हेलो दोस्तों, मैं विश्वास अपनी कहानी के अगले पार्ट के साथ वापस आया हू. अगर आपने पिछला पार्ट नही पढ़ा है, तो पहले जाके उसको पढ़े. उमीद है आपको पिछले पार्ट में मज़ा आएगा.
पिछले पार्ट में आप सब ने पढ़ा, की वरुण और मम्मी की चुदाई ख़तम होने के बाद शर्मा अंकल घर में आ गये. फिर अंकल ने भी मम्मी को छोड़ा, और मम्मी भी मज़े ले-ले कर उनसे रंडी की तरह चूड़ी. अब आयेज बढ़ते है.
अब मम्मी, अंकल और वरुण के साथ नंगी लेती हुई थी. फिर अंकल खड़े हुए और अपने कपड़े पहनने लगे. उन्होने वरुण को बोला-
अंकल: चल बेटा निकलते है यहा से. इसका बेटा आ जाए इससे पहले हमे यहा से चलना चाहिए.
वरुण: पापा एक और बार करने दो ना आंटी की चुदाई.
अंकल: बेटा कर तो ली तूने. और आंटी कहा भागी जेया रही है, यही तो रहेंगी.
वरुण: पापा मेरा दिल कर रहा है.
अंकल: बेटा ऐसी औरत को जितना मर्ज़ी छोड़ ले, तेरा मॅन नही भरने वाला. तो अभी के लिए चल, कल जल्दी आ जाना.
फिर अपने बाप की बात मानते हुए वरुण खड़ा हुआ, और अपने कपड़े पहनने लगा. उसके बाद अंकल ने मम्मी को कुछ पैसे दिए, और वो दोनो बाहर आने लगे. मैं फिरसे जाके साइड में च्छूप गया. मुझे समझ नही आया की अंकल ने मम्मी को किस बात के पैसे दिए थे. ये वैसे प्यार से दिए थे उन्होने, या रंडी की चुदाई की फीस थी.
फिर वो बाहर चले गये. मम्मी वही बेड पर नंगी लेती रही. मैं भी धीरे से घर के बाहर आ गया, और घर से डोर एक गार्डेन में जाके बैठ गया. वाहा मैं सोचने लग गया, जो मैने देखा था उस सब के बारे में.
मुझे समझ नही आ रहा था की सब क्या हो रहा था. लेकिन एक बात जो मुझे समझ में आ रही थी, वो थी की इस सब को देख कर मेरी अपनी मा के बारे में सोच बदल गयी थी. अब मुझे वो मेरी मा नही एक सेक्सी रंडी लग रही थी, जिसके बारे में सोच-सोच कर मेरा लंड खड़ा हुआ जेया रहा था.
मैने सोचा की मेरी मा ऐसे कैसे मेरे होते हुए किसी बाहर के मर्द का बिस्तर गरम कर सकती थी. यहा बेटा भूखा बैठा था, और बाहर के मर्दों को लंगर बाँटा जेया रहा था, ऐसी ना-इंस्साफी क्यूँ?
जब तक पापा थे, तब तक मेरा उन पर बेटे वाला हक था. लेकिन पापा के जाने के बाद मैं घर का मर्द था, और एक औरत होने के नाते मुझे सब सुख देना मा का फ़र्ज़ था.
मैने सोचा की अब मुझे एक मर्द की तरह घर की बागडोर संभालनी पड़ेगी, और अपनी मा को अपनी रंडी बना कर उसकी हरकतों पर लगाम लगानी होगी. अब मैने फैंसला किया, की मैं अपनी मा को छोड़ूँगा, ताकि उसको अपनी छूट संतुष्ट करने के लिए बाहर मूह ना मारना पड़े.
ये फैंसला करके मैं उठा, और घर की तरफ चल दिया. जब मैं घर के अंदर गया, तो मा किचन में थी. उन्होने नीले रंग की सारी पहनी हुई थी वित ब्लॅक ब्लाउस. पहले वो मुझे सारी मैं सती-सावित्री लगती थी, लेकिन अब मुझे उनमे एक बाज़ारू रांड़ नज़र आ रही थी. जब मा ने मुझे देखा, तो वो बोली-
मा: आ गये बेटा, आज लाते नही हो गये?
मैं: हा वो एक्सट्रा क्लास थी मा आज.
मा: ठीक है. चल जल्दी से हाथ धो के आजा, मैं तेरे लिए खाना लगा देती हू.
मैं: ठीक है मा.
मा ऐसे बिहेव कर रही थी, जैसे कुछ हुआ ही नही था. लेकिन उसको क्या पता था, की मैं उसकी रंगरलियाँ अपनी आँखों से देख चुका था. फिर मैं खाने के लिए बैठ गया, और मा खाना परोसने लगी. जब वो खाना परोस रही थी, तब मेरी नज़र ब्लाउस में से दिख रहे उनके बूब्स पर थी.
क्या मस्त गहरी क्लीवेज थी, देख कर मूह में पानी आ गया. दिल तो कर रहा था मा को वही पकड़ कर छोड़ डू. लेकिन मैं जल्दी-जल्दी में कुछ नही करना चाहता था. फिर मेरा खाना हो गया, और मैं उठ कर अपने रूम में चला गया. रूम में जाके पहले मैं बातरूम में गया, और मा को देख कर जो मेरा लंड खड़ा था, उसको मूठ मार के खाली किया.
अब मैं सोचने लगा की मा को छोड़ूँगा कैसे. फिर मैने सोचा की अगर मैं डाइरेक्ट जाके भी मा को पकड़ लू, तो मुझे रोकने वाला कोई नही होगा. लेकिन फिर मैने सोचा की ऐसे दिन में नही पकड़ता, रात में मा के रूम में जाके उसको छोड़ूँगा. फिर मैं थोड़ी देर सो गया, क्यूंकी रात में जागना था.
शाम में मैं उठा, और नीचे चला गया. मा ने मुझे छाई दी. जब वो छाई देके जेया रही थी, तो मेरी नज़र उनकी मस्त गांद पर थी. मैने सोचा आज इस गांद को भी ज़रूर छोड़ूँगा. फिर थोड़ी देर टीवी देखा, और फिर डिन्नर का टाइम हो गया. मा डिन्नर के पहले सारी चेंज कर लेती है. अब मा निघट्य में थी. निघट्य में कभी-कभी वो ब्रा पनटी भी नही पहनती थी, लेकिन आज पहनी हुई थी.
वो किचन में खाना बना रही थी, और मैं उनके जिस्म को देख-देख कर उत्तेजित हो रहा था. फिर वो डिन्नर लेके आई, और मेरे साथ बैठ कर ही खाने लगी. वो जब भी नीवाला अपने मूह में डालने के लिए मूह खोलती, मुझे लगता जैसे मेरा लंड मूह में लेने के लिए मूह खोल रही थी.
उनके लिप्स देख-देख कर मेरा उन्हे चूसने का मॅन कर रहा था. निघट्य में से मा के बूब्स की हल्की सी झलक भी नज़र आ रही थी. फिर हमारा डिन्नर हुआ, और हमने थोड़ी देर टीवी देखा. उसके बाद हम दोनो अपने-अपने कमरे में सोने के लिए चले गये.
मुझे तो क्या सोना था, मैं तो बस वेट कर रहा था की जब मम्मी सोएंगी, तो मैं उनके रूम में जौंगा. फिर 2 घंटे बाद मैं अपने रूम से बाहर आया, और मा के रूम की तरफ बढ़ा. मैने उनके रूम का दरवाज़ा नॉक किया, तो दरवाज़ा खुला ही था. फिर मैने मा को हल्की सी आवाज़ लगाई, ये चेक करने के लिए की वो जाग रही थी या सो चुकी थी.
जब मुझे उनकी तरफ से कोई रेस्पॉन्स नही आया तो मैं समझ गया की वो सो चुकी थी. फिर मैं आयेज बढ़ा.
इसके आयेज क्या हुआ, वो आपको अगले पार्ट में पता चलेगा. अगर आपको कहानी का मज़ा आ रहा हो, तो इसको अपने दोस्तों के साथ ज़रूर शेर करे. कहानी पढ़ने के लिए धन्यवाद.