साली ने जीजू से चुदने के लिए उसको घर बुलाया

ही दोस्तों, मैं ज्योति अपनी कहानी का अगला पार्ट लेके आई हू. उमीद है आप सब ने पिछला पार्ट पढ़ा होगा. अगर नही पढ़ा तो अभी जाके उसको ज़रूर पढ़े. आपको मेरी स्टोरी ज़रूर पसंद आएगी.

पिछले पार्ट में आपने पढ़ा था, की दीदी घर के बाहर थी, और मैं घर पर ही थी. लेकिन घर की कांवली को ये नही पता था, और ना ही जीजू को. फिर नौकरानी के आने के बाद जीजू घर आए, और उन दोनो ने पलंग-तोड़ चुदाई की. उनकी चुदाई देख कर मेरा भी पानी निकल गया. अब आयेज बढ़ते है.

सुहासिनी और जीजू की चुदाई पूरी हो चुकी थी. फिर जीजू खड़े हुए और कपड़े पहनने लगे. मैं जाके रूम में च्छूप गयी. कपड़े पहन कर जीजू बाहर आए, और वापस अपने काम पर चले गये. कुछ देर बाद सुहासिनी भी बाहर आई, और अपना काम करके वो भी चली गयी.

उनके जाने के बाद मेरे दिमाग़ में उनकी चुदाई के सीन चल रहे थे. पहले मैने सोचा की दीदी को बता डू, की जीजू और सुहासिनी के बीच क्या चल रहा था. लेकिन फिर मैने सोचा की दीदी तो खुद चाहती थी की जीजू बाहर जाके अपनी आग ठंडी कर ले. और जीजू भी क्या करते जब दीदी उनकी प्यास नही बुझा रही थी. तो मेरे लिए जीजू जो भी कर रहे थे, उसमे कुछ ग़लत नही था.

यही सोचते-सोचते रात हो गयी, और दीदी और जीजू घर आ चुके थे. मैं तो जीजू को ही देखे जेया रही थी. जब भी मैं उनको देखती, तो मुझे उनका बड़ा लंड नज़र आता. उनके लंड के बारे में सोच कर मेरे मूह में पानी आए जेया रहा था.

मेरा दिल कर रहा था, की काश मैं भी उनका लंड ले पाती. फिर हमने डिन्नर किया, और सोने चले गये. रात को मुझे नींद नही आ रही थी. मेरी छूट में ज़बरदस्त खुजली मची हुई थी. मैं समझ नही पा रही थी, की इतने तगड़े लंड से दीदी चूड़ने को तैयार नही थी.

फिर मैने अपनी छूट सहलानी शुरू की, और धीरे-धीरे स्पीड बधाई. मैं ज़ोर-ज़ोर से अपनी छूट के दाने को रगड़ने और मसालने लग गयी. मेरे मूह से जीजू जीजू निकल रहा था. ऐसे ही करते-करते 10 मिनिट में मेरी छूट का पानी निकल गया. ये मेरे जीजू के नाम का पानी था.

अब मैने फैंसला कर लिया था, की मैं अपने जीजू के बड़े लंड से चुड़ूँगी, और उनकी प्यास बूझौँगी. भला घर का मर्द बाहर की औरत को क्यूँ छोड़े? और बाहर की औरत को इतने बड़े लंड का मज़ा क्यूँ मिले? लेकिन दिक्कत ये थी, की मैं जीजू से बात कैसे करूँगी. मैं सोचती रही, की कैसे मैं जीजू को चुदाई के लिए मनौँगी. और फिर मेरे दिमाग़ की बत्ती जाली, और मुझे एक आइडिया आया. चलिए बताती हू मैने कैसे आइडिया का इस्तेमाल किया.

2 दिन बाद दीदी को फिरसे किसी फ्रेंड के घर जाना था. दीदी ने मुझे भी कहा, लेकिन मैने तबीयत का बहाना करके माना कर दिया. उनके जाने के बाद मैने सुहासिनी को भी काम पर आने से माना कर दिया. अब मैं घर पर अकेली थी, और मेरे पास बहुत टाइम था.

फिर मैने नहा धो कर ब्लॅक लेगैंग्स और रेड त-शर्ट पहन ली. उसमे मेरा फिगर एक-दूं सेक्सी लग रहा था. उसके बाद मैने जीजू को फोन मिलाया. पहली बार तो जीजू ने फोन नही उठाया, तो मैने फिरसे फोन मिलाया. इस बार उन्होने फोन उठा लिया. फिर वो बोले-

जीजू: हा ज्योति बोलो.

मैं: जीजू ये सुहासिनी यहा पर मुझे आपके बारे में पता नही क्या-क्या बोले जेया रही है. वो बोल रही है की आपका और उसका कोई चक्कर है, और उसके पास इसका प्रूफ भी है. क्या सच में ऐसा है?

ये सुन कर जीजू की गांद फटत गयी, और वो लड़खड़ाती आवाज़ में बोले-

जीजू: क्या बकवास कर रही है. बात काराव मेरी उससे.

मैं: जीजू आप घर ही आ जाओ. यहा पर सही से बात हो जाएगी.

जीजू: मैं आता हू.

फिर थोड़ी देर में जीजू घर आ गये. मैने दरवाज़ा खोला, और वो सीधे अंदर आ गये. फिर मैने दरवाज़े को अंदर से बंद कर दिया. जीजू इधर-उधर देखने लगे. वो सुहासिनी को ढूँढ रहे होंगे. लेकिन सुहासिनी तो थी ही नही. फिर जब उनकी नज़रे सुहासिनी को नही देख पाई, तो उन्होने मुझसे पूछा-

जीजू: कहा है सुहासिनी?

मैं: वो मेरे रूम में है जीजू.

वो सीधा मेरे रूम की तरफ चल पड़े. मैं भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ी. वो मेरे रूम में आए, और मैं भी रूम के अंदर आ गयी. फिर मैने दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया. जीजू ने जब रूम में भी सुहासिनी को नही देखा, तो वो बोले-

जीजी: ज्योति कहा है वो?

मैं: वो तो नही है जीजू.

जीजू: लेकिन तुमने तो कहा तो वो है यहा पर.

मैं: हा कहा तो था, लेकिन वो नही है.

ये बोल कर मैं बेड पर बैठ गयी. फिर मैं बोली-

मैं: वैसे ऐसी कों सी बात है जीजू जिसके दर्र से आप इतनी जल्दी दौड़ कर आ गये?

जीजू: क्या मतलब, ऐसी क्या बात हो सकती है? तुमने मुझे बुलाया है, मैं अपनी मर्ज़ी से थोड़ी आया हू.

मैं: लेकिन आप अपने कांड क्लियर करने आए हो.

जीजू: क्या मतलब?

मैं: आपका सुहासिनी के साथ चक्कर चल रहा है ना?

जीजू: क्या बकवास कर रही हो तुम? मैं भला उस नौकरानी के साथ चक्कर क्यूँ चलाने लगा? ऐसा कुछ नही है. मेरी तो कभी ढंग से बात भी नही उससे.

मैं: हा बात नही हुई, लेकिन जो उसको उछाल-उछाल कर छोड़ते हो वो हो गया.

ये सुन कर जीजू के चेहरे पर घबराहट सॉफ दिखने लगी. फिर वो बोले-

जीजी: ज्योति ये तुम क्या बोल रही हो? और ये किस तरह की गंदी लॅंग्वेज बोल रही हो? तुम्हे पता नही तुम किससे बात कर रही हो?

मैं: मैं एक ऐसे बंदे से बात कर रही हू, जो अपनी बीवी को छ्चोढ़ कर उसकी गैर-हाज़री में घर की नौकरानी को छोड़ता है, और अपनी बीवी को धोखा देता है. और ये मैं ऐसे ही नही बोल रही. मैने खुद आपको देखा है सुहासिनी के साथ बिस्तर में रंगरलियाँ मानते हुए.

जीजू: तुम पागल हो गयी हो ज्योति. मैं जेया रहा हू.

और ये बोल कर वो रूम से बाहर जाने लगे. मैं तभी बेड से उठ कर उनके आयेज खड़ी हो गयी.

इसके आयेज क्या हुआ, वो आपको अगले पार्ट में पता चलेगा. अगर आपको कहानी पढ़ कर मज़ा आया हो, तो इसको ज़्यादा से ज़्यादा शेर करे.