दोस्त के दोस्त की गांड चोदने की मस्त कहानी

तो मित्रो, हम बड़े हो चुके थे और हमारे लुल्ले लंड बन चुके थे। स्कूल में लड़कों के साथ बैठ कर मुट्ठ मारने का सिलसिला चालू था। इसमें होता ये था कि युग सब के लंड पकड़-पकड़ कर उनकी मुट्ठ मारता और पहले उनके लंड का पानी निकालता और फिर अपने लंड की मुट्ठ मारता।

वैसे भी लंड के मजे लेने के लिए स्कूलों में या तो मुट्ठ मारना ही तो एक आसान रास्ता होता है, और दूसरा रास्ता गांड चुदाई का। चूत तो खाली बातों में ही होती है, जब लड़के मिल कर मुट्ठ मारते हैं या फिर सपनों में दिखाई देती है जब नाईट फाल यानी स्वप्न दोष होना होता है।

नाईट फाल, स्वप्न दोष मतलब कोइ सोते हुए कोइ जान पहचान वाली सुन्दर सी नाजुक लड़की सपने में आती है, और टांगें उठा कर चूत खोल करके बिस्तर पर लेट जाती है। हम जैसे ही उसकी चूत में लंड डालने लगते हैं, लंड चूत को छूता भी नहीं कि लंड पानी छोड़ जाता है और हमें सपने में सच मच वाला मजा आ जाता है और साथ ही हमारी नींद भी खुल जाती है।

ये होता है नाईट फाल, रात को सोते हुए लंड का पानी निकल जाना या स्वप्न दोष। अब इसे स्वप्न दोष क्यों कहते हैं, ये बात समझ नहीं आयी और इसमें दोष वाली बात कहां से आ गयी।

ये तो कुदरती है और दुनिया जहान में सभी को होता है। जो इसको दोष बोलते है, उनको भी जवानी में ये हुआ होगा। पाखंडियों से भरी पड़ी है ये दुनियां।

जैसा कि मैंने बताया, हम नए-नए जवान होते लड़के जब लड़कियों के बातें करते थे, तो अक्सर यही बातें करते थे कि जितना बड़ा लंड होगा उतनी लड़कियां ज्यादा फसेंगी और उतना ही चुदाई का मजा ज्यादा आएगा। लड़कियों की बातें करते-करते हमारे लंड खड़े हो जाते थे।

कभी-कभी तो नौबत मुट्ठ मारने तक भी पहुंच जाती थी। मगर युग हमारी इन चूत और चुदाई वाली बातों में कभी दिलचस्पी नहीं लेता था, और ना ही उसका लंड ऐसे बातें सुन कर खड़ा ही होता था।

— युग की गांड चुदाई।

तभी लंडों की पकड़न-पकड़ाई वाले हमारे एक दोस्त ने मुझे बताया कि युग अपनी गांड में दोस्तों के लंड डलवाता है और गांड चुदाई करवाता है। उसी दोस्त ने मुझे ये भी बताया कि जहां कई लड़के अक्सर एक-दूसरे की गांड में लंड डालते हैं, युग किसी की भी गांड में लंड नहीं डालता, बस अपनी ही गांड में डलवाता है।

स्कूल टाइम में इस एक-दूसरे की गांड में लंड डालना आम बात है। अब क्योंकि हमारे यहां अभी भी गांडू होना बुरा माना जाता है, कोइ किसी का भेद ना खोले इस लिए दोस्त मिल कर एक-दूसरे की गांड में लंड डाल कर मजे लेते हैं। इस का सब से बड़ा फायदा तो यही होता है कि कोइ किसी का भेद नहीं खोलता। इसी का नाम है, “हींग लगे ना फिटकड़ी रंग चोखा।”

जब सारे ही एक-दूसरे की गांड चोद रहे हों तो कौन किसका भेद खोले? इस एक-दूसरे की गांड चोदने को गांडुओं की भाषा में बारी-बट्टा भी कहा जाता है, यानी बारी बटाओ। समझने के लिए कहा जाये तो अदला-बदली। गांड चुदाई की अदला-बदली। किसी की गांड में लंड डालने का मेरा भी मन करता था। अब मैं क्योंकि अपनी गांड में लंड नहीं डलवाता था, इसलिए कोइ लड़का मुझसे भी अपनी गांड में लंड नहीं डलवाता था।

आखिर को लंड तो मेरा भी खड़ा होता ही था। कब तक मुट्ठ ही मारते रहो। चूत तो मिलती नहीं थी, ऐसे में गांड में लंड डाल कर चुदाई का मजा लेना ही एक रास्ता बचता था। जब से मुझे पता चला कि युग अपनी गांड में दूसरे लड़कों का लंड डलवाता था तो ये सुन-सुन कर मेरा भी मन युग की गांड चोदने का होने लग गया था। युग था तो मेरा सबसे पक्का दोस्त, मगर उसने मुझे कभी लंड अपनी गांड में डालने को नहीं बोला था। मुझे भी उसे कहते हुए शर्म सी आती थी।

एक दिन मैंने और युग ने एक घर में मुट्ठ मारने सुनसान कोना ढूंढा। अभी लंड खड़े किये ही थे कि युग बोला, “राज मेरी गांड में लंड डालेगा।” मुझे तो विश्वास ही नहीं हुआ। दोस्तों की बातें सुन-सुन कर कई बार युग की गांड में लंड डालने का मन हुआ था, मगर हिचकिचाहट के मारे कह ही नहीं पाया था। और किसी दूसरे लड़के के साथ भी ऐसी गांड चुदाई नहीं हुई थी।

मैं फ़ौरन तैयार हो गया। बस इतना ही कह पाया, “युग मजाक तो नहीं कर रहा?” युग ने पेंट उतारी और जमीन पर कुहनियों और घुटनों के बल उल्टा हो कर चूतड़ ऊपर कर दिए और बोला, ” आजा।”

मैंने युग के चूतड़ चौड़े करके लंड गांड के छेद पर रक्खा ही था कि युग बोला, “यार क्या कर रहा है? कभी गांड में डाला नहीं किसी के? लंड और गांड पर थूक लगा पहले। थूक लगा कर गांड को चिकना करेगा, तभी ये तेरा हाथी की सूंड जैसा लंड अंदर जाएगा।”

मैंने ढेर सारा थूक अपने लंड और युग की गांड के छेद के ऊपर डाला और लंड अंदर गांड में धकेलने लगा। युग ने मुझे समझाया कि कैसे धीरे-धीरे लंड अंदर डालना है। पहले थोड़ा डालना है फिर बाहर निकाल कर थोड़ा थूक और लगा कर फिर से लंड अंदर डालने की कोशिश करनी है।

जैसे-जैसे युग बोलता गया, मैं वैसा-वैसा ही करता गया। थोड़ी कोशिशों के बाद लंड जड़ तक युग की गांड में बैठ गया। मेरे लिए ये पहली बार था, मगर युग की बातों और हरकतों से लग रहा था वो इसका पूरी तरह आदि हो चुका था।

जैसे ही लंड जड़ तक बैठा, मैंने धक्के लगाने शुरू कर दिए। पहली-पहली गांड चुदाई और युग की गांड का टाइट छेद। मेरे लंड के ऐसी रगड़ाई हुई कि पांच मिनट की रगड़ा-पच्ची के बाद ही मेरे लंड में से गरम पानी की पिचकारी युग की गांड में निकल गयी। जैसे ही मेरे मुंह से निकला, “आह युग निकल गया मेरा, मजा आ गया मुझे”, युग ने भी नीचे हाथ कर के मुट्ठ मारनी शुरू कर दी।

मेरा लंड बैठने लग गया था। मगर मैं युग की गांड में लंड डाले-डाले युग के लंड का पानी निकलने का इंतजार करने लगा। दो-तीन मिनट के बाद ही युग ने भी इक आआआह की सिसकारी ली, जोर के चूतड़ हिलाये और ढीला हो कर आगे की तरफ हो गया।

मेरा बैठा हुआ लंड युग की गांड में से फिसल कर बाहर निकल गया। युग की गांड में से मेरे लंड का छोड़ा पानी बाहर की तरफ निकलने लगा। युग ने पीछे हाथ करके बाहर निकलता हुआ पानी अपने चूतड़ों पर मल लिया। ये मेरी और युग की पहली गांड चुदाई थी। इसके बाद तो गांड चुदाई का सिलसिला भी चालू हो गया।

अब हम स्कूल की पढ़ाई पूरी कर चुके थे। पढ़ाई में मैं और युग एक जैसे ही थे – निक्क्मों से कुछ ही बेहतर। पास तो आराम से हो जाते थे, मगर कभी सेकंड डिवीज़न से आगे नहीं बढ़ पाते थे।

युग को पता था उसे जिमीदारी ही संभालनी थी, और मेरे रिटायर पटवारी पापा ने लखनऊ के गोमती नगर इलाके दो प्लाट थे। पापा ने बताया ही हुआ था कि इनमें उनका का इरादा बाराबंकी के पास वाले खेत बेच कर इन प्लॉटों पर कुछ काम शुरू करने का था। अब मुझे पता ही था जो भी पापा शुरू करेंगे, आखिर में संभालना तो मुझे ही था।

हालांकि बाराबंकी में भी कालेज थे, लेकिन युग और मेरे हमारे दोनों के बापों ने सोचा इन बाराबंकी के गधों को बड़े शहर की हवा खिलानी चाहिए नहीं तो चूतिये के चूतिये ही बने रहेंगे।

सोच समझ कर मेरे और युग के पापा ने फैसला किया कि कालेज की पढ़ाई हमें लखनऊ शहर में जा कर करनी चाहिए, जिससे हमें दुनियादारी की कुछ समझ आये, और सारी जिंदगी हम चूतिये ही ना बने रहें। साथ ही हमारी बकलोल, बकचोदी, झट्टू, फट्टू वाली भाषा में भी कुछ सुधार आ जाएगा।

युग को बाराबंकी से बाहर घर से दूर भेजने का एक और कारण भी था। वो था युग की हर किसी पर रोब गांठने और गाली-गलौच करने की आदत। वक़्त के साथ-साथ युग की ये आदत कम होने की बजाए बढ़ती जा रही थी। इसी रोब गांठने के चक्कर में युग का कई बार लड़कों के साथ झगड़ा भी हो जाया करता था।

एक दिन तो कमाल ही हो गया। हुआ ये कि मैं और युग स्कूटी पर जा रहे थे कि किसी वजह से युग चौराहे पर एक पुलिस वाले से भिड़ गया और उसे भी बोल दिया, “तू जानता नहीं मैं कौन हूं? मैं युग त्रिपाठी हूं, देस राज त्रिपाठी का बेटा। मुझसे मत उलझना। अपने आप में ही एक ब्रांड हूं मैं।”

यूपी की पुलिस, और ऐसी धौंस सह ले? ये पुलसिये लोग तो आज कल बड़े-बड़े बाहुबलियों की गांड चोद देते हैं, वो भी सूखी, फिर हम किस खेत की मूली थे। ये तो शुक्र है वो पुलिस वाला देस राज अंकल को और साथ ही मेरे पटवारी बाप को जानता था, नहीं तो कहीं सुनसान जगह पर ले जा कर उसने हम दोनों गांड का भी भुर्ता बना दिया होता।

पुलसिया हमें पकड़ कर सीधा युग के घर ही ले आया और हम दोनों को अंकल के हवाले कर दिया, और पूरी कहानी बता दी। अंकल पुलसिये को अंदर ले गए और समझा बुझा कर मामला रफा-दफा करवाया।

अंकल ने पूरी बात सुन कर मेरे पापा को भी बुलवा भेजा और युग की सारी कारगुजारी उन्हें भी बता दी। इसके बाद तो अंकल और मेरे पापा ने पक्का फैसला कर लिया इन गधों को कहीं बाहर घर से दूर भेजने में ही भलाई है, तभी इनकी हवा भी निकलेगी और साथ ही इनकी अक़्ल भी ठिकाने पर आएगी।

जो भी था, फैसला हो गया कि हमें घर से बाहर जा कर पढ़ाई करनी चाहिए। इसके बाद लखनऊ के कालेज में हमारा एडमिशन हो गया। युग के पापा ने ख़ास हिदायत दी कि रहना हॉस्टल में है या फिर बाहर कहीं कमरा ले कर। सुभद्रा बुआ के घर नहीं रहना है।

कालेज के हॉस्टल में हमे कमरा मिल गया और हमारी कालेज के पढ़ाई चालू हो गयी। हम दोनों शनिवार को कालेज के बाद सुभद्रा बुआ के घर चले जाते, और सोमवार को हम दोनों सीधे वहीं से कालेज निकल जाते।

चित्रा भी कालेज जाने लगी थी। अब उसकी आदतें और उसके शौक भी बदलने लगे थे। शरीर और भर चुका था और हल्का फैशन भी करने लगी थी।

मैं जब युग के साथ युग की बुआ के घर जाता तो चित्रा मुझसे बड़ी ही हंस-हंस कर बात करती। कभी-कभी तो जब हम अकेले होते तो मेरा हाथ पकड़ कर मेरी तरफ देखने लगती। दिल तो करता था उसका चुम्मा ले लूं मगर हिम्मत ही नहीं पड़ती थी।

चित्र जब मेरा हाथ पकड़ती तो मेरे शरीर में अजीब सी झुरझुरी होने लगती थी। मगर मैं अपना हाथ छुड़ाता नहीं था और साथ ही उसका हाथ दबाता रहता था।

–चित्रा का चुम्मा और लंड पकड़वाई।

ऐसे ही एक दिन जब चित्रा ने मेरा हाथ पकड़ा हुआ था तो मैंने चित्रा को अपनी तरफ खींचा और उसके होठों का एक चुम्मा ले लिया। चित्रा हंसी और होंठ पोंछते हुए बिना कुछ बोले भाग गयी।

एक दिन चित्रा मेरे पास खड़ी थी, कुछ ज्यादा ही पास थी। मैंने चित्रा के होठों के चूम लिया। चित्रा ना कुछ बोली, ना भागी। मैंने चित्रा की छोटी-छोटी चूचियां हल्के से दबा दी। चित्रा ने फिर भी कुछ नहीं कहा।

इतना सब होने के बाद मेरा लंड खड़ा होने लगा था। मुझे पता नहीं क्या हुआ मैंने चित्र का हाथ अपने हाथ में लिया और अपना खड़ा लंड चित्रा के हाथ में पकड़ा दिया। चित्र ने फ़ौरन हाथ हटाया और, “धत्त गंदी बात”, बोल कर हंसती हुई भाग गयी।

इसके बाद तो मौक़ा मिलते ही चित्रा की चूचियां दबाने, होटों पर किस्स करने के साथ-साथ लंड हाथ में पकड़वाने का सिलसिला भी चल निकला। अब चित्रा लंड पकड़ लेती लेकिन कुछ ही देर में छोड़ देती थी। मेरे लिए इतना ही बहुत होता था। कम से कम एक लड़की तो लंड पकड़ रही थी।

अब जब भी हम सुभद्रा बुआ के घर जाते चित्रा अब भी मेरे आस-पास घूमती। मैं चित्रा को कई बार लंड पकड़वा चुका था। चुम्मियां लेना और छोटी-छोटी चूचियों पर हाथ फेरना तो अब आम से बात थी। चित्रा ने भी कभी मुझे इसके लिए ना नहीं की थी, उल्टा मौके की तलाश में रहती थी कि कब मौक़ा मिले और वो मेरे पास आ जाए। उसे भी अब इन सब में उसे भी मजा आने लग गया था।

शनिवार इतवार जब हम बुआ के घर जाते थे तो हम दोनों एक अलग कमरे में सोते थे, एक ही बिस्तर पर। एक रात सोते हुए मुझे लगा कि युग ने मेरा लुल्ले से पूरा लंड बन चुका था, पकड़ा हुआ है।

मैंने कहा, “युग ये क्या कर रहा है, दरवाजा खुला है? क्या बात है अंदर लेने का मन हो रहा है क्या?” लेकिन युग कुछ नहीं बोला और मेरे लंड को सहलाता रहा। मेरा लंड खड़ा हो गया।

तभी युग ने अपना पायजामा उतारा और और दबी आवाज में बोला जिससे कोइ सुन ना ले। “राज जा दरवाजा बंद करके आ और पीछे डाल। बड़ा मन कर रहा है आज।”

बहुत दिन हो गए थे मैंने भी युग की गांड में लंड नहीं डाला था। बाराबंकी में भी ये सब बड़ा छुप-छुप कर करना पड़ता था, कभी किसी सुनसान कोने में तो कभी भैसों के तबेले में। डर ही लगा रहता कोइ आ ही ना जाये। सब काम जल्दी-जल्दी में होता था।

मगर यहां बुआ के घर में तो बात ही कुछ और थी। मेरा और युग का अलग कमरा था। हॉस्टल में भी कोइ ना कोइ चूतिया बैठा ही रहता था।

जैसे ही युग ने मुझे लंड गांड में डालने को बोला, मेरा लंड छलांगें लगाने लगा। मैंने फटाफट उठ कर कमरे का दरवाजा अंदर से बंद किया और बिस्तर पर जा कर युग की पास लेट गया।

युग ने मेरा लंड हाथ में ले लिया और आग-पीछे करने लगा। जब लंड सख्त हो गया तो युग वैसे ही उलटा हो कर लेट गया और गांड ऊपर करके बोला, “आजा राज डाल ले।”

उस दिन सुभद्रा बुआ के घर जलती लाइट में, खुल कर, बिना डर के युग की गांड चुदाई का तो मजा ही आ गया। नीचे युग अपने लंड की मुट्ठ मार कर मजा निकालने वाला था। बीस मिनट चले इस खेल में बड़ा मजा आया। इस बार बंद कमरे में जलती लाइट में युग की गांड चुदाई जैसी चुदाई पहले कभी नहीं हुई थी।

–युग का गांडू दोस्तों का ग्रुप

फिर मुझे पता चला कि युग का समलिंगियों या कह लो गांडुओं का एक ग्रुप बन गया था जिसमें युग को मिला कर पांच या शायद छह लड़के थे जो गांड चोदने और चुदवाने के शौक़ीन थे।

कभी-कभी रात रात भर युग उन्हीं के साथ रहता। उस ग्रुप के दो लड़के आकाश और अमन भी किसी कस्बे से आये थे, और रईस जिमीदारों के बेटे थे। दोनों लड़कों ने कालेज के पास ही तीन कमरों का घर किराये पर ले रक्खा था।

ज्यादातर युग के दोस्त उन्हीं लड़कों के घर इकठ्ठे होते अपना गांड चुदाई का खेल खेलते। इनमें युग और अमन बॉटम थे मतलब हमेशा गांड चुदवाने वाले। बाकी वर्सेटाइल थे मतलब, गांड चोदते भी थे और चुदवाते भी थे।