कॉलेज की लड़की हुई बड़े लंड की दीवानी

आटिट्यूड तो मुझमे बचपन से था ही. जब आंगर में आती तो वाइल्ड गर्ल बन जाती थी मैं. अंदर ही अंदर सेक्स से भारी रहती, बुत आटिट्यूड की वजह से किसी को लिफ्ट नही देती. आटिट्यूड में डूबी रहती थी. आंगर आंड आटिट्यूड का मिक्स्चर थी मैं. और बाय्स मरते भी क्यूँ ना मुझ पर?

ये उन दीनो की बात है, जब मैं 1स्ट्रीट एअर में पढ़ती थी. मेरी क्लास के बाय्स मरते थे मुझपे. बेचैन रहते थे मुझसे दोस्ती के लिए, बुत मैं किसी को लिफ्ट नही करती थी. मैं तो बस सीनियर बाय्स की दीवानी थी.

हमारे कॉलेज 2 सेक्षन्स में बता हुआ था. 1स्ट्रीट एअर तक तो बाय्स आंड गर्ल्स एक साथ ही पढ़ते थे. बुत उसके आयेज बाय्स का सेक्षन अलग था. वाहा जस्ट सीनियर बाय्स ही स्टडी करते थे. वो सीनियर बाय्स काफ़ी बदनाम भी थे.

उन सीनियर बाय्स में कुछ ऐसे भी थे, जिनकी न्यू मॅरेज हुई थी. वो विलेजस में अपनी वाइफ को छ्चोढ़ कर यहा पढ़ने आते थे. बुत कुछ बाय्स सिटी के भी थे. वो मॅरीड बाय्स के साथ मिल कर गंदे हो जाते थे.

मुझे उनकी कहानियाँ सुन कर गुस्सा भी बहुत आता. बुत दूसरे ही लम्हे में खुद सेक्स से भर जाती. कभी-कभी ब्रेक के टाइम च्छूप कर सीनियर बाय्स की क्लास के बाहर जेया कर उन्हे च्छूप कर देखती थी.

सीनियर बाय्स एक-दूसरे के साथ गंदे-गंदे जोक्स करते, और मैं च्छूप कर सुनती. बुत उस दिन जो मैने जो देखा, वो कमाल था. हुआ कुछ यू, की एक दिन मैं हमेशा की तरह ब्रेक में बाकी गर्ल्स से च्चिप कर निकली, और सीनियर बाय्स के सेक्षन पहुँची.

उनकी क्लासस चल रही थी. मैने सोचा टाय्लेट की तरफ जाती हू, शायद वाहा कुछ देखने को मिल जाए. बुत वाहा भी कुछ ना नज़र आया. जब वापस लौटने लगी तब डोर एक क्लास की तरफ नज़र पड़ी, जो बाकी क्लासस से कुछ डोर थी. वाहा मुझे 2 बाय्स नज़र आए.

वो एक-दूसरे से बातें कर रहे थे. मैं स्लोली-स्लोली उनके करीब गयी. वो हमेशा की तरह जोक्स कर रहे थे की अचानक उनमे से एक ने पंत की ज़िप खोली.

उसके ज़िप खोलते ही उसका साँप बाहर निकल आया. श डॅम! ये नज़ारा देख कर मेरे लिप्स से भी इकतियार निकला. रियल में इतना बड़ा साँप मैने पहले कभी नही देखा था. मोटी ब्राउन स्किन, दरमियाँ में चारो तरफ फैला हुआ मोटा हरामी टोपा.

टोपे से पसीना टपकते हुए साँप से हो कर बॉल्स पे जेया रहा था. ये सब देख कर मैं पानी-पानी हो ही रही थी, की दूसरे बॉय ने भी अचानक गोडोवन् से रॉकेट बाहर निकाला. ओह फक! जितना सुना था उससे भी ज़्यादा डर्टी थे ये कॉलेज बाय्स.

मैं ये नज़ारे देख रही थी, और मूह ही मूह में बड़बड़ा रही थी. वो दोनो बाय्स एक-दूसरे के करीब आए. पहले तो मैं समझी ये कमीने नंगे हो कर लड़ने आए थे. बुत फिर जो देखा तो देखती ही रह गयी. वो दोनो अपने फॅटी रॉकेट्स को आपस में टकराने लगे.

“डॅम! सच एरॉटिक देसी बाय्स”, मैने खुद से कहा. फिर अचानक उनमे से एक अपना रॉकेट दूसरे रॉकेट पर मसालने लगा. ओह फक! दोनो पसीने में लथपथ रॉकेट एक-दूसरे से मसल रहे थे. ये सब देख कर मुझपे नशा सा छा रहा था. 2 मोटे फॅटी शाइन करते रॉकेट उफ़फ्फ़. मैं बे इकतियार अपनी ज़ुबान मेरे लिप्स पर फेरने लगी, की अचानक क्लास की विंडो से मेरा हाथ टकराया.

दोनो बाय्स ने विंडो की तरफ देखा. उनकी नज़र मुझ पर पड़ने से पहले मैं भाग निकली. जब अपने सेक्षन में पहुँची, तो सन्नाटा छाया हुआ था. ब्रेक क्लोज़ हो चुका था और सारी गर्ल्स क्लास में थी.

मैं: मिस, मे ई कम इन? (मैने डरते-डरते मिस से कहा).

मिस: अब तक कहा थी तुम? ब्रेक क्लोज़ हुए तो ऑलमोस्ट 10 मिनिट्स हो चुके है.

मैं: माँ वो मैं टाय्लेट में थी.

ये सुन कर क्लास की गर्ल्स हासणे लगी, और कुछ गर्ल्स शरमाने लगी.

मैं: माँ वो आज मेरा स्टमक खराब है, सो.

माँ: ओक कम.

फिर मैं चुपके से सिर झुकाए अंदर चली गयी. मैं सीट पर बैठ तो गयी, बुत सारी बॉडी काँप रही थी. वो रॉकेट्स की पिक तो जैसे मेरे माइंड में चिपक सी गयी थी. “अफ कितने डर्टी होते है ये सीनियर बाय्स”, मैं बार-बार खुद को यही कहती जेया रही थी. बड़ी मुश्किल से कॉलेज में बाकी का टाइम निकाला. मेरी फ्रेंड हनी बार-बार मुझसे पूछे जेया रही थी-

हनी: सच बता, कहा गुम हो गयी थी? देख मैं तुझे अची तरह जानती हू. मुझसे कुछ मत च्छूपा.

मैने उसकी तरफ नॉटी नज़रो से देखा और कहा: बतौँगी यार सब बतौँगी. बुत कॉलेज ख़तम होने के बाद. अभी मुझे डिस्टर्ब ना कर.

फ्रेंड को तो मैने बहला-फुसला कर खामोश कर दिया. बुत मेरी हालत बहुत खराब हो रही थी. उन देसी रॉकेट्स की पिक तो जैसे मेरी नज़रो से चिपक गयी थी. टीचर लेक्चर दे रही थी, बुत मुझे हर तरफ वो मोटे रॉकेट्स दिखाई दे रहे थे. अफ कितने डर्टी होते है ये देसी बाय्स.

फिर से खुद से बातें करने लगी थी मैं. कॉलेज ख़तम हुआ आंड मैं घर चली गयी. घर जेया कर भी ख़यालों में बस वही सब था. बस यही सोचती रही की कब दिन गुज़रे आंड मैं वो नज़ारा फिर से देखु. बार-बार नज़रो के सामने बस वही रॉकेट्स आ रहे थे.

मॅन में गंदे-गंदे सवाल उठ रहे थे, की नज़दीक से देखने में कैसे होंगे वो रॉकेट्स? कितनी नरम स्किन होगी उनकी? स्मेल कैसी होगी, स्पेशली जब पसीने में लथपथ होते होंगे वो? दोनो में से किसका टोपा ज़्यादा मोटा होगा, वग़ैरा-वग़ैरा.

ये सब सोच कर खुद को और भी ज़्यादा सॉफ्ट आंड मुलायम फील कर रही थी मैं. पनटी तो मेरी कॉलेज में ही गीली हो चुकी थी, सो उसे उतार कर फेंक चुकी थी मैं. कुछ साँझ नही आ रहा था. ना भूख लग रही थी, ना ही किसी काम में दिल लग रहा था. जैसे एक अजब सा नशा छाया हुआ था मुझ पर. सारा दिन बेड पर तकिये को टाँगो के बीच में लेकर लेती रही बस.

आँखें बंद करके ख़यालों में उन रॉकेट्स को बार-बार देखती रही. कभी खुद के बूब्स दबाती, तो कभी बेचारे तकिये को लेग्स के बीच में मसालती. एक दर्र सा भी था की अगर किसी ने बिग बाय्स सेक्षन में मुझे ये सब देखते हुए पकड़ लिया, तो फिर क्या होगा. बुत मेरी प्यास इतनी थी, की कंट्रोल नही हो पा रहा था. ऐसे नज़ारे रियल में पहली बार जो देखे थे मैने.

रात भी ये सब कुछ सोचते हुए गुज़री, और एक बेचैनी भी थी की कब सुबा हो, और मैं अगेन सीनियर बाय्स के सेक्षन में जौ. खेर नेक्स्ट दे फिरसे डरते-डरते ब्रेक में निकल

कर वाहा पहुँची मैं. जिस्म काँप रहा था, बुत एग्ज़ाइट्मेंट उससे भी ज़्यादा थी. तो बे कंटिन्यूड.