नमस्कार। मैं लॉकडॉन खुलने के बाद मार्च में नौकरी करने के लिए दिल्ली गया।
मैंने वहां अपने एक स्कूल फ्रेंड के यहां किराए पर कमरा ले लिया। अंकल-आंटी सब अच्छे से परिचित थे मुझसे, और मेरे परिवार से भी।
मेरा दोस्त विनय जो कि बैंक में कार्यरत है, के घर पर कुसुम आंटी उमर 50 साल है उनकी, पर बदन अभी भी कसा हुआ है। बड़ी-बड़ी चूचियां, और लंबाई भी अच्छी खासी है। अंकल हॉस्पिटल में सिक्योरिटी इंचार्ज हैं।
मैं जॉब करने लगा। शुरू में टाइम से आ जाता था ऑफिस से। जब वर्क लोड होने लगा, तो रात हो जाती थी। आने में देर होती थी तो आंटी को फोन कर देता था कि लेट होगा, जागे रहिएगा नहीं तो मुझे बाहर ही रहना पड़ेगा।
4-5 महीने बीते। एक रात मैं आया तो आंटी ने दरवाजा खोला, जो अक्सर अंकल या दोस्त खोला करते थे। दरवाजा खोलते ही आंटी बाप रे नाइटी में थी। बिना ब्रा के चूचियां एक-दम कसी हुई थी। मैं देखता ही रहा, बाल भी खुले हुए थे। गजब लग रही थी।
उन्होंने पूछा: खाना खाए हो?
मैंने चूचियों पे ध्यान देते हुए कहा: हां।
वो: इतनी रात में कहा से खा लोगे? नहीं खाए हो तो बोलो, बना दूं।
रात 11 बजे थे।
मैंने कहा: बना दीजिए।
उन्होंने कहा: हे भगवान, इस लड़के को देखो भूखा सोता है। बचपन से जानती हूं, फिर भी कहने में शर्म। बिना खाए नींद लगेगी बताओ जरा? चलो हाथ पैर धूल के आ जाओ, किचन में ही आओ बनाती हूं। यहीं खाते रहना, सब सो रहे है। लाइट जलेगी तो नींद खुल जायेगी।
मैं जल्दी से अपने रूम में कपड़े बदल कर, हाथ पांव धुल कर, अंडरवियर उतार कर, बस निक्कर और टी-शर्ट में पहुंचा। तब तक वो आटा मल चुकी थी। मैं बगल में उनके खड़ा हो गया। जब रोटियां बेल रही थी तो चूचियां डगमग-डगमग हो रही थी। मेरा ध्यान वहीं था, और लंड धीरे-धीरे खड़ा होने लगा।
रोटियां बेलते हुए वो बड़बड़ा रही थी: देखो आज मैं पहली बार आई तो पूछ ली। ये लोग दरवाजा खोलते हैं तो पूछते नहीं खाना खाया या नहीं। सुबह खबर लेती हूं इन लोगों की।
मेरा लंड तन चुका था। उन्होंने रोटी दी और रात की सब्जी फ्रिज में से निकाल कर दी। उनकी चूची देख मेरा ईमान डोलता रहा। लंड चूत-चूत बोलता रहा। मैं खड़े-खड़े खाने लगा। चार रोटी बना कर दे दिया उन्होंने, और जब चौकी बेलन स्लैब के नीचे रखने को झुकी, तो मेरा तना मोटा खड़ा लंड देख लिया। देख के नज़रंदाज़ करके अपने स्लैब पे चूतड़ टिका के खड़ी होकर बात करने लगीं।
वो: अब से ऐसा कभी नहीं करना। कितनी भी रात आओ, भूख लगे बता देना।
मैंने कहा: कितनी रात खिलाएंगी?
उन्होंने कहा: जितनी रात तुम भूखे रहोगे (ये कहने का अंदाज कुछ कामुक था)।
मैंने कहा: ऐसा करते-करते अपको गुस्सा आने लगेगा।
उन्होंने कहा: मैं तेरे थप्पड़ मार दूंगी। किसी को खाना खिलाने में मुझे परेशानी नहीं होती।
मैंने कहा: ठीक है।
फिर मैं खाकर थाली धोने लगा।
वो कहने लगीं: क्या कर रहे हो? छोड़ो उसे।
मैंने कहा: सब बर्तन धुल गए हैं। एक यही तो है धुल देता हूं।
मैं नहीं माना और वो मुझे खींचने लगी। मेरी कोहनी उनकी चूची से टकराने लगी। मेरे रोम-रोम में आग लग गई। एक पल में क्या-क्या एहसास होने लगा। मैंने भी मजा लेना शुरू किया। हाथ तो विम से गंदा था। उन्हें कोहनी से ही ढकेलने लगा।
मैं: आप हटिए।
धकेलने में बड़ी-बड़ी चूचियों से मेरी कोहनी फिसलने लगी। लंड अपने पूरे 6 इंच के आकार में आ गया था। तभी अंकल की आवाज आई-
अंकल: क्या कर रहे हो तुम लोग?
वो कहते हुए आने लगे: सोने नहीं देते हो।
पास आते हुए आवाज आई तो मैंने बर्तन छोड़ सबसे पहले झाग वाले हाथों ही खड़े लंड को निक्कर की इलास्टिक में दबा लिया। आंटी ने करते हुए साफ देखा।
अंकल ने आते ही कहा: क्या कर रहे हो?
आंटी बोली: देखिए इसको मैंने खाना खिलाया, तो बर्तन धोने लगा अपने। मैं नही धो सकती?
फिर लंड की तरफ इशारा करके बोली: देखिए झाग कहा तक लगाया है।
अंकल बोले: छोड़ दो बेटा, नहीं तो अगली बार से खाना भी नहीं मिलेगा।
मैंने कहा: बस हो गया।
और मैंने धुल के रख दिया।
अंकल बोले: आओ रूम में बैठते हैं, वैसे भी कल इतवार है, बातें हो कुछ।
फिर हम तीनों रूम में चले गए। अंकल बीच में थे, मैं और आंटी किनारे दोनों तरफ। आंटी का नजरिया बदला-बदला सा था।
वो एक हक के साथ बोली: अब से बर्तन धुला ना तो खाना नहीं खिलाऊंगी कभी।
बातें होती रहीं कभी विनय की शादी की, कभी मेरे जॉब की, इधर-उधर की। फिर मैं सोने लगा और कच्ची नींद थी, आंखें बंद हो गई थी, बस कानो में आवाज आ रही थी।
आंटी बोली: ये तो सो गया।
अंकल बोले: सोने दो, अपना ही बच्चा है, कौन सा अनजान है। और पहली नींद से जगाना नहीं चाहिए। ऐसा करो, तुम जाओ इसका रूम लॉक कर आओ।
मैंने करवट फेर ली, और आंटी रूम बंद करके आ गईं। कान में आवाज आ रही थी अभी। कमरे की लाइट बंद हो गई थी।
तभी आंटी की आवाज आई हल्के से: क्या कर रहे हैं आप? क्यों कुछ कर रहे हैं आप जब कुछ करना नहीं होता?
मैं समझ गया कि अंकल उनकी चूची दबा रहे थे। तभी इतनी बड़ी-बड़ी हैं।
फिर शांति से दोनों सो गए। अंकल सुबह उठे तो आंटी को जगाने लगे। मेरे भी कान में आवाज आई।
अंकल बोले: वॉक पे नहीं चलना क्या?
आंटी बोली: चलना है।
अंकल वाशरूम चले गए। अंधेरा था ही। उनके जाते ही आंटी करवट लेकर मेरे पास आ गईं, और अपना एक हाथ धीरे से मेरी छाती पर रख दी, और अपना घुटना धीरे से मेरे लंड पर। घुटना धीरे-धीरे रगड़ कर नाप ले रही थी। वो लंड का नाप ले रहीं थी। औरत को अपने मर्द की हर आदत पता होती है, कि वो कितनी देर क्या करता है। चूचियां मेरी कोहनी में सटी थीं।
जैसे ही उनको अंदाजा हुआ तो मुझसे हट कर अपनी जगह चली गईं। मैंने फिर अपना लंड सही किया, और करवट लेकर लेटा रहा।
अंकल आए और बोले: जाओ फ्रेश होकर आओ। मैं तब तक टंकी वगैरा भर देता हूं।
ये उन लोगों का डेली रूटीन था, मुझे लगा। जैसे ही आंटी वाशरूम गईं, मैं अपना लंड खूब सहलाने लगा। कुछ देर में आ गईं। उन्होंने लाइट ऑन की और फिर बंद कर नाइट बल्ब ऑन कर लिया। ये शायद इशारा था कि मैं देखूं। मैं दबी आंखो से देख रहा था उनको, पर उनको शायद खुली आंखों को दिखाना था।
मैंने क्या देखा, और आगे क्या हुआ, ये आपको अगले पार्ट में पता चलेगा। अगर कहानी मज़ेदार लगी हो, तो दोस्तों के साथ भी शेयर करें।