भड़वे पति ने मुझे रंडी बना दिया

ही फ्रेंड्स, आज जो कहानी मई आपके सामने पेश करने जेया रही हू. वो मेरी एक परीचीत की कहानी है. उसकी आप-बीती मई आपको अपने शब्दो मे सुना रही हू.

मेरा नाम पूजा है और मई एक शादी-शुदा औरत हू. मेरे पति एक रोड आक्सिडेंट मे मुझे छोढ़ कर जेया चुके है. पति की डेत के बाद, मुझ पर मुसीबतो के पहाड़ टूट पड़े. सब लोग मेरे जिस्म के दीवाने हो गये.

मेरे पति की डेत के तीसरे ही दिन मेरे ससुर ने मेरी चुदाई की. जब मैने उनका विरोध किया, तो उन्होने मुझे ज़बरदस्ती छोड़ दिया और मेरी एक ना चली. ससुर के बाद मेरे देवर ने, मेरे जेठ ने, और यहा तक की नंदोई ने भी मेरी छूट की चुदाई कर डाली और मेरे जिस्म से अपनी प्यास बुझाई.

जब मेरी शादी हुई थी, तो मेरी ज़िंदगी मज़े से कट्ट रही थी. खाता-पीटा परिवार था. मेरे पति देव, रोज़ मुझे बड़े प्यार से छोड़ते थे. सब कुछ सामानया था. लेकिन अपने पति की मौत के बाद, मई बड़ी मुश्किल से श्राध तक ही अपने ससुराल मे रह पाई.

फिर मई अपने माइके चली आई. यहा भी मेरी मा के साइवा मेरा दर्द बाँटने वाला कोई नही था. दर्द देने वाले यहा भी बहुत थे. फिर मेरी मा ने मेरी शादी लॉकंगन से करवा दी, जो की 55 की उमर का था.

उसकी पहली पत्नी मॅर चुकी थी और उसकी 2 बेतिया थी, जो अपने-अपने ससुराल मे ही रहती थी. उसके घर मे हम 2 ही जाने रहते थे. मुझे लग रहा था, की अब ज़िंदगी आराम से कटेगी, लेकिन सब कुछ उल्टा ही हुआ.

शादी के बाद लॉकंगन मेरे पास आया, लेकिन लाख कोशिशो के बाद भी लॉकंगन का लंड खड़ा नही हुआ. वो छोड़ने मे सक्षम नही था और मई अपना मॅन मार कर रह गयी.

लॉकंगन एक निकँमा और बेवाड़े किस्म का आदमी था. वो मालिश के अलावा कोई काम नही करता था. हमारे घर के पास एक बड़े प्रॉजेक्ट पर काम चल रहा था. वाहा पर बाहर से बहुत सारे वर्कर्स, इंजिनीयर्स और ऑफिसर्स काम कर रहे थे.

फिर लॉकंगन ने सुधीर बाबू नाम के एक इंजिनियर से दोस्ती कर ली. वो हमेशा उसकी मालिश किया करता था. अब सुधीर जो पैसे लॉकंगन को देता था, उसी से हमारे घर का खर्चा चल रहा था. एक दिन सुधीर बाबू घर पर आए और लॉकंगन उनकी बड़ी खुशमाद कर रहा था.

उसने सुधीर बाबू को बेड पर बिताया और बोला-

लॉकंगन: हुज़ूर आप दिन भर खड़े रह कर काम करते हो और इतनी मेहनत करते हो. इससे आप कितना तक गये होंगे. आप ऐसा करो, यहा बेड पर लेट जाओ और मई आपकी मालिश कर देता हू.

फिर सुधीर बाबू ने अपनी पंत-शर्ट उतारी, कमर मे गमछा बाँधा और बेड पर लेट गये. लॉकंगन ने सुधीर बाबू की मालिश करनी शुरू कर दी. मई च्छूप कर देख रही थी, की लॉकंगन क्या-क्या कर रहा था. लॉकंगन ने अपने हाथो मे तेल लिया और सुधीर बाबू के पैरो पर रगड़ने लग गया.

वो बार-बार सुधीर बाबू के लंड पर हाथ ले-जाता और तेल से सुधीर बाबू के लंड की भी मालिश कर रहा था. सुधीर बाबू ने माना किया, लेकिन लॉकंगन फिर भी उनके लंड को छेड़ता रहा. अब सुधीर बाबू का लंड खड़ा हो चुका था. स्पर्श चाहे मर्द के हाथ का ही था, लेकिन जवान लंड तो खड़ा हो ही जाता है. फिर लॉकंगन भद्वे की तरह खिखलाते हुए बोला-

लॉकंगन: सिर आपका लोड्‍ा तो बर छोड़ने के लिए तैयार हो गया है.

ये सुन कर सुधीर बाबू ने बोला: लॉकंगन छोढ़ो इन बातो को. यहा बर कहा मिलने वाली है.

लॉकंगन ज़हरीली हस्सी हेस्ट हुए बोला-

लॉकंगन: अगर मिल गयी हुज़ूर, तो चुदाई का मज़ा लोगे?

सुधीर बाबू बोले: अर्रे यहा कहा मिलने वाली है?

लॉकंगन बोला: साहब आप हामी तो भरो.

सुधीर बाबू ने कहा: तुम्हारे जुगाड़ मे है कोई?

लॉकंगन ने कहा: हा है साहब, मेरी घर-वाली.

ये सुन कर सुधीर बाबू को करेंट सा लग गया. जिस चीज़ के बारे मे सुधीर बाबू ने अपने मे भी नही सोचा था, वो उसको लॉकंगन के मूह से सुनने को मिल रही थी. फिर सुधीर बाबू अचानक से उठ कर बैठ गये और हैरानी भारी आँखों से लॉकंगन को देखने लग गये.

तभी लॉकंगन ने आवाज़ भारी: पूजा… पूजा….

मई जो सामने च्छूप कर सब कुछ देख रही थी. मेरे मॅन मे जहा एक तरफ लॉकंगन के हरामी-पन्न के प्रति नफ़रत जाग उठी थी, वही दूसरी तरफ जवान लंड से छुड़वाने की कल्पना से खुशी भी हो रही थी. फिर मई बोली-

मई: क्या है?

फिर लॉकंगन खिखलाते हुए बोला-

लॉकंगन: देखो रानी, ये मेरे दोस्त सुधीर बाबू है. तू सुधीर बाबू से छुड़वा कर खुश हो जेया. इससे तुझे मज़ा भी मिल जाएगा और सुधीर बाबू भी खुश हो जाएँगे.

मई चुप हो कर वाहा खड़ी रही. फिर लॉकंगन बोला-

लॉकंगन: मान ले मेरी बात रानी. नखरे क्यू दिखा रही है.

ये कहते हुए लॉकंगन ने मुझे अपनी तरफ खींच लिया और मई धाड़ से बेड पर बैठ गयी. फिर लॉकंगन सुधीर बाबू की तरफ मुखातिब होते हुए बोला-

लॉकंगन: देखो साहब, कितनी सुंदर सी काया है मेरी रानी की. ये गोरे-गोरे मुखड़े पर कमाल के समान आँखें और ये रस्स भरे होंठ कितने कमाल के है.

फिर लॉकंगन ने मेरा पल्लू हटा दिया और बोला-

लॉकंगन: देखिए साहब, ये मस्त-मस्त चूचिया बहुत मज़ा देंगी आपको. चिकना सपाट पेट और उसके नीचे नाभि कितनी चिकनी है. इसकी छूट तो जन्नत का दरवाज़ा है और मेरी रानी लाखों मे एक है.

लॉकंगन: बस साहब, अब मई और ज़्यादा नही बोलूँगा. आप खुद ही देखो, मस्लो, छोड़ो, मज़ा लो और मस्त हो जाओ. हा छोड़ कर तबीयत खुश हो जाए, तो पेट का सवाल है हुज़ूर, वो मत भूलना. मई या मेरी रानी माँगेगी नही, बस आपकी तबीयत खुश होने पर है.

फिर खिखलाते हुए लॉकंगन बाहर चला गया. तभी सुधीर बाबू ने अपने होंठ मेरे होंठो से लगा लिए और मेरे गुलाबी रसीले होंठो का रस्स-पॅयन करने लग गया. धीरे-धीरे सुधीर बाबू मेरी चूचियो पर आ गये और मेरी मढ़ भारी चूचियो का रस्स-पॅयन करने लगे.

मई अब तक चुप थी, लेकिन अब मई अपना हाथ सुधीर बाबू के लंड पर ले गयी. सुधीर बाबू का विशाल और मस्त लंड पूरा खड़ा हुआ था और फुकारे मार रहा था. लंड के एहसास से मई गड़-गड़ हो गयी.

मैने अपनी छूट को तसल्ली दी, की बस तोड़ा टाइम और इंतेज़ार कर ले रानी, उसके बाद तू मस्त लंड लेके बाग-बाग हो जाना. मई सुधीर के लंड को सहला रही थी और सुधीर भी अपना हाथ मेरी छूट पर ले गया.

अब तक मेरी छूट भीग कर सराबोर हो गयी थी. मेरी भीगी छूट के एहसास ने सुधीर के सबर का बाँध तोड़ डाला. उसने मुझे बेड पर लिटाया और मेरी टाँगो को अपने कंधो पर रख लिया. वो खुद मुझसे सतत कर खड़ा हो गया और इस पोज़िशन मे उसका लंड मेरी छूट के साथ रग़ाद खाना शुरू हो गया.

रग़ाद खाते हुए लंड को छूट का द्वार मिल गया, जिसके लिए मर्द हमेशा तैयार रहते है. छूट का मुहाना मिलते ही सुधीर ने पूरी ताक़त से अपना लंड छूट के अंदर धकेल दिया. मेरी बर को ऐसा लग रहा था, जैसे अंदर कोई लोहे की रोड डाल दी हो.

लंड इतना सख़्त था, की वो छूट की सारी बाधाओ को चीरता-फाड़ता हुआ आयेज बढ़ गया. मई तो चिल्ला उठी और मेरी आँखों से आँसू बहने लग गये. सुधीर कुछ पल के लिए रुका रहा और राहत मिलते ही ढाका-धक मुझे छोड़ने लग गया.

अब मुझे भी मज़ा आ रहा था. खड़े-खड़े सुधीर मुझे बड़ी बेरेहमी से छोड़ रहा था. मई चुदाई का जवाब नही दे पा रही थी, लेकिन मुझे मज़ा बहुत आ रहा था. फिर छोड़ते-छोड़ते सुधीर ने आसान बदलने का मॅन बनाया, लेकिन वो लंड को छूट से बाहर निकालने के मूड मे नही था.

सुधीर ने अपना लोड्‍ा मेरी छूट मे ही रखा और आसान बदल लिया. अब सुधीर मेरी दोनो टाँगो के बीच था. उसका 10 इंच लंबा और 3 इंच मोटा लंड मेरी बर मे ठुका हुआ था और वो मुझे आहिस्ता-आहिस्ता छोड़ रहा था.

मई शब्दो मे क्या बतौ इस चुदाई के बारे मे. मुझे इतना सुकून मिल रहा था, जिसका बखान शब्दो मे नही किया जेया सकता. फिर सुधीर ने मेरे दोनो पैरो को सत्ता दिया, लेकिन लंड छूट मे होने की वजह से दोनो पैर आचे से सट्टे नही.

इसके बावजूद छूट काफ़ी टाइट हो गयी थी और सुधीर मेरी टाइट बर को ढाका-धक छोड़ने लग गया. वो आवाज़े निकाल रहा था और बोल रहा था-

सुधीर: आ श आहह कितनी मस्त छूट है तेरी. आहह रानी, मई तो गया, गया, गया मई आहह…

सुधीर के लंड के लावे ने मेरी छूट को सराबोर कर दिया और मई भी चुड़वाते हुए मस्त से पस्त हो गयी. फिर सुधीर मेरे बगल मे लेट गया और बोला-

सुधीर: देख रानी, मई तुझे अपने बड़े साहब के पास होटेल मे ले-जौंगा. लेकिन उनसे छुड़वा कर इस बंदे को भूल मत जाना.

फिर दो दिन बाद सुधीर मुझे एक होटेल मे लेके गया. वाहा अविनाश बाबू नाम के एक बड़े साहब ने मुझे पूरी रात छोड़ा. मई छुड़वा-छुड़वा कर मस्त होने लग गयी और मेरा नाम अब बड़ी सोसिटीएस मे फेमस होने लगा था. अब तक मई होटेल मे जाते-जाते पक्की रंडी बन गयी थी.

ये कहानी यही ख़तम होती है. अगर आपको कहानी अची लगी हो, तो अपनी फीडबॅक ज़रूर दे.