गोवा में मां और बेटे के बीच हुई चुदाई की कहानी

हमारा बिज़नेस काफी बढ़ गया था, एक और शोरूम खोलने के लिए हम जगह की खोज में लगे थे। मेरी और अभिषेक की चुदाई अब रोज़ नहीं हो पाती थी, क्यूंकि शाम के वक़्त मीटिंग के लिए लोग आ जाते, या फिर हम किसी दूकान की जगह देखने निकल जाते।

अगर किसी दिन अभिषेक किसी कारण गुस्से में होता, वो आकर मेरी चूत और गांड बजा देता था, और मार-मार के चोदता था। मुझे बजा कर उसका गुस्सा बिल्कुल शांत हो जाता और ये हम सब के लिए ही अच्छी बात थी। वरना किसी का गुस्सा किसी दूसरे पर निकल जाए, तो बुरा होता है।

अगर एक माँ अपने बच्चे को और एक प्रेमिका अपने प्रेमी के गुस्से को सहन कर शांत कर सकती है, तो इससे बड़ी कोई ताकत नहीं इस दुनिया में। देखते ही देखते 2013 का साल आ गया और इस साल मेरा दूसरा बेटा, अखिल, बारहवीं की परीक्षा देने वाला था।

अखिल के बारे में आपको बता दूँ। मेरा तीसरा हीरो, अखिल, सबसे शरारती था। पढ़ाई में ठीक-ठाक पर खेल कूद में तेज़। अपने स्कूल का फुटबॉल कप्तान था। खेल में होने के कारण बिलकुल फिट था। मेरे तीनो बेटो में अखिल सबसे लम्बा है। वो हमारे बिज़नेस में काफी इंटरेस्ट लेता था।

वो अभिषेक से बिज़नेस के बारे में बाते करता था, अपने सुझाव देता, कभी कभार दोनों में बहस भी होती पर दोनों भाई एक दूसरे के बातों को समझते भी और मान भी रखते थे।

एक छोटा सा अंतर ये था, कि अभिषेक का गुस्सा जल्दी शांत हो जाता पर अखिल को अगर गुस्सा आता तो वो कई दिनों तक रहता था। वो शायद फुटबॉल के खेल की वजह से भी हो सकता है।

अखिल की एक गर्लफ्रेंड भी थी। स्कूल में मशहूर होने की वजह से लड़की को इम्प्रेस करना ज़रा आसान हो जाता है। उसकी गर्लफ्रेंड थी भी बड़ी प्यारी सी।

अखिल के बारे में मैं और अभिषेक अक्सर बातें करते थे, कि कैसे उसे बिज़नेस में शामिल किया जाए। क्यूंकि बिज़नेस बढ़ाने के लिए अपने लोग चाहिए। हर काम आप कर्मचारियों के भरोसे छोड़ नहीं सकते।

तो एक शाम, हम सब रात में साथ में डिनर कर रहे थे। और हर दिन के तरह इधर-उधर की बातें कर रहे थे। तो इतने में अभिषेक बोल पड़ा, “अखिल, बारहवीं के बाद क्या सोचा है?”

इस पर अखिल ने जवाब दिया, “कुछ ख़ास तो नहीं, भैया। कोई नार्मल से कोर्स में एडमिशन ले लूंगा, और फुटबॉल पे कंसन्ट्रेट करूँगा। एक प्रोफेशनल क्लब ज्वाइन कर लूंगा जहाँ ठीक से ट्रेनिंग ले सकूँ।”

“तू अपना बिज़नेस क्यों नहीं ज्वाइन कर लेता?”, अभिषेक ने पूछा।

अखिल ने जवाब दिया, “नहीं भैया, मुझे स्पोर्ट्स में ही कुछ करना है। बिज़नेस वगैरह मेरे बस की बात नहीं।”

तो मैंने कहा, “अरे बेटु, तू ऐसा क्यों कह रहा है? बिज़नेस तेरे खून में है। तू जो हमें सुझाव देता है, वो उसी बिज़नेस के खून से निकलता है। और तू भैया से तो बातें करता ही रहता है।”

तो अभिषेक ने बीच में कहा, “हाँ। बिलकुल ठीक कह रही है माँ। तू मेरे ही कॉलेज में एडमिशन ले ले। अपनी फुटबॉल की ट्रेनिंग ले और बाकी बचा समय बिज़नेस में दे। कितने बजे होती है ट्रेनिंग तेरे क्लब में?”

अखिल ने जवाब देते हुआ बताया, “सुबह 5 से 8 और फिर शाम में 5 से 7।”

अभिषेक ने उत्साहित होकर कहा, “परफेक्ट। तू सुबह अपनी ट्रेनिंग करके घर आजा, थोड़ी देर रेस्ट करके 10 बजे तक ऑफिस आ। फिर शाम में वहीँ से क्लब चले जाना।”

अखिल सोचने लगा।

“और तू अगर स्पोर्ट्स में ही कुछ करना चाहता है तो स्पोर्ट्स वियर सेक्शन का प्लान कर। हम अपना स्पोर्ट्स वियर भी लॉन्च करेंगे।”, अभिषेक ने कहा।

इस बात पे अखिल की आँखें चमक गयी। अब उसका दिमाग दौड़ने लगा, “ठीक है, भैया। ठीक है, माँ। मैं भी सोच रहा था कई दिनों से आप लोगों को स्पोर्ट्स वियर वाला आईडिया दूँ। पर शायद ये मुझे ही करना है। मैं करूँगा बिज़नेस ज्वाइन। परीक्षा देकर मैं आऊंगा अपने बिज़नेस में।”

हम सभी खूब खुश हुए। बाकी दोनों मेरे अनमोल रतन, आरती और अभिनव, छोटे ही थे पर इन बातों को समझते थे। वो भी अपने बड़ी भैया को ताली देकर खूब खुश हुयें।

अगले दिन मैं और अभिषेक ऑफिस में चुदाई करके एक दूसरे से लिपट कर आराम कर रहे थे, तभी अभिषेक ने कहा, “माँ, कहीं घूमने चलें? आजतक हम कहीं घूमने नहीं गए हैं।”

“हाँ बेटा। माफ़ करना, मैं कहीं भी तुम लोगों को घुमाने नहीं ले जा पायी।”, मैंने दुःख ज़ाहिर करते हुए कहा।

“अरे वो सब बातें अब छोड़ो। जिस हफ्ते अखिल का एग्जाम ख़त्म हो रहा है, उसी हफ्ते उसका जन्मदिन भी है। वो 18 का हो जाएगा। क्यों न हम गोवा में उसका जन्मदिन मनाये?”, अभिषेक ने कहा।

मैं मन ही मन गोवा के ख्वाब देखने लगी।

“और हमारे कुछ कर्मचारी इतने सालों से हमसे जुड़े हैं, ये बिज़नेस जितना हमारा है, उनका भी है। क्यों ना उन्हें भी साथ ले चले हम? घूमेंगे, एन्जॉय करेंगे, अखिल का जन्मदिन भी वहीँ मनाएंगे। और उस वक़्त आरती और अभिनव के स्कूल में भी छुट्टी होगी।”, अभिषेक के आवाज़ में एक उत्साह था।

“हाँ, बेटु, ठीक कह रहा है। इतने सालो से काम कर-कर के थक गयी हूँ। हम सब कहीं एक साथ जाएंगे तो अच्छा लगेगा।” मैं भी उत्साहित हो गयी थी। “अभी किसी को कुछ मत बता। अखिल के लिए और बाकी सब के लिए सरप्राइज ही रख।”

“मेरा भी कुछ ऐसा ही प्लान है, माँ।”, अभिषेक ने आँख मारते हुए कहा।

दिन बीतते गए, अखिल की परीक्षाएं आ गयी। गोवा जाने की तईयारी सिर्फ मैं, अभिषेक और ऑफिस के एक दो कर्मचारी ही करते। हमारा परिवार 5 जनों का, हमारी दोनों नौकरानियाँ, हमारे पुराने ड्राइवर और उनके बाल-बच्चे, और हमारे ऑफिस के कुछ ख़ास पुराने वफादार कर्मचारियों को मिला कर कुल 35 जन के जाने का प्लान बना।

गोवा में हमने एक विला बुक किया था। गोवा में विला मिलते हैं किराए में जहाँ 12-15 कमरे होते हैं, किचन, बाथरूम, बालकनी, स्विमिंग पूल, गार्डन, हर कुछ रहता। ये खास कर परिवार या फिर दोस्तों के लिए ही होता है। बहुत अच्छी व्यवस्था है ये।

हम पांचो की टिकट हमने हवाई-जहाज़ में करवाई और बाकी सब की ट्रेन में।

अखिल की परीक्षाएं ख़तम हुयी और हमें दो दिन बाद निकलना था। परीक्षा देकर जब अखिल आया और अभिषेक ने सभी को प्लान बताया, सब ख़ुशी से उछल पड़े। मेरी छोटी आरती तो आकर मुझे गले लगाकर चूमने लगी। सब काफी खुश हुए, हमारी दोनों नौकरानियाँ भी बहुत खुश हो गयी। मैंने उन्हें कल ऑफिस आ जाने को कहा ताकि वहां से उन्हें कुछ नए कपड़े दे दूँ।

ऑफिस के कर्मचारियों ने हमसे बाकायदा आकर इजाज़त ली कि वो वहां शराब पी सकते हैं या नहीं। मैंने और अभिषेक ने उन्हें इजाज़त देते हुए चेतावनी भी दी की अगर वहां वो शराब के नशे में कुछ भी ओछी हरकत करेंगे, तो उन्हें नौकरी से निकाल दिया जाएगा। वो अपने हिसाब और अपनी क्षमता के अनुसार ही पिए।

अभिषेक ने ये भी बता दिया की वहां रहने, खाने और घूमने का खर्चा हम उठाएंगे, उनके शराब और इन सब चीज़ों का नहीं। हमारे कर्मचारी वैसे अच्छे ही थे।

कभी कभी अभिषेक मुझे चोदते हुए कहता, “माँ, मैं तुझे डोरियों वाली बिकिनी में देखना चाहता हूँ। तू पहनेगी ना स्विमिंग पूल में?”

“मेरे शोना, मैं तो तेरे लिए कुछ भी पहन लूं, मेरी जान। पर सारे कर्मचारी भी रहेंगे। उनके सामने पहनने में मैं असहज महसूस करुँगी। पर तू चिंता मत कर, तुझे निराश नहीं करुँगी मैं।”

अब मैं कोई जवान लड़की तो थी नहीं की डोरियों वाली बिकिनी पहनती। आलोक जी के साथ जब थी, उस वक़्त मुझे ऐसी चीज़ों की जानकारी भी नहीं थी। पर आजकल दिल्ली-बम्बई की हर लड़की ब्रा-पैंटी के जगह डोरियों वाली बिकिनी ही पहनती हैं और लड़के आकर्षित भी होते हैं। लेकिन अब मेरे बेटु ने मांग की है, तो उसकी इच्छा पूरी करनी पड़ेगी।

सारे कर्मचारी ट्रेन से निकल गए, और अगले दिन हम भी पहुँच गए गोवा। जो विला हमने बुक किया था, वो काफी शानदार था। नीचे के माले में कुछ 12 कमरे थे, और ऊपर के माले में सुइट जैसे बड़े-बड़े 4 कमरे थे। हमने सारे कर्मचारियों के लिए नीचे वाले माले में व्यवस्था करवाई थी, और हमारा परिवार ऊपर वाले कमरों में।

एक कमरे में दोनों छोटे बच्चे, आरती और अभिनव, एक कमरे में मैं और बाकी दोनों कमरों को मैंने दोनों बड़े भाइयों पे छोड़ दिया कि वो अपने हिसाब से देख लें। मैं थोड़ी चिंतित थी कि गोवा आएं हैं एन्जॉय करने लेकिन अगर मेरे शोना बेटु के साथ में चुदाई नहीं कर पाऊँगी तो क्या फायदा?

पर मेरा शोना बेटु ऐसे ही मेरे लिए प्यारा नहीं था, वो हर चीज़ को ध्यान में रखता था। उसने ज़रूर हमारे लिए भी कुछ न कुछ इंतज़ाम किया होगा।

उस दिन हम सब व्यवस्था वगैरह देखने में थक गए थे, तो हमने अगले दिन पास के बीच (Beach) में जाने का प्लान बनाया। हम सब ने खाना खाया और मैं अपने कमरे में चली गयी।

मेरे बच्चे और कुछ अन्य बच्चे बाहर खेल रहे थे, और बाकी सारे कर्मचारी ताश-लूडो वगैरह खेल रहे थे। मैं अपने कमरे में आकर रेस्ट करने लगी।

मैं अपने कमरे का विवरण ज़रा दे दूँ। ऊपर के जो चार कमरे थे, वो सुइट कमरे थे।

बहुत बड़ा कमरा, उसमे बड़ा सा गद्देदार बेड, एक सोफा सेट, टेबल, कुर्सी, बड़ी अलमारी, एक छोटी सी फ्रिज, बड़ा सा आईना। लेकिन मेरा कमरा ग्रैंड-सुइट था, इन सब चीज़ों के साथ मेरे कमरे के बाथरूम में एक बहुत बड़ा सा बाथ-टब था, बिल्कुल एक छोटे से स्विमिंग पूल जैसा।

खैर, मेरा मन कर रहा था, कि अभिषेक मुझे आकर चोदे पर वो अपने भाई बहन के साथ एन्जॉय कर रहा था और यहाँ पर मुमकिन भी नहीं था इतने लोगों के बीच चुदाई करना। यही सोचते-सोचते मेरी आँखें लग गयी। करीबन बीच रात 1 बजे कालिंग बेल बजी। मैं डर गयी की इस वक़्त क्या हुआ? कोई परेशानी तो नहीं।

फिर मैंने गेट खोला तो देखा अभिषेक दरवाज़े पर खड़ा था, वाइन की एक बोतल लेकर। मेरे दरवाज़ा खोलते ही वो अंदर आ गया।

मैंने उसे फुसफुसाते हुए उससे पूछा, “बेटु, तू यहाँ? इस वक़्त? कोई देख लेगा तो?”

और अभिषेक एक शैतानी मुस्कराहट देते हुए बिल्कुल अपने नार्मल तेज़ आवाज़ में कहने लगा, “हाँ माँ, मैं नहीं तो और कौन? तुझे चोदने आया हूँ मैं, माँ। तुझे प्यार करने आया हूँ।”

मैं घबराते हुए उसे चुप कराने लगी, “बेटा, तूने पी राखी है क्या? कोई सुन लेगा तो क्या कहेगा? चुप हो जा।”

इतने में वो हंस पड़ा, मुझे कसके पकड़ कर, अपने बाहों में लेकर पूछा, “माँ, तुझे पता है इस विला के एक दिन का किराया कितना है?”

मैं अभी हैरान थी और उसे आँखों से इशारा कर रही थी की धीरे बात करे और मैंने ना में सर हिलाया।

तो उसने जवाब दिया, “दो लाख रुपये।”

मेरी आँखें खुली की खुली रह गयी और मुंह से निकल गया, “क्या?”

“और पता है इतना किराया क्यों है?”, अभिषेक ने पूछा।

मैंने फिर ना में सर हिलाया।

“ये कमरा, माँ। सिर्फ इस कमरे के लिए इस पुरे विला का किराया एक दिन का दो लाख रुपये है।”

मैं असमंजस में थी। आँखों ही आँखों में पूछा की क्या खासियत है इस कमरे में?

तो अभिषेक ने दिवालो में लगे टाइल्स के तरफ इशारा करते हुए कहा, “वो देख रही है दीवारों को? तू इस कमरे में कितनी भी ज़ोर से बात कर, चिल्ला, कितनी भी ज़ोर से गाने बजा, इस कमरे से आवाज़ का एक कण भी बहार नहीं जाएगा, ये एक एकॉस्टिक रूम है। ये विला मैंने बहुत मुश्किल से बुक की है, सिर्फ तेरे लिए, माँ। बता, आज तुझे कैसे प्यार करूँ?”

अब मैं खुश तो थी, पर ऐसा कुछ भी होता है, मुझे पता नहीं था। मैंने डरते हुए अभिषेक से पूछा, “बेटा तू सच कह रहा है ना? अगर आवाज़ बहार चली गयी तो?

“शाम के वक़्त मैंने जो इतने तेज़ गाने बजाये, तूने सुना?”, अभिषेक ने सवाल किया।

मैं व्याकुल होकर उसके सवाल पर सवाल किया, “कब?”

तो अभिषेक ने मेरे कमर को दबाते हुए कहा, “बिलकुल!”, और मेरे होंठों पर अपना होंठ रख कर चूमने लगा।

बस, काफी दिनों के बाद बेफिक्र हो कर एक दूसरे के साथ समय बिताने का मौका मिला था। इसी बीच उसने पूछा, “माँ, तू बता, तेरी रोमांटिक चुदाई करूँ या फिर ?”

अभिषेक की ये बात भी मुझे बेहद अच्छी लगती थी, वो अपना दूसरा रंग भी तभी दिखता जब मैं उसे इजाज़त देती।

“आज मुझे एक गली की कुतिया के तरह चोद, बेटु। मेरे चूत का कबाड़ा कर दे। बहुत दिनों से अच्छे से रगड़ाई नहीं हुयी है मेरे चूत की।”, बस ये कहने की देर थी।

आज मुझे बस अपने चूत में मेरे बेटे का लंड चाहिए था, अभी न उसका लंड चूसने का मन था, ना उससे अपनी चूत चटवाने का। बस मेरी चूत को रौंद दे।

अभिषेक ने मुझे अपने बिस्तर पर पटक दिया और मेरे पयजामे को खींचकर मेरी पैंटी फाड़ दी, “आजा साली, मेरी रंडी माँ। बहन की लौड़ी, आज तेरे चूत की माँ चोद दूंगा।”

और ये कहकर उसने मेरे चूत में अपना लंड ज़ोर से घुसेड़ दिया और आज मेरे मुंह से चीख निकल गयी, “आह”। वो धक्के मार मार के चोदने लगा और मुझे गन्दी-गन्दी गालियां देता रहा, “साली, शर्म नहीं आती अपने बेटे से चुदती है। दो कौड़ी की रंडी है तू। मेरी माँ साली अपने बेटे की रखैल है। तेरी चूत का कचूमर बना दूंगा छिनाल साली, रांड की जनि, तेरी औकात गली के कुतिया से भी बत्तर कर दूंगा मैं भोंसड़ीवाली।”

और मैं उसके गालियों का जवाब भी गालियों से दे रही थी, “हाँ माधरचोद, भोंसड़ीके, चोद अपनी रंडी माँ को, भड़वे साले, बजा अपनी छिनाल की गांड, मार मुझे, चूत का अचार बना दे। पीस दे मुझे अपने लंड से बहनचोद।”

हम दोनों की गालियों की चिल्लम-चिल्ली पूरे कमरे में गूँज रही थी। और इसके साथ “फच फच फच्च थप ठप फच तह थप थप” की मधुर आवाज़ भी गूँज रही थी।

कभी कभी वो मेरी गांड पे ज़ोर ज़ोर से थप्पड़ मरता, कभी कभी मुंह पे थप्पड़ मारता।

मुझे और ज़्यादा उत्तेजना हो रही थी।

मैं चुदते हुए थकने लगी, तो ध्यान आया की आधा घंटे से ऊपर हो गया था, पर मेरा बेटा अभी तक झड़ा नहीं था। मुझे ज़रा आश्चर्य हुआ। मर्द चाहे कितने भी मज़बूत क्यों न हो, प्राकृतिक तौर पे 15 मिनट से ज़्यादा बिना झड़े नहीं चोद सकते।

पर मेरी वासना अपने चरम पे थी तो मैंने सवाल करके इस खूबसूरत चल रही लय को बिगाड़ना ठीक नहीं समझा।

इसी बीच अभिषेक मेरी गांड मारने लगा, “उफ़, क्या गांड है तेरी साली भड़वी। मन करता है तेरा गांड फाड़ दूँ।”

वो मेरे बालों को मुट्ठी में लपेट कर मेरी गांड बजा रहा था। मेरे बालों के खिंचाव से मुझे दर्द हो रहा था पर इस दर्द का मज़ा ही अलग है।

और बीस मिनट तक गांड मारते हुए अभिषेक करहाने लगा क्यूंकि कम से कम एक घंटे की लगातार चुदाई के बाद अब जाकर वो झड़ने वाला था। वो उठा, नीचे ज़मीन पर आकर खड़ा हो गया, और मेरे बालों को खींचते हुए मुझे ज़मीन पर बैठा दिया। उसने सारा वीर्य मेरे ऊपर ना गिराकर ज़मीन पर गिरा दिया।

अभिषेक से इतने महीनो से चुद रही थी मैं, लेकिन इतनी ज़्यादा मात्रा में वीर्य पहली बार देख रही थी। उसमे उसने थूका और मेरा चेहरा ज़मीन में घसींट कर कहा, “चाँट इसे रंडी, अपने बेटे के मुठ को चाँट। पूरे अच्छे से चाँट के साफ़ कर इसे बहन की लौड़ी।”

और मैं बिल्कुल एक आदर्श दासी की तरह उसके वीर्य और थूक के मिश्रण को चाँट कर पी गयी।

अब मेरा बेटु थोड़ा रहम दिखा कर मुझे उठाया और मेरे होंठो को चूमने लगा। और मुझे पकड़ के बिस्तर पर गिर गया, और मुझे जकड़ कर मेरे माथे को चूमने लगा। हम दोनों हांफ रहे थे।

जब हमारी सांस नार्मल हुयी, मैंने पूछा, “बेटु, आज क्या हो गया था तुझे, मेरे शोना?”

तो उसने मुस्कुराते हुए कहा, “तू एन्जॉय कर न माँ, मैं अपना सीक्रेट क्यों बताऊँ?”

कहानी अभी बाकी है दोस्तों।