो मैच देखने में बिजी था। मैंने सोचा अछा हुआ हर्ष ने कुछ देखा नहीं।

लेकिन मुझे आंटी को फिरसे देखना था, तो मैं किचन में गया और उनकी मदद करने की कोशिश कर रहा था। लेकिन आंटी मना कर रही थी। पर मैंने ज़बरदस्ती आंटी को बोला कि नहीं आंटी मैं करता हूं ना और किचन साफ़ करने लगा।

अब आंटी वही बेसिन में बर्तन धो रही थी, और मैं बहाना करते हुए उनके पीछे खड़ा हो गया। उनकी गांड बड़ी कमाल की लग रही थी। मुझे आंटी की गांड को हाथ लगाना था, पर हिम्मत नहीं हो रही थी। इतने में आंटी ही थोड़ी पीछे हो गयी, और उनकी गांड सीधा मेरे लंड से आके टकरायी।

मैं थोड़ी देर वैसे ही रहा अब मेरा लंड खड़ा हो गया और वो सीधे आंटी की गांड में चुभा होगा। फिर मैं झट से सरक गया, और कुछ हुआ ही नहीं ऐसा बर्ताव करने लगा। आंटी ने भी सोचा होगा गलती से हो गया होगा।

थोड़ी देर बाद आंटी की तारीफ़ करने लगा कि, “आप बहुत अच्छी है, और स्कूल में भी और घर पर भी कितनी मेहनत करती है।” तो वो भी स्माइल करने लगी और कहने लगी कि, “बेटा तुम बहुत अच्छे हो और मेरा कितना ख्याल रखते हो।”

थोड़ी बात-चीत चली और हम हसने लगे। कुछ बाते करके फिर प्रेम भी किचन में आया और आंटी की तारीफ़ करने लगा, और मदद करने लगा। मुझे पता था कि ये भी आंटी को पटा के चोदने की फ़िराक़ में था। तो मैंने भी थोड़ा आंटी की ज़्यादा तारीफ़ करनी चालू करी।

में: आंटी, वैसे आप इस साड़ी में बहुत खूबसूरत लग रही है। आज अंकल जी आपको बस देखते ही रहने वाले है।

पुष्पा आंटी: तुम भी ना प्राश, ऐसा कुछ नहीं है। मेरी झूठी तारीफ़ मत करो।

में: नहीं आंटी सच में, आप बहुत अच्छी लग रही है। हमारे मोहल्ले में आप से खूबसूरत कोई भी नहीं है।

पुष्पा आंटी (शर्माते हुए): तुम भी ना।

अब प्रेम भी इसमें हामी भरने लगा

प्रेम: हां आंटी, मैंने भी आपसे खूबसूरत कोई औरत नहीं देखी।

पुष्पा आंटी: बस-बस, तुम दोनों मेरी तारीफ़ करना बंद करो और जाके मैच देखो

हम दोनों हसते हुए हॉल में जाके मैच देखने लगे। फिर थोड़ी देर बाद हर्ष के पापा आए और हम वहां से निकले, और घर के सामने आके बातें करने लगे।

प्रेम: भाई, यार पता नहीं क्यों आंटी को देख के मुझे उनको चोदने का मन करता है।

में: मैंने जबसे उनका क्लीवेज देखी है, मुझे तो और कुछ सूझ ही नहीं रहा। काश मैं आंटी को चोद पाता।

प्रेम: बस एक बार कभी चोदने का मौक़ा मिल जाये।

में: मैं भी वही सोच रहा हूं भाई, चल कोई नहीं कभी ना कभी मौक़ा आएगा आंटी को मसलने का।

फिर हम अपने-अपने घर चले गये। मैंने आंटी के क्लीवेज को याद करते-करते उस रात 2 बार हिलाया। सुबह आंटी उनके जॉब पे जाने के लिए निकली तो मैं जान-बूझ के उसी समय पे अपनी गाड़ी निकालने लगा। फिर आंटी से थोड़ी बात करने लगा। वैसे आंटी ने हरे कलर की साड़ी और लाल कलर का ब्लाउज पहना था। एक-दम क़यामत लग रही थी। आजू-बाजू के ठरकी बूढ़े उनको घूर रहे थे।

में: आंटी आप स्कूल जा रही है तो चलिए ना आपको छोड़ता हूं। मुझे उसी तरफ़ काम है।

पुष्पा आंटी: अरे नहीं, तुम्हें तकलीफ़ होगी बेटा।

में: चलिए ना आंटी तकलीफ़ कैसी? आप मेरी बाइक पे बैठेंगी तो मेरी बाइक को चार चांद लग जाएंगे।

पुष्पा आंटी: प्राश तू भी ना मेरी तारीफ़ करने का एक मौक़ा नहीं छोड़ता। अच्छा चल लेकिन बाइक आराम से चलाना।

हम बाइक पे बैठे और चलने लगे। आंटी के बड़े से रसीले चूचे मेरी पीठ को लग रहे थे। मुझे तो बड़ा मज़ा आ रहा था। रास्ते में खड्डे नहीं भी हो तो भी मैं ब्रेक मार रहा था, जिससे आंटी के चूचे सीधा मेरी पीठ को आके लग रहे थे

आंटी: आज रास्ते में कुछ ज़्यादा ही खड्डे है, है ना प्राश?

में (हिचकिचाते हुए): हां आंटी

रास्ते में एक दुकान दिखी तो आंटी ने बोला: रोक मैंने थोड़े कपड़े दिए थे सिलवाने के लिए, वो वापस लेने है।

मैंने भी कहा: चलिए फिर साथ चलता हूं मैं भी।

आंटी ने वहां की लेडी से ब्लाउज लिया और चेजिंग रूम में जाके पहने लगी। मैं देख नहीं सकता था क्यूंकी वहां वो लेडी बैठी थी। थोड़ी देर में वो बाहर गई, और मैं चेजिंग रूम की तरफ़ गया। वहां दरवाज़ा ही नहीं था। मैं चुपके से देखने लगा। आंटी ने सफ़ेद कलर की ब्रा पहनी थी, और वो भी उतार दी। मैंने उनके रसीले बूब्स के दर्शन किए।

बिल्कुल गोरे-गोरे बूब्स और पिंक निप्पल। मानो मुझे लगा मैं सपना देख रहा था। कुछ कर पाता उतने में वो लेडी वहां आयी‌ फिर आंटी भी बाहर आयी, और हम कपड़े लेके निकल गये वहां से। मैंने उनको स्कूल छोड़ा और घर आ गया। अब मैंने ठान लिया था कि आंटी को जल्द से जल्द चोदना था। बस मौक़ा मिलना चाहिए था।

एक दिन मैंने देखा हर्ष और उसके पापा बाहर जा रहे थे, और अंदाज़ा लगाया कि आंटी घर पे अकेली होंगी। तो मैं जल्द से जल्द उसके घर पे गया। मैंने देखा कि ये चूतिये हर्ष और उसके पापा ने दरवाज़ा खुल्ला ही छोड़ दिया था। मैं बिना आवाज़ दिये अंदर चला गया, और मैंने बाथरूम में आवाज़ सुनी कि शायद आंटी नहा रही थी। तो मैं उनके बेडरूम में गया, और वहां से एक पैंटी उठा ली, और जेब में डाल ली, और हॉल में आने ही वाला था कि आंटी बाथरूम में से बाहर निकली। आंटी ने सिर्फ़ टावल पहना था।

उन्होंने मुझे देखा तो पूरी तरह चौंक गयी और उनका टावल गिर गया। अब इतना गरम माहोल था कि आंटी पूरी नंगी थी मेरे सामने। फिर 5-10 सेकंड तो आंटी वैसी ही रही। क़सम से क़यामत दिख रही थी। गोरे-गोरे चूचे, पिंक निप्पलस, चूत पर थोड़े से बाल। अब वो टॉवल उठाने के लिए झुकी, और पलट गई। अब तो गांड भी साफ़ दिख रही थी। एक तिल था उनकी गांड में। मेरा लंड झट से खड़ा हो गया।

आंटी ने टावल उठाया और बेडरूम की तरफ़ भाग गई। 15-20 मिनट वो बाहर ही नहीं आयी शर्म के मारे। फिर पीली साड़ी पहन के आयी, और फिर आते ही किचन में गई और चाय बनाने लगी। मैं भी उनके पीछे-पीछे किचन में गया। फिर बात करने लगा-

मैं: आंटी, आप ये साड़ी में बहुत खूबसूरत लग रही है।

पुष्पा आंटी (शर्माते शर्माते): हां प्राश, सुनो सब भूल जाओ, और किसी को बताना मत की जो भी तुमने देखा।

मैं: नहीं आंटी, मैं कभी किसको नहीं बताऊंगा। पर आप बहुत हॉट लग रही थी आज। मैंने आपसे खूबसूरत औरत पहले कभी भी नहीं देखी।

आंटी: ऐसा मत बोलो, मैं तुम्हारी मां की उम्र की हूं

मैं: ठीक है आंटी, जैसा आप कहे। ये सब छोड़िये, आप थक गई होंगी ना? ये चाय रहने दीजिए, मैं आपका सिर दबाता हूं, और कंधों की मालिश कर देता हूं।

इससे पहले कि वो कुछ बोलती, मैंने उनके कंधों पे हाथ रखे और मालिश करने लगा। फिर मैंने उनको हॉल में ले जाके बैठने को कहा। अब कंधों की मालिश करते-करते मैंने ब्लाउज थोड़ा ढीला कर दिया। उनको शायद पता नहीं चला।

अब उनके चूचे मुझे साफ़ दिख रहे थे। थकावट के कारण से आंटी को नींद आ गई, और मैंने आंटी के चूचे को भी हाथ लगाया। आंटी कुछ नहीं बोली, मतलब वो सो गई थी। फिर मैंने उनके दोनों चूचों को आज़ाद कर दिया, और मालिश करने लगा। उनके चूचे बहुत ही सॉफ्ट थे। मैंने अपने दोनों हाथ उनके निप्पल पे रख दिये और मैं रगड़ने लगा। आंटी भी सिसकारियां लेने लगी थी।

आंटी की खुल गई और वो एक-दम घबरा गई। वो उठने लगी लेकिन मैंने उनको बिठाया और चूचे दबाने लगा। लेकिन आंटी नाराज़ हो गई और अंदर चली गई। मेरा दाव उल्टा पड़ गया।