घरेलू कामवाली की चुदाई

कुसुम के चूतड़ दबाने पर भी जब कुसुम चुप रही तो मैं ये तो समझ ही गया कि वो चुदाई के लिए तैयार है। मेरा लंड कुलबुला रहा था।

जाली वाला दरवाजा बंद करके मैं कमरे में पहुंचा। कुसुम बेड पर बैठी हुए थी। बेड पर बैठने का मतलब ही ये था की चुदाई करवाने का मन बना कर ही आयी हैं।

मैं जा कर कुसुम के सामने खड़ा हो गया। मैंने पायजामा ही डाला हुआ था। पायजामें में लंड का उभार साफ़ दिखाई दे रहा था।

कुसुम ने मेरी तरफ देख कर शर्माते हुए पूछा, “ये क्या है साहब ? आप तो कह रहे हो मोज़े ढूंढने हैं “?

अब वो शर्मा रही थी या शर्माने का दिखावा कर रही थी, ये तो वही जाने।

मैंने अपने लंड को पकड़ कर हिला कर कहा, “मोज़े भी ढूंढ लेंगे। ये भी कुछ ढूंढ रहा है”।

कुसुम उठने लगी और बोली, “बड़े खराब हो साहब आप। मैं चलती हूं “।

अब पहली बार में तो औरत मानती भी नहीं। कुछ तो न नुकुर करती ही है।

मैंने कुसुम के कंधे पर हाथ रख कर कहा, “क्या हुआ ? एक बार देखो तो सही। पूछ तो लो क्या ढूंढ रहा है ये, क्या चाहिए इसको “?

मैंने कुसुम को बेड पर बिठा दिया और साथ ही उसके भारी भारी मम्मों को हाथों से दबाने लगा।

कुसुम कसमसाई तो जरूर मगर बेड पर बैठ गयी, “नहीं साहब नहीं, ये क्या कर रहे हो”? कुसुम बोली तो जरूर मगर उसने उठने की कोई कोशिश नहीं की।

मैंने पायजामे का एलास्टिक खींचा और लंड बाहर निकाल कर कुसुम के मुंह के आगे लहराने लगा।

कुसुम ने सर उठा कर पूछा, “क्या करूं साहब “?

मैंने भी लंड पकड़ कर उसके होठों के बिलकुल पास कर दिया और बोला, “जो मन में आये करो – चूसना चाहो तो चूस लो। “।

कुसुम फिर बोली “ये क्या कह रहे हो साहब ? कोइ आ गया तो ? किसी को पता चल गया तो”?

“कोइ आ गया तो ? किसी को पता चल गया तो”?

जहां लड़की ने ये कहा, समझो वो कह रही है “आ जाओ – करो मेरे चुदाई।

बस जवाब में आदमी को भी बस इतना ही कहना होता है, “कोइ नहीं आएगा। किसी को पता नहीं चलेगा”।

मैंने भी कुसुम से कहा, ” कोइ नहीं आएगा। किसी को पता नहीं चलेगा “। और साथ ही लंड उसके होठों पर लगा दिया।

मेरा इतना ही कहना था और कुसुम ने लंड मुंह में ले लिया।

एक मिनट पहले शर्माने वाली कुसुम क्या जबरदस्त लंड चूस रही थी।

मुझे कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं की मेरी बीवी रूपा लंड चुसाई में कुसुम के आस पास भी नहीं ठहरती। अगर मेरा बस चले तो रूपा को बोलूं कुसुम से लंड चूसने का तरीका सीख ले।

कुसुम होठों से लंड को चूस रही थी और बीच बीच में अपनी जुबान सुपाड़े के छेद पर घुमाती थी।

क्या मजा आ रहा था। कुसुम ने लंड मुंह से बाहर निकल लिया I

मैं कहने ही वाला था कि कुसुम थोड़ा और चूसो, कि कुसुम ने लंड के सुपाड़े के नीचे वाले हिस्से को अपनी जुबान से खुजाना शुरू कर दिया।

लंड की इस जगह पर तो मर्द खुद भी उंगली से खुजाये तो मजा आता है, ये तो औरत की जुबान थी।

इस लंड के सुपाड़े के नीचे वाले भाग के खुजाने में जादू था। मेरा लंड फुंकारे लेने लगा।

कुसुम की शर्म तो कब की जा चुकी थी। बोली, “क्यों साहब मजा आ रहा है “?

मैंने भी कहा, “बहुत मजा आ रहा है कुसुम। फिर ऐसे ही जुबान से लंड के सुपाड़े के नीचे खुजाओ”।

कुसुम बोली, “देखना साहब कहीं मुंह में ही ना मजा निकाल देना “।

मैंने भी हंस कर कहा, “उसकी चिंता ना करो कुसुम, मुंह में नहीं निकलेगा। जहां निकलना है वहीं निकलेगा – चूत में। रगड़ कर चुदाई होगी आज तुम्हारी “I

कुसुम भी कौन सी कम थी। दस घरों में कपड़े धोने वाली धोबन थी – बोली, “मैं भी तो ऐसे ही कह रही थी साहब, मुझे मालूम है आज मस्त चुदाई होगी”।

कुसुम मेरा लंड हाथ में पकड़ कर बोली, “एक बात बोलूं साहब, लंड तो बड़ा मस्त है आपका मोटा और सख्त। हाथ में भी नहीं आता। बीबी जी बड़ी किस्मत वाली है जिनको ऐसा लंड मिलता है”।

कुसुम हंस कर बोली, “एक बात बताओ साहब क्या पिलाती है बीबी जी इसको। मुझे बताना, मैं भी पिलाऊंगी अपने मर्द के लंड को”।

मैंने भी हंस कहा, “बीबी जी से ही पूछ लेना क्या पिलाती है इसको “। फिर मैं कुछ रुक के बोला, “कुसुम अब तो तू भी लिया करेगी इसको ”

कुसुम ने लंड के नीचे के हिस्से को एक बार फिर जुबान से खुजलाया। मेरी सिसकारी निकली “आआह कुसुम”।

कुसुम बोली,”बस साहब डालो इसको जहां डालना है “।

मेरा मन तो कुसुम के मोटे मोटे चूतड़ों में छुपी गांड चोदने का था।

मैंने पूछ ही लिया,”कहां लेगी कुसुम, आगे या पीछे “।

कुसुम बोली, “साहब आज तो चूत की आग ही बुझाओ”। ये कह कुसुम बेड के किनारे पर लेट गयी और टांगें उठा कर चौड़ी कर दी।

कुसुम की झांटों के बाल स्याह काले थे। मैंने कहा “कुसुम, चूत के बाल साफ़ करने हैं ? क्रीम है मेरे पास। तू ऐसे ही लेटी रह मैं क्रीम लगा कर बाल साफ़ कर देता हूं”।

कुसुम बोली, “साहब चूत की झांटों के बाल साफ करना शहर की लड़कियों का फैशन है। हम लोग नहीं हटाती झांटों के बाल”।

मैंने भी पूछा, “ऐसा क्यों कुसुम ? ऐसा क्या इन झांटों के बालों में “।

कुसुम हंस कर बोली, “साहब एक बार सूंघ कर देखो। इन झांटों की खुशबू और चूत के स्वाद से ही मर्दों के लंड खड़े हो जाते हैं”।

फिर बात जारी रखते हुए बोली, “साहब एक बात बोलूं ? चूत का पानी और औरत का मूत – दोनों मिल कर ऐसी खुशबू बनाते हैं कि सूंघते ही बड़े बड़े ब्रह्मचारी भी मुट्ठ मारने लग जाते हैं “।

कुसुम क्या ज्ञान की बात बता रही थी – हंसते हुए बोली, “साहब देखा नहीं आपने – घोड़ा, सांड, कुत्ता – ये सब चुदाई से पहले चूत सूंघते हैं। चूत सूंघते ही उनके लंड बाहर आ जाते हैं”।

मैंने भी सोचा, ये घोड़ा, सांड, कुत्ते वाली बात तो सही बोल रही है कुसुम।

फिर अपने झांटों पर हाथ फेर कर बोली, ” आओ साहब आप भी एक बार सूंघ कर देखो। कसम से आप बीबी जी की झांटों के बाल साफ़ कराना भूल जाओगे “।

मैं हंसा और झुक कर कुसुम की चूत चौड़ी की और जुबान चूत में घुसेड़ दी।

मेरा नाक कुसुम की झांटों पर था।

कुसुम ने बिलकुल ठीक कहा था। झांटो में से उठ रही अजीब सी खुशबू – चूत के पानी और औरत के मूत से मिल कर बनी खुशबू – सच में ही लंड को और सख्त कर रही थी।

चूत चूसने और झांटों की खुशबू से जब मेरा लंड फनफनाने लगा तो मैं खड़ा हो गया और बोला, “सही कहा था तुमने कुसुम। लंड सख्त हो गया है। चुदाई मांग रहा है। मैं निरोध लाता हूं”।

कुसुम बोली, “छोड़ो साहब निरोध। क्यों चुदाई का मजा आधा कर रहे हो। हमारे मर्द नहीं चढ़ाते निरोध लंड पर। उनके पास तो टाइम ही नहीं होता निरोध चढ़ाने का”।

“खाना खाते हैं और चढ़ जाते हैं ऊपर चुदाई करने। इनका बस चले तो हर दुसरे महीने पेट से कर दें हमें। साले माहवारी भी ना आने दें। इसी लिए हमे कुछ ऐसा करना पड़ता है की बच्चा ही न ठहरे”।

“इसी चक्कर में तो साहब मैंने कोपट्टी लगवाई हुई है। बेफिक्र हो कर चुदाई करो”।

मैंने पूछा ,”कोपट्टी ? तम्हारा मतलब कॉप्पर टी “?

कुसुम बोले, “हां साहब वही जो आप कह रहे हैं। कालोनी की तकरीबन सभी औरतों ने ये लगवाई हुई है। खुल के चुदाई करवाओ, कोइ झंझट नहीं”।

बस तो अब कुसुम की चुदाई रह गयी थी – मगर नहीं। अभी कुसुम ने ज्ञान की कुछ और बातें भी बतानी थीं।

जैसे ही मैं लंड कुसुम की चूत में डालने लगा, मुझे लगा कुसुम के चूत बिलकुल सूखी है। चूत ने पानी तो छोड़ा ही नहीं जो अक्सर लड़कियों की चूत चुदाई के ख्याल से ही छोड़ देती हैं।

मैंने कुसुम को पूछा,”क्या बात है कुसुम, चूत अभी लंड लेने के लिए तैयार नहीं “?

कुसुम ने जवाब दिया, “तैयार है साहब। आग लगी हुई है मेरी चूत में। आप चोद क्यों नहीं रहे। लंड डालो साहब और ठंडा करो मेरी चूत को – पानी निकालो इसका”।

फिर कुसुम थोड़ा रुकी और फिर हैरानी से पूछा, “मगर साहब आपने ऐसा क्यों कहा की मेरी चूत तैयार नहीं है”?

मैंने जवाब दिया, “ऐसे ही। पानी नहीं छोड़ा तुम्हारी चूत ने। गीली नहीं हुई “।

कुसुम जरा सा हंसी, “अरे साहब हम मेहनत करने वालियों की चूत पानी नहीं छोड़ती। तभी तो चुदाई में मजा आता है। रगड़ रगड़ कर चुदाई होती है। वो क्या हुआ कि लंड फिसल के चूत में बैठ गया – जरा सा भी रगड़ा नहीं लगा”।

कुसुम बोली, “आप साहब बस जरा सा थूक लगाओ अपने लंड पर और देखो कैसे रगड़ रगड़ कर जाता है लंड अंदर। आपका मोटा लंड तो और भी रगड़ कर जाएगा मेरी चूत में। डालो साहब अब और देर मत करो। अब नहीं रहा जा रहा “। कहते हुए कुसुम ने जोर से चूतड़ घुमाए।

मैंने थोड़ा थूक कुसुम की चूत के छेद के ऊपर लगाया – चूत के अंदर नहीं। मैं भी तो रगड़ाई के मजे लेना चाहता था।

लंड कुसुम की चूत के छेद पर रख जैसे ही अंदर धकेला, सच में ऐसा लगा कुंवारी चूत चोदने लगा हूं। कुसुम सही कह रही थी। चूत अगर पानी छोड़ दे तो लंड फिसल कर अंदर चला जाता है।

मेरे दिमाग में आया, माया के साथ आने वाले अट्ठारह बीस साल की सुमन की चूत भी पानी नहीं छोड़ती होगी ? क्या उसकी भी ऐसी ही काली काली झांटें होंगी ?

तभी कुसुम बोली, “क्या सोचने लगे साहब – कहां ध्यान है। चुदाई करो। लगाओ धक्के “।

मैंने कुसुम की जांघों को पकड़ा और एक झटके से लंड कुसुम की चूत में डाल दिया। कुसुम की सिसकारी निकली “आआह साहब …. आज चुदाई का असली मजा आएगा”।

इसके बाद मैंने बीस पच्चीस मिनट कुसुम की वो चुदाई की कि उसकी सिसकारियां ही बंद नहीं हो रही थीं …. आअह …. आअह साहब, मजा आ गया आज तो चुदाई का…. आअह…..साहब चोदो साहब आह।

कुसुम जोर जोर से चूतड़ घुमा रही थी। कुसुम की लगातार की सिसकारियों, और लगातार चूतड़ घूमने मुझे तो ये भी समझ नहीं आया कि कुसुम कब झड़ी, झड़ी भी या नहीं या फिर एक से ज्यादा बार झड़ी।

बस अब मेरा भी लंड पानी छोड़ने वाला था।

आआह…. कुसुम…. आअह… कुसुम की आवाज के साथ मेरे लंड का ढेर सारा गरम पानी कुसुम के चूत में चला गया।

कुसुम ने जोर से चूतड़ घुमाए और निढाल हो गयी। मैं कुछ देर ऐसे ही लंड कुसुम की चूत में डाले खड़ा रहा।

फिर मैंने लंड निकाला और बेड पर ही कुसुम की बगल में बैठ गया।

थोड़ी देर में कुसुम उठी। नीचे बैठ कर मेरा लंड थोड़ा चूसा और बाथ रूम में चली गयी।

थोड़ी ही देर में आयी और बोली, “साहब आप तो बड़ी ही मस्त चुदाई करते हो। हमारे मर्द तो दिन भर के थके आते हैं, खाना खाते हैं, लंड अंदर डालते हैं अपना पानी छुड़ाते हैं और सो जाते हैं। उनको इस बात से कोइ लेना देना नहीं कि घरवाली का पानी छूटा या नहीं। आप ने तो चुदाई का पूरा मजा दे दिया। पता नहीं कितनी बार पानी छूटा मेरा”।

फिर चलते हुए कुसुम बोली, “अच्छा साहब चलती हूं। परसों आऊंगी। परसों ही कपड़े भी धो दूंगी। कह कर कुसुम चली गयी।

सच ही कह रही थी कुसुम I “चुदाई के वक़्त चूत सूखी ही रहनी चाहिए तभी असली चुदाई होती है”।

अगले दिन सुबह जब काम वाली माया आयी तो बड़ी अजीब तरीके से मुझे देख रही थी और मुस्कुरा भी रही थी। मुस्कुराती तो मुझे देख कर वो कभी भी नहीं थी। बात करते वक़्त वही आगे पीछे खुजली ही करती थी। आज ऐसा क्या नया हो गया जो माया मुस्कुरा भी रही है “?

मेरे मन में शक सा पैदा हुआ, कहीं कुसुम ने इसे हमारी चुदाई की बाबत बता तो नहीं दिया?

कुछ तो था माया की मुस्कुराहट में ।

फिर ख्याल आया की अगर बता भी दिया है तो क्या हुआ। काम और आसान हो जाएगा सुमन को चोदने का। माया को चोदने का ख्याल मेरे मन में उस समय भी नहीं था।

तीसरे दिन कुसुम जल्दी आ गयी। अक्सर कुसुम दोपहर के आसपास आती थी। माया पहले से ही आयी हुई थी। पांच दिन के कपड़े धोने के लिए पड़े थे। कपड़ों का ढेर लगा हुआ था। शायद इसी लिए कुसुम जल्दी आ गयी थी।

माया ने काम खत्म किया और “चलती हूं” कह कर मेरी तरफ मुस्कुरा कर देख कर चली गयी।

मैं बाथरूम में गया जहां कुसुम कपडे धो रही थी। मैंने कहा, “कुसुम कपडे बाद में धो लेना”।

बाद में ? मगर किसके बाद में ? ये बताने की जरूरत कुसुम को नहीं पडी।

कुसुम ने पूछा, “माया गयी क्या साहब “?

मैंने जवाब दिया, “हां अभी अभी निकली है”।

कुसुम बोली,”तो थोड़ा रुको साहब, माया कहीं आ ही ना जाए वापस किसी बहाने से”।

मैं खड़ा लंड ले कर वापस ड्राईंग रूम में आ गया और टीवी देखने लगा। पंद्रह मिनट बाद कुसुम आ गयी। माथे पर हल्का पसीना था।

मैंने कहा, “कुसुम ऐसा करो चाय बना लो अपने लिए भी और मेरे लिए भी। थोड़ा आराम कर लो। आज तो ऐसे भी तुम जल्दी आ गयी हो”।

“ठीक है साहब” बोल कर कुसुम चाय बनाने लगी।

कुझे रहा नहीं जा रहा था। मैं उठ कर किचन में चला गया। कुसुम चाय बना रही और उसकी पीठ मेरी तरफ थी।

कुसुम के मोटे चूतड़ देख कर मुझसे रहा नहीं गया। मैं पीछे गया और कुसुम को कमर से पकड़ लिया।

मेरा खड़ा लंड कुसुम के चूतड़ों पर पर रगड़ खा रहा था।

कुसुम ने मेरे हाथों पर अपना हाथ रक्खा और कहा, ” क्या हुआ साहब आपका तो खड़ा है। चाय बनाऊं या रहने दूं”।

मैंने कुसुम के चूतड़ों को पकड़ कर जोर से दबाया और कहा, “नहीं नहीं कुसुम चाय बनाओ तुम्हारे मस्त चूतड़ देख कर रहा नहीं गया …..बस और कुछ नहीं”।

कुसुम ने मेरी तरफ देखे बिना ही कहा, “कोइ बात नहीं साहब, मर्दों का ही तो खड़ा होता है I और अगर औरत के चूतड़ देख कर भी अगर मर्द का खड़ा ना हुआ तो वो मर्द काहे का।