रंडी औरत की स्टेशन और होटेल में चुदाई की स्टोरी

ही फ्रेंड्स, मैं 50 साल की मनोरमा. हा 50 साल की घबराव मत फ्रेंड्स, की 50 की बुद्धि चुदाई की कहानी बता रही है. मेरी देह और कद-कती बिल्कुल भी 50 जैसी नही है. मेरे सारे अंग देख के मैं 35 से ज़्यादा बिल्कुल नही लगती. मेरा गोरा रंग, मांसल बदन, ना मोटी ना पतली, बिल्कुल स्मार्ट काया है.

मेरे लंबे बदन पर मेरी 36″ साइज़ की बिना लटकी मेरी गोरी-गोरी चूचियाँ मेरी जवानी में चार चाँद लगती है. मेरी एक बेटी है, जो अब 24 साल की हो गयी है. 2 साल पहले उसकी शादी मैने डिफेन्स के लड़के से कर दी थी. वो अभी इटानगर में रहती है.

मैं उसके यहा ही इटानगर की यात्रा पर थी, जब ये वाक़या हुआ. मैं आप लोगों को बता डू, की मेरी उमर 50 की भले है, लेकिन मैं बदन से और दिल से अभी बिल्कुल जवान हू. मेरी कोई भी हसरत मुरझाई नही है. मैं पिछले 26 साल से विधवा की ज़िंदगी जी रही हू.

अब आप सोचेंगे विधवा मतलब चुदाई से डोर. तो ये बात बिल्कुल भी मुझ पर फिट नही बैठती. मैं खुल के रोमॅन्स करती हू, और चुड़वति हू. लेकिन घर में, या अपने सगे संबंधियों, या मोहल्ले में आज तक कभी नही चुडवाई. इसलिए अंदर से मेरा चरित्रा दाग-दार भले हो, बाहर से बिल्कुल नीट आंड क्लीन है.

यू कहे तो छुड़वाना कभी दाग-दार नही हो सकता. जैसे खाना पीना शरीर की ज़रूरत है, ठीक उसी तरह छुड़वाना भी मेरे शरीर की एक ज़रूरत है. मैं भी आप लोगों को दूसरी लाइन पर लेके चली गयी. अब कहानी पर आती हू. मैं इसी साल जन्वरी के महीने में बेटी के पास इटानगर जेया रही थी गुवाहाटी.

मैं 01 बजे रात को पहुँची. इतनी रात गये कहा होटेल खोजती? फिर सुबा 5 बजे आयेज डिब्रूगरह के लिए गाड़ी थी. सो 04 घंटे स्टेशन पर ही बिताने का निस्चे किया. ठंड काफ़ी थी. मैने एक कंबल नीचे बिछाया, और दूसरे को बदन पर धक के लेती थी. तभी मेरी नज़र एक 19-20 साल के लड़के पर पड़ी.

काफ़ी शुशील, लंबा, आत्लेटिक, बदन का गोरा, और जवान था. वो ठंड से काँप रहा था. मुझे उस पर दया आ गयी, और उसको मैने अपने पास बुला कर उसकी सारी जानकारी ली. वो भी इटानगर ही जेया रहा था. उसे मैने अपने साथ कंबल में ले लिया.

एक कंबल के नीचे एक लड़के को लेके मेरे बदन में कुछ-कुछ होने लगा. थोड़ी गर्मी मिलने के पासचाट लड़के के साथ भी यही हुआ. लड़के का नाम बताना मैं भूल गयी. उसका नाम सौरभ था.

मैं बोली: सर अंदर कर लो, तुम अब भी काँप रहे हो.

और उसके सर को कंबल के अंदर कर दी. अब मेरी चूची और उसका मूह बिल्कुल सत्ता हुआ था. मैं रह-रह कर चूची उसके मूह में सत्ता देती. सौरभ भी मेरी हरकतों को देख रहा था. उसने हिम्मत जुटा कर एक बार चूची मूह में ले ली.

अब मुझे पूरा भोरोसा हो गया की सौरभ भी खेल में इंट्रेस्टेड था. मैने चूचियों को ब्लाउस और ब्रा से बाहर निकाल कर उसके मूह में दे दिया. उसने गॅप से चूची मूह में ली, और चूसने चबाने लगा. मैने फुसफुसा कर पूछा-

मैं: मज़ा आ रहा है?

उसने हा कहा. मैने कंबल के नीचे ही हाथ बढ़ा कर उसकी पंत का हुक और ज़िप खोल दी. उसने खुद से पंत नीचे सरका दी. फिर मैं उसके लंड को हाथ में लेली. लंड पूरी तरह से तन्ना हुआ था. उसका लंड मेरे हाथो में फिँगने लगा.

ये सारा खेल कंबल के नीचे ही हो रहा था. मैने सौरभ के बाल पकड़ कर उपर खींचे, और अपनी सारी पेटिकोट उठा कर उपर कर दिए. सौरभ की गांद में थप्पड़ लगा कर अपनी तरफ खींचा. इससे सौरभ का लंड मेरी छूट से टकराया.

मेरा पूरा बदन झंझणा गया. शायद सौरभ का भी यही हाल था. मैने अपनी टाँग उठा कर सौरभ को अपनी दोनो टाँगो के बीच लिया, और फिर ज़ोर से उसे अपनी तरफ खींचा. इस बार सौरभ का तन्ना हुआ लोड्‍ा मेरी बर में घुस गया. लेकिन सिर्फ़ 1 इंच के करीब ही.

मैं फिर बोली: इतने में छोड़ लो, अब ज़्यादा नही जाएगा इस पोज़िशन में.

सौरभ लंड को आयेज-पीछे करने लगा. मुझे मज़ा तो आ रहा था, पर उतना नही. सौरभ लगातार लोड्‍ा बर में रग़ाद रहा था. कभी काफ़ी तेज़, कभी हल्के रगड़ते हुए 10 मिनिट से ज़्यादा हो चुके थे. अब सौरभ तेज़-तेज़ आयेज पीछे करने लगा. मुझे छूट में गरमा-गरम वीर्या का अनुभूति हुई, मतलब सौरभ का लोड्‍ा झाड़ चुका था.

फिर मैने सौरभ से पूछा: हो गया?

उसने हा कहा.

फिर मैं बोली: तुमने तो लोड्‍ा झाड़ के मज़ा ले लिया. मैं तड़पति रह गयी.

बेचारा झेंप गया.

फिर मैं बोली: चलो डिब्रूगरह में होटेल लेकर पूरा मज़ा मार के ही इटानगर जाएँगे.

सौरभ ने हा में सर हिलाया. अब 4 भी बजने ही वाले थे. 5 बजे गाड़ी को गुवाहाटी से ही खुलना था. उठ कर हम लोगों ने छाई पी, और दोनो एक कंबल में बैठे रहे. सौरभ पूरी तरह घुल मिल गया था, इसलिए वो कंबल के अंदर ही अंदर मेरी चूचियों को सहला कर मुझे तसल्ली दे रहा था.

गाड़ी प्लॅटफॉर्म पर लग चुकी थी. सौरभ का बर्त दूसरी जगह था, लेकिन आपसी तालमेल से हम दोनो एक ही जगह बैठ गये. मैं सौरभ को पूछी-

मैं: पहले तुमने किया है ये सब? उसने हा में सर हिलाया.

मैं पूछी: किसके साथ?

तो उसने मौसी का नाम लिया. सौरभ ने मुझे भी पूछा: यात्रा में तुम पहली बार कर रही हो, ये पहले भी किया है.

मैं बिल्कुल ना च्छूपाते हुए बोली: मैं 26 साल से विडो हू, और इन 26 सालों में कम से कम 52 यात्रा तो ज़रूर की है, और कोई भी यात्रा ऐसी नही रही जब जुगाड़ लगा के ना चुडवाई हो.

मेरी बातें सुन सौरभ हासणे लगा और बोला: इसीलिए तुम्हारे पास इतना एक्सपीरियेन्स है.

मैं पूछी: कों सा एक्सपीरियेन्स?

तो सौरभ बोला: जब तूने मेरे मूह के पास चूची दी, तो मैं समझ गया चालू माल है.

मैं भी खिलखिला कर हस्स पड़ी और बोली: जुगाड़ पर ही ज़िंदगी की गाड़ी को चलना है, तो कोई ना कोई जुगाड़ करना ही पड़ेगा.

इसी तरह मीठी और रसीली बातें करते कब शाम हो गयी और कब हम लोग डिब्रूगरह पहुँच गये, पता ही नही चला. मैने डिब्रूगाह में होटेल लिया. हम दोनो कमरे में आ गये. अब बारी थी घमासान लड़ाई की.

मैं बोली: पहले फ्रेश हो जाते है.

हा-हा मैने पहले सौरभ को फ्रेश होने भेज दिया. वो बातरूम से निकला. फिर मैं गयी. मैं फ्रेश हो कर बदन पर तौलिया लपेटे निकली. मैं जैसे ही रूम में आई, सौरभ ने तौलिया ज़ोर से खीच लिया. अब मैं एक-दूं से पूरी नंगी सौरभ के सामने खड़ी थी.

मेरे नंगे जिस्म को सौरभ ने अपनी बाजू में दबोच लिया. मैं सौरभ की बाहों में कसमसा रही थी. उसने पुर बदन को चूमना-चाटना शुरू कर दिया. वो कभी चूचियों का चाट-ता, तो कभी मेरी बर में उंगली दे देता.

कभी बर चाटने भी लगता. मैने भी सौरभ की पंत को उतार दिया, और उसका लंबा फंफनता लंड मेरी मुट्ठी से च्चितकने को बेताब था. मैं बिल्कुल ही चुदसी हो गयी थी.

मैं खड़े-खड़े ही सौरभ के लंड को बर पर रगड़ने लगी. मुझे पूरी चुदसी देख सौरभ ने मुझे बेड पर लिटाया, टाँगों को फैलाया, लोड को बर पर टीकाया, और गछ से लोड्‍ा बर में पेल दिया.

मुझे तो लगा जैसे जन्नत मिल गयी हो. मैं गांद उछालने लगी. सौरभ घचा-घच मुझे छोड़ने लगा. पुर 15 मिनिट की धक्का-पेल चुदाई के बाद सौरभ आ आ करके ज़बरदस्त धक्के मार रहा था. मैं भी चरम पर थी, और मैं आ आ करके चिल्ला रही थी.

मैं: मारो धक्का और ज़ोर से, तोड़ा और ज़ोर से.

मेरी हर ताल पर सौरभ धक्के की स्पीड और ताक़त को बढ़ता. फिर हम दोनो, मेरी बर की धार और सौरभ के लंड का वीर्या एक साथ झाड़ गये. मुझे असीम सुख की अनुभूति हुई. थोड़ी देर हम लोग यू ही पड़े रहे.

फिर सौरभ उठा. उसने मेरी चूची को चूमा, बर से बहते रस्स को रुमाल से पोंचा, और दूसरे रौंद की तैयारी करने लगा. उस रात सौरभ ने पुर पाँच बार मेरी बर को छोड़ा. मैं छुड़वा कर मस्त और पस्त हो गयी.

आज की कहानी बस यही तक. मेरे प्यारे दोस्तों अगले दिन मैं अपनी दूसरी यात्रा की कथा सुनौँगी. अपना रिक्षन यहा देना मत भूलना.