हेलो फ्रेंड्स, आप सभी का वेलकम है मेरी स्टोरी के नेक्स्ट पार्ट में. अब तक आपने पढ़ा की कैसे मैने मा को दादा जी के सामने ब्लाउस पेटिकोट में लेता देखा था, और उनकी बातें सुनी. चलिए आयेज-
अब मुझे इतना तो पता चल गया था की मा और दादा जी चुदाई करते थे, और इसलिए अब मैं थोड़े और मज़े लेना चाहता था, और खुद उनको चुदाई करते देखना चाहता था. पर उससे पहले मैने दोनो का तड़पने का सोचा. उसी शाम को-
मैं: आज से मैं दादा जी के साथ उनके रूम में सौंगा.
मा: ऋतिक क्यूँ परेशन कर रहा है दादा जी को? तू अपने रूम में सोएगा.
दादा जी: अर्रे रहने दो ना बहू, कहा ये मेरे साथ रह पाएगा.
मैं: हा वही तो मैं बोल रहा हू दादा जी.
मा दादा जी को आँखों से कुछ बोलने की कोशिश कर रही थी.
मा: पर पापा जी ये रात को पढ़ाई करता है. तो आपको भी रात में जागना पड़ेगा.
दादा जी: हा तो क्या हुआ, जाग लूँगा तोड़ा.
मैं: हा वही तो दादा जी.
मा: जैसा सही लगे आप दोनो को.
अब मॅटर सेट हो गया था. हम खाना खाने के लिए टेबल पर बैठे, फिर मा ने मुझे खाना दिया, और फिर दादा जी की तरफ गयी. मा उनके पास खड़े हो कर उन्हे सब्ज़ी दे रही थी, और दादा जी नीचे से मा की जांघों को सहला रहे थे, और मा डोर हॅट रही थी.
थोड़ी देर बाद मा वाहा से आ गयी और हमने खाना ख़तम किया. फिर मैं दादा जी के साथ उनके रूम में गया, और मैने झूठ का ही लाइट ओं किया, और पढ़ने बैठ गया. दादा जी सोने लगे या सोने का नाटक कर रहे थे पता नही चला. पर मैं वैसे ही पढ़ता रहा. रात के करीब 12:30 बजे दादा जी उठे.
दादा जी: तू अभी तक सोया नही?
मैं: नही बस सोने वाला हू. आप क्यूँ उठ गये?
दादा जी: वो ज़रा प्यास लगी है तो पानी पीने जेया रहा हू.
मैं: अर्रे दादा जी ये देखो मैने पानी लिया हुआ है.
इसके बाद मैने अपने बॉटल से उनको पानी दे दिया, जिसको पीने के बाद वो वापस लेट गये, और फिर 1 घंटे बाद मैं भी वही सो गया. अब मैं ज़्यादातर टाइम दादा जी के साथ ही रहता, और ऐसे ही 2-3 दिन और गुज़र गये. फिर मैने सोचा की तोड़ा सा उन दोनो को अकेला छ्चोढ़ देता हू. इसलिए मैने बोल दिया की मैं बाहर जेया रहा हू किसी काम से, तब मा अपने कमरे में थी और दादा जी हॉल में.
मैं बाहर गया और 2 मिनिट्स बाद अंदर आया तो दादा जी हॉल में नही थे. मैं समझ गया की वो कहा हो सकते थे, और इसीलिए मैं डाइरेक्ट मा के कमरे की तरफ चल दिया. फिर मैं उनके दरवाज़े के कीहोल से देखने लगा. मैने देखा की दादा जी मा के पीछे खड़े थे.
दादा जी: एक रौंद हो जाए, बहुत दिन हो गये है.
मा: इतना टाइम है क्या हमारे पास?
दादा जी: हा, ऋतिक खि बाहर गया है.
मा: पर पापा जी वो आ जाएगा अभी.
दादा जी: अर्रे वो नही आएगा.
मा: पर मुझे दर्र लग रहा है, की कही वो आ ना जाए.
दादा जी: तू बेवजह दर्र रही है. वो नही आएगा, और एक तो वो आज-कल हर टाइम मेरे साथ ही रहता है, ना जाने क्यूँ?
मा ये सुन कर हासणे लगी और बोली-
मा: मैने तो पहले ही बोला था.
दादा जी: हा तो मुझे क्या पता था की वो मुझसे ऐसे ही चिपक जाएगा की मुझे उसकी मा से छिपकने का टाइम नही मिलेगा.
इसके बाद दादा जी ने मा को बेड पर बिता दिया, और उनकी सारी उठा दी. मा ने पनटी पहन रखी थी, जिसे दादा जी ने नीचे किया, और तुरंत मा की छूट में अपनी जीभ डाल दी.
मैं उन दोनो को तोड़ा और तड़पाना चाहता था, इसलिए मैं तुरंत नीचे गया और ज़ोर-ज़ोर से दादा जी को बुलाने लगा. थोड़ी ही देर में दादा जी नीचे आ गये.
मैं: कहा चले गये थे दादा जी आप?
दादा जी: अर्रे वो तेरे रूम में सोने चला गया था. बोल क्या काम था?
तब तक मा भी नीचे आ गयी थी.
मैं: चलो दादा जी कही घूम कर आते है.
मा: क्यूँ उनको परेशन कर रहा है? तू चला जा अकेले, या किसी दोस्त को साथ लेले.
मैं: नही मैं दादा जी के साथ जौंगा.
दादा जी: बेटा सही बोल रही है तेरी मा. अब मैं कहा जौंगा तेरे साथ?
मैने मूह बना लिया और मैं वही बैठ गया.
मा: जब इतना बोल ही रहा ऋतिक तो पापा जी चले जाइए ना.
ये बोल कर मा ने एक कातिलाना मुस्कान पास की दादा जी की तरफ, और उन्होने इसके बदले में अपनी आँख दिखाई. पर फिर मेरे साथ चलने के लिए तैयार हो गये. मेरा ध्यान जब मा की तरफ गया, तो मैने देखा की उन्होने बस उपर से अपना ब्लाउस डाल रखा था, जिसे की उन्होने अपनी सारी से ढाका हुआ था. पर उनका ब्लाउस खुला हुआ था.
इसका मतलब था की दादा जी ने मा के ब्लाउस को भी खोल दिया था. पर क्यूंकी मैने जल्द-बाज़ी में आवाज़ दी तो दोनो ऐसे ही नीचे आ गये थे. कुछ दिन और मैने ऐसे ही दोनो को तडपया. मैं जानता था की अब दोनो एक-दूसरे के लिए उतावले हो रहे होंगे. तो मैने सोचा क्यूँ ना उन्हे एक रात दे ही डू, ताकि उनका भी काम हो जाए और मेरा भी.
ऐसे ही कुछ दीनो बाद मा एक दिन रेड सारी में थी, और वो किचन में खाना बना रही थी. मैं अपने रूम में था, और जब मैं नीचे आया तो देखा की दादा जी हॉल में नही थे. मैं मतलब समझ गया और मैं तुरंत किचन की तरफ गया, और मैने गाते से अंदर देखा.
मा खाना बना रही थी, और दादा जी वही उनके पीछे उनसे चिपके हुए थे, और उनके बूब्स को मसल रहे थे.
मा: हटिए, ऋतिक आ जाएगा.
दादा जी: तो क्या करू? अब मुझसे कंट्रोल नही हो रहा है.
मा: मॅन तो मेरा भी है, पर ऋतिक घर पर ही है, तो क्या करे?
दादा जी ने मा के बूब्स को उनके ब्लाउस के उपर से ही निकाल दिया था, और पल्लू भी गिरा दिया था. मा अपना काम भी कर रही थी, और साथ ही दादा जी की बातों का रिप्लाइ भी दे रही थी.
दादा जी: कुछ करके उसको आज रात बाहर भेजो वंदना, नही तो मैं ही आ जौंगा आज रात तुम्हारे कमरे में.
मा: इतनी भी उत्तेजना अची बात नही है पापा जी.
दादा जी मा के गालों को चूम रहे थे, और पीछे से अपना लंड मा की गांद में घुसा रहे थे.
दादा जी: तो क्या करू मैं अब? जिस काम के लिए आया हू, वो भी नही हो रहा.
मा: चलिए आज कुछ करती हू.
दादा जी: पक्का ना?
मा: हा बाबा देखती हू क्या हो सकता है.
दादा जी: कही ऐसा इसलिए तो नही बोल रही की मैं चला जौ यहा से?
मा: नही, मेरी छूट में भी आग उठ रही है, और उसको शांत करने के लिए ही ऐसा बोल रही हू.
इसके बाद दादा जी ने मा को पीछे से ही उनकी गाल पर किस किया, और वापस मुड़े. तब तक मैं भी बगल में हो गया. अब मैने सोचा की आज रात इनकी चुदाई देख ही लू इसलिए दोपहर में मैने मा से बोला-
मैं: मा आज मेरे एक दोस्त का बर्तडे है, तो मैं आज रात को वही जौंगा, और अगर लाते होगा तो वही रुक जौंगा.
मा (गुस्से का नाटक करते हुए): रुकना नही है कही भी, बर्तडे मानने के बाद वापस आ जाना.
मैं: मा सब दोस्त रुकेंगे वही, तो मुझे भी रुकने दो ना.
दादा जी: जाने दो बहू. आज की रात इसे दोस्तों के साथ ही गुज़ार लेने दो.
मा: पापा जी आप इसकी आदत नही जानते, एक बार रुक गया तो हर बार कहेगा, और इसके दोस्त भी बहुत है.
दादा जी: क्यूँ ऋतिक बेटा, एक ही बार के लिए है ना?
मैं: हा दादा जी.
दादा जी: तो ठीक है तू जा सकता है.
मैं: पर मा तो माना कर रही है.
दादा जी: जाने दो बहू, इसे भी तोड़ा एंजाय करने दो.
मा (हल्की स्माइल के साथ): ठीक है पर बस एक बार.
मैं: ठीक है मा.
इतना बोल कर मैं बाहर आ गया और उनकी बात सुनने लगा.
दादा जी: एक मौका मिल रहा था, और तू वो भी नही ले रही थी.
मा: अर्रे पापा जी तोड़ा गुस्सा तो दिखना होगा ना उसे.
दादा जी: और मुझ पर गुस्सा कब दिखावगी जान?
मा: आज रात को.
दादा जी: आज रात को तुम वो पिंक कलर की नेट वाली सारी और ब्लॅक पेटिकोट पहनना बहू, और साथ ही पिंक की नेट वाली ब्रा पनटी जो मैने तुम्हे ला कर दी थी लास्ट बार.
मा: नही मैं तो निघट्य पहनुँगी.
इतना बोलने के बाद मा हेस्ट हुए निकल गयी, और मैं भी वाहा से हॅट गया.
मैं जानता था की अगर मैं बाहर गया तो अंदर नही आ पौँगा और इसलिए मैने अपने कमरे से ही करीब 8 बजे मेसेज किया मा को की मैं अपने दोस्त के यहा आ गया हू.
करीब 9 बाज चुके, पर अब भी वो लोग नीचे ही थे. मुझे तो लगा की कही सारा काम नीचे ही ना हो जाए. पर तभी मुझे किसी के सीडी पर आने की आवाज़ आई तो मैं अपने कमरे में चला गया. मैने डोर से देखा तो दादा जी मा के रूम में जेया रहे थे. उसके कुछ ही देर बाद मा भी अपने कमरे में आई.
मा: अभी नही, रुकिये तोड़ा, नहा कर आती हू फिर.
दादा जी: नहाने की क्या ज़रूरत है? ऐसे ही आजा ना.
मा: नही मैं नहा कर आती हू, बस 10 मिनिट और.
इसके बाद मा ने आल्मिराह खोली और अपने कपड़े ले कर नहाने चली गयी.
ये पार्ट यही रोकते है. उम्मेड है आपको स्टोरी पसंद आई होगी.