दादा ने पोती को दिया पहला ऑर्गॅज़म

ही फ्रेंड्स, मेरा नाम दीप्ति है. मैं 21 साल की एक खूबसूरत लड़की हू, और कॉलेज में फाइनल एअर में पढ़ती हू. मैं अपनी फॅमिली के साथ देल्ही में रहती हू. मेरी फॅमिली में मैं, मों, और दाद है. दाद की जॉब है, और मों हाउसवाइफ है. मेरा रंग गोरा है, और फिगर 34-30-36 है.

वैसे हम लोग हरयाणा के बागानवला से है. वाहा हमारी पूरी फॅमिली है. पापा की जॉब की वजह से हम कुछ साल पहले ही देल्ही आए थे. ये जो कहानी है वो 2 साल पहले शुरू हुई, जब मैं 19 साल की थी, और कॉलेज 1स्ट्रीट एअर में पढ़ती थी. मैं बहुत शरीफ लड़की थी. तो चलिए शुरू करते है कहानी.

काफ़ी टाइम से दादा जी पापा को बोल रहे थे घर आने को, लेकिन पापा को जॉब से टाइम नही मिल पा रहा था. इतनी बार बोलने के बावजूद भी जब पापा दादा जी से मिलने नही गये, तो दादा जी खुद ही हमारे घर देल्ही आ गये. अब पापा को जॉब से छुट्टी लेनी पड़ी.

मेरे भी सेमेस्टर एग्ज़ॅम ख़तम हुए थे अभी-अभी तो मैं भी फ्री थी. तो मैं, पापा, और मम्मी हम तीनो दादा जी के साथ चल पड़े. हम लोगों ने समान पॅक किया, और बस स्टॅंड पहुँच गये. मैने उस दिन जीन्स और त-शर्ट पहनी थी. उस वक़्त मेरा फिगर 32-28-34 था.

वाहा जाके हम बस में बैठ गये. मैं दादा जी के साथ बैठी थी, और मम्मी पापा के साथ बैठी थी. हमारा सफ़र कुछ ही घंटे का था. शाम का टाइम था, और तोड़ा-तोड़ा अंधेरा हो चुका था. उस दिन बारिश भी हुई थी, तो मौसम ठंडा था. बाहर से हवा आने की वजह से मुझे ठंड लग रही थी.

तभी दादा जी ने देखा की हवा से मुझे ठंड लग रही थी, तो उन्होने अपने बाग से एक चादर निकली, और अपने और मेरे उपर ओढ़ ली. अब मैं बिल्कुल ठीक थी. तकरीबन आधा घंटा दादा जी मुझसे बातें करते रहे. उन्होने मेरी स्टडीस और मेरे फ्रेंड्स के बारे में पूछा.

फिर वो सीधे आँखें बंद करके लेट गये. कुछ मिंटो बाद वो खराते मारने लग गये. मैं समझ गयी की वो सो चुके थे. सड़क खराब होने की वजह से बस को झटके लग रहे थे. इस वजह दे दादा जी का फेस खिसकते-खिसकते मेरी तरफ आ रहा था. कुछ ही देर में दादा जी का सर मेरे कंधे पर था.

मैने भी उनको हटाया नही, और सोने दिया. वो सोते हुए बिल्कुल एक बच्चे की तरह क्यूट लग रहे थे. फिर कुछ देर बाद दादा ने नींद में ही अपने आप को अड्जस्ट किया, और उन्होने अपना दया हाथ मेरी जाँघ पर रख दिया. मुझे कुछ अजीब नही लगा, और मैने उनको डिस्टर्ब नही किया.

लेकिन फिर धीरे-धीरे उनका हाथ खिसकते-खिसकते मेरी छूट के करीब आ गया. अब मुझे कुछ-कुछ होने लगा था. मैं दादा जी को हटाना भी चाहती थी, लेकिन उनकी नींद खराब भी नही करना चाहती थी. तभी उनका हाथ बिल्कुल मेरी जीन्स की ज़िप वाली जगह पर मेरी छूट वाली जगह पर आ गया.

मैने फिरसे दादा जी को देखा, और तोड़ा हिलाया भी. लेकिन वो गहरी नींद में थे. अब मुझे समझ में नही आ रहा था की मैं क्या करू. तो मैं ऐसे ही बैठी रही. अब वो हाथ धीरे-धीरे हिलने लगे. उनके हाथ हिलने से मेरी बॉडी में उत्तेजना सी जागने लगी. मैं उनको हटाना चाहती थी, लेकिन उनके छूने से मेरी बॉडी में जो करेंट लग रहा था, उससे मुझे मज़ा आ रहा था.

मैने फिरसे उनकी तरफ देखा, तो उनकी आँखें बंद थी. मुझे लगा की नींद में कर रहे है, तो करने देती हू. फिर अचानक से उन्होने अपनी स्पीड बढ़ा दी. इससे मैं बेचैन होने लगी. मैने जब उनकी तरफ देखा, तो अब भी उनकी आँखें बंद थी. वो धीमी आवाज़ में अलका-अलका बोल रहे थे.

अलका मेरी दादी का नाम है. मुझे लगा दादा जी सपने में दादी को देख रहे होंगे, और मुझे दादी समझ कर ये कर रहे होंगे. इसलिए मैने अभी भी उनको नही जगाया. वैसे भी उनके ऐसा करने से मुझे भी मज़ा आ रहा था.

अब दादा जी ज़ोर-ज़ोर से मेरी छूट को जीन्स के उपर से मसालने लग गये. हम दोनो के उपर चादर थी, तो किसी को कुछ दिखाई नही दे रहा था. हम मर्सिडीस बस में थे, तो सीट्स भी बड़ी थी, जिससे आयेज-पीछे वालो को भी कुछ पता चलने का चान्स नही था.

उनके ज़ोर से छूट मसालने से मुझे बहुत बेचैनी सी होने लगी. अब मैने उनको रोकने का फैंसला किया. फिर मैने उनके शोल्डर पर हाथ रख कर उनको हिलाया, और कहा-

मैं: दादा जी! दादा जी! उठिए.

लेकिन वो नही उठे. मैं मम्मी को भी नही बता सकती थी, क्यूंकी वो 2 सीट्स छ्चोढ़ कर बैठी थी. और बताती भी क्या, की दादा जी मेरी छूट मसल रहे थे. फिर मैने दादा जी के मूह पर ज़ोर से थप्पड़ मारा उनको उठाने के लिए. तभी उन्होने आँखें खोली और बोले-

दादा जी: रंडी अब जो काम शुरू किया है उसको पूरा तो करने दे.

ओह मी गोद! ये क्या बोला था दादा जी ने. मेरा ऐसा ही कुछ रिक्षन था. मुझे समझ नही आया की वो ऐसा क्यूँ कर रहे थे, और वो भी अपनी पोती के साथ. मुझे ये भी समझ नही आया की वो शुरू से जाग रहे थे, या बाद में. मैं ये सोच ही रही थी, और उधर उन्होने मेरी जीन्स की ज़िप खोल कर अपना हाथ अंदर डाल लिया.

अब वो मेरी पनटी के उपर से मेरी छूट मसालने लगे. मैं बेचैनी से पागल हो रही थी. मेरे साथ पहले कभी ऐसा नही हुआ था. मैं उनको हटाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन उसमे कामयाब नही हुई. तभी उन्होने अपना मूह चादर के अंदर डाल लिया, और मेरी त-शर्ट और ब्रा एक झटके में उपर करके मेरा बूब बाहर निकाल लिया.

उन्होने मेरे बूब को अपने मूह में डाला, और उसको चूसने लग गये. वो ज़ोर-ज़ोर से मेरा निपल चूस रहे थे, और मेरी छूट को रगडे जेया रहे थे. अब मैं अपने आप को कंट्रोल नही कर पा रही थी. मुझे बड़ी बेचैनी सी हो रही थी, और ऐसा लग रहा था की कुछ बाहर आने वाला था मेरी छूट में से. तभी मेरी छूट ने अपना पानी छ्चोढ़ दिया, और मेरी बॉडी झटके मारने लगी. ये मेरी ज़िंदगी का पहला ऑर्गॅज़म था.

इसके आयेज और बहुत कुछ होने वाला था, जिससे मैं अभी अंजान थी. तो वो सब जानने के लिए कहानी के अगले पार्ट की वेट करे. अगर आपको ये कहानी पसंद आई हो, तो इसका लिंक अपने फ्रेंड्स के साथ भी शेर करे. मैं चाहती हू मेरी ये कहानी सब को पता चले.