नौकर के बेटे से चूत चुडवाई लड़की ने

ही फ्रेंड्स, मई 36 साल की गोरी और लंबी शुभी हू. मई घर से बाहर जॉब करती हू. वैसे घर से बाहर कहना भी ग़लत होगा, क्यूकी मई अकेली हू. इसलिए जहा मई हू, वही मेरा घर है. मेरी काली गहरी ज़ूलफे, मदिरा छिड़कते मेरे ये मस्त-मस्त दो नैन, रस्स से भरे मेरे दो गुलाबी होंठ और मेरे गोरे-गोरे गालो के सब दीवाने है.

मेरे इस रूप के जाल मे जो भी फ़ससा, बस फ़ससा ही रह गया. संगेमरमर जैसे मेरे बदन का तो कहना ही क्या है. मेरे इस बदन पर जो बड़े-बड़े चूचे है, उसकी तो दुनिया दीवानी है. हर कोई मेरे इन काससे हुए चूचो का मज़ा लेना चाहता है.

मेरी उभरी हुई मस्त गांद के तो कहने ही क्या है. जब मई मटक-मटक कर चलती हू, तो चाहे वो बच्चे हो, बुड्दे हो, या जवान हो, सबके लंड खड़े हो जाते है. मुझे देख-देख कर सब आहें भरते है और हाए-हाए करते है.

मई बस इसी तरह से अपने जवान और मादक जिस्म का प्रयोग करती हू और हमेशा जवान, स्मार्ट और हॅंडसम लड़को से अपनी छूट चुड़वाती हू और उनको अपने रूप का रस्स-पॅयन करवाती हू. जो भी मेरी चुदाई करता है, वो मेरे खूसूरत अंगो मे उलझ कर रह जाता है.

मई टीचिंग जॉब मे हू, इसलिए मेरा कॉंटॅक्ट 18 साल के आस-पास वाले लड़के-लड़कियो से रहता है. अब मई कहानी पर आती हू-

करोना समय मे लंबे समय तक बंद रहने के बाद स्कूल खुले थे. मई स्कूल कॅंपस मे ही स्टाफ क्वॉर्टर्स मे रहती हू. तत्काल यहा आने पर मेरा मॅन नही लग रहा था और खाने पीने की भी प्राब्लम आ रही थी. मेरे यहा कपड़ो की सफाई के लिए, मदन नाम का आदमी कपड़े लेने आता था. मैने उसके सामने अपनी बात रखी-

मई: मुझे सुबा-शाम एक घंटा घर का काम करने के लिए कोई चाहिए. तो मुझे कोई ऐसा आदमी ढूँढ दो. वो लड़की हो या लड़का, इससे कोई फराक नही पड़ता.

फिर मदन अपने बेटे को लेके आया. वो 1स्ट्रीट एअर का स्टूडेंट था और दिखने मे ठीक-ताक था. उस लड़के का नाम गोपाल था. फिर मैने उसको सब समझा कर काम पर लगा दिया.

4-5 उसके काम करने पर, मई एक चीज़ वॉच कर रही थी, की काम के साथ-साथ गोपाल मुझे निहारने मे भी काफ़ी रूचि रखता था. एक दिन मई गोपाल से पूच बैठी-

मई: गोपाल तुम मुझे घूर-घूर कर क्यू देखते हो?

गोपाल बेधड़क होके बोला: आप मुझे बहुत अची लगती हो माँ.

उसकी ये बात सुन कर मेरी दिलचस्पी उसमे जाग उठी. मैने सोचा, की उस लड़के का प्रयोग अपने तंन की आग बुझाने के लिए किया जेया सकता था. फिर मैने उसको बोला-

मई: अछा? तो बताओ मुझमे तुम्हे क्या अछा लगता है.

मेरी इस बात के जवाब मे गोपाल कुछ नही बोला और उसने शर्मा कर अपना सिर नीचे कर लिया. मई फिरसे उसको बोली-

मई: गोपाल शरमाना अची बात नही है. तुम बताओगे नही, तो मुझे कैसे पता चलेगा, की तुम्हे मुझमे क्या अछा लगता है. आओ मेरे पास आओ और मेरे चूचे दबा कर बताओ, की तुमको मेरे मे सबसे अछा क्या लगता है.

फिर गोपाल मेरे पास आया और मेरे होंठो पर उंगली रगड़ते हुए बोला-

गोपाल: आपके ये नाज़ुक रसीले होंठ.

फिर मई गोपाल को अपनी बाहो मे बाँधते हुए बोली-

मई: और क्या अछा लगता है?

अब गोपाल के हाथ मेरी चूचियो पर आ गये और वो बोला-

गोपाल: ये आपकी चूचिया बहुत दिलकश और सेक्सी है.

इतने मे गोपाल का लंड उसकी पंत मे पूरी तरह तंन कर खड़ा हो गया था. मैने उसको अपनी चूचिया पकड़ाय और बोली-

मई बोली: लो इसको अपने हाथ से पाकड़ो, तुम्हे मज़ा आएगा. अब तुम अपने लंड से मेरी तड़पति छूट की प्यास बुझा दो और खुद भी मज़ा करो.

शायद गोपाल को इसका अंदाज़ा नही था, की मई उससे इतनी जल्दी पट्ट जौंगी. वो इस बात से काफ़ी हैरान था. फिर मैने आयेज बढ़ कर गोपाल की पंत उतार दी और उसका जांघिया भी उतार दिया. जैसे ही गोपाल का जांघिया उतरा, तो उसका लंड मुझे सलामी देने लग गया.

गोपाल का लंड तुत की तरह था. तुत मतलब, लंड मोटा ज़्यादा था और लंबा कम था. उसका लंड 4 इंच लंबा था और तरीबन 3 इंच मोटा था. फिर मैने सोचा, की चलो एक बार छुड़वा के देख लेती हू. अगर मज़ा आए, तो आयेज भी उसको चान्स दूँगी और अगर मज़ा नही आया, तो सब बंद.

इतने समय मे गोपाल मेरी चूचियो को आज़ाद कर चुका था. हमेशा कपड़ो मे ढके रहने वाली मेरी चूचिया, जब आज़ाद हुई, तो खुली हवा मे मचलने लगी. गोपाल अब मेरी चूचियो को धीरे-धीरे सहला रहा था. वो बीच-बीच मे चूचियो को मूह मे डाल कर चूस भी रहा था.

चूचिया चुस्वा कर मेरी तपिश बढ़ती ही जेया रही थी. फिर चूचियो को सहलाते हुए गोपाल का हाथ, पहले मेरी नाभि पर गया और फिर मेरी छूट तक जेया पहुँचा. मेरी छूट की दरार पर गोपाल का हाथ पड़ते ही मुझे झटका सा लगा.

मेरा पूरा बदन सिहारने लगा और नीचे से मेरी छूट बोली-

मेरी छूट: अब और नही रुका जाता. बस अब डाल दो लंड को मेरे अंदर और ठंडक दो मुझे.

मैने अपनी छूट को समझाया: तू तोड़ा सबर कर. मई तुम्हारी ही सेवा के लिए लंड की मालिश कर रही हू.

तो इस तरह से मेरी और छूट की बाते हो रही थी और मेरी छूट झार-झार करके आँसू बहा रही थी. गोपाल से मेरी छूट के आँसू देखे नही गये और उसने मेरी छूट की दरार पर अपनी जीभ लगा दी. फिर वो मेरी छूट के मदन रस्स का रस्स-पॅयन करने लगा.

कभी-कभी गोपाल अपनी जीभ को मेरी बर मे धक्का दे देता. और जीभ अंदर जाते ही मेरा रोम-रोम काँपने लग जाता. इससे मेरी छूट लंड लेने को और बेचैन हो रही थी. फिर मई गोपाल से बोली-

मई: अब और देर ना करो मेरी जान और अपना लंड मेरी छूट मे डाल कर ढाका-धक इसकी चुदाई करो. मुझसे अब और बर्दाश्त नही हो रहा.

गोपाल ने मेरे नंगे जिस्म को अपनी बाहो मे उठाया और मुझे बेड पर लिटा दिया. फिर उसने मेरी टाँगो को अपने कंधो पर रखा, जिससे मेरी छूट उसके सामने खुल गयी. गोपाल का लंड तंन कर खड़ा था और मेरी बर से रग़ाद खा रहा था.

रग़ाद खाते-खाते उसके लंड को जन्नत का द्वार मिल गया और उसने ज़रा भी देर ना करते हुए, अपना लंड मेरी छूट मे डाल दिया. उसका मोटा लंड छूट मे जाने से मई चीख उठी. पूरा कॅसा हुआ था उसका मोटा लंड और छूट की दीवारो और लंड के बीच बाल डालने की भी जगह नही थी.

फिर गोपाल मेरी बर को पहले धीरे-धीरे छोड़ने लगा, लेकिन फिर वो अपनी स्पीड बढ़ता चला गया. करीब 10 मिनिट बाद उसकी चुदाई की रफ़्तार देखने वाली थी. गोपाल मुझे दे दाना दान छोड़ रहा था और मई भी अपनी गांद उछाल-उछाल कर छुड़वा रही थी.

फिर मैने गोपाल को पोज़िशन बदलने को बोला. गोपाल ने मुझे बेड के बीचो-बीच चिट लिटा दिया और मेरी गांद के नीचे तकिया रख दिया. फिर उसने मेरी दोनो टाँगो को खोला और लंड लेके टाँगो के बीच बैठ गया.

अब वो अपने लोड को मेरी बर पर रग़ाद रहा था और जन्नत का द्वार ढूँढ रहा था. आख़िर-कार उसको जन्नत का द्वार मिल ही गया और उसने एक ही झटके मे अपना लंड मेरी छूट मे तूस दिया.

अब उसका पूरा का पूरा लंड मेरी छूट मे समा चुका था और वो घपा-घाप मेरी चुदाई कर रहा था. मेरी बर से अब फॅक-फॅक की आवाज़े आ रही थी और मई मस्ती मे आ.. आहह.. आहह.. कर रही थी. मई उसको बोल रही थी-

मई: आ.. ज़ोर से डाल. और ज़ोर से डाल मेरे राजा आ.. फाड़ दे मेरी छूट को.

मई ये सब बोल ही रही थी, की मेरे बदन मे कंपन होने लगी. फिर कुछ ही मिंटो मे मेरा शरीर अकड़ गया और मेरी छूट का पानी निकल गया. लेकिन गोपाल मुझे अभी भी छोड़े जेया रहा था. वो आहह अहहा आह करके अपने लंड का गरम-गरम पानी मेरी छूट मे छोढ़े जेया रहा था.

अब मेरी छूट की तपिश भी ठंडी हो चुकी थी. हम दोनो की चुदाई की रुटीन अब ऐसे ही चल रही थी. हर रोज़ गोपाल का काम ख़तम होने पर मई उससे ऐसे ही चुड़वाती थी और रात भर मज़े की नींद सोती थी.

बस थॅंक्स दोस्तो, आज की कहानी मे इतना ही. ये कहानी आपको कैसी लगी, मुझे ज़रूर बताना. मई आपके आइडियास के अनुसार अपनी स्टोरीस को ढालने की कोशिश कर रही हू.