मेरा नाम अमित है। पिता जी रेलवे की नौकरी में उंचे पद पर थे। मुझसे दो साल बड़ी एक बहन है। उसका नाम अनीता है। पिता जी की रेलवे की नौकरी थी। बढ़िया आमदनी थी। फिर भी मेरी मां को नौकरी करने का बहुत शौक़ था। हर तीन-चार साल पर पिता जी का तबादला हो जाता था, लेकिन नई जगह पर जाने के एक महीना के अंदर ही मां को भी बढ़िया नौकरी मिल जाती थी। हम चारों की ज़िंदगी बहत आराम से कट रही थी।
मुझे पहला झटका तब लगा जब 18 साल की उम्र में मुझे देहरादून के एक बहुत ही मशहूर कॉलेज में पढ़ने के लिए भेज दिया गया। शुरू-शुरू में मैं बहुत रोया लेकिन धीरे-धीरे वहां बढ़िया लगने लगा। मैं घर सिर्फ़ दो बार ही आता था, एक गर्मियों की छुट्टी में, और दूसरा जाड़े की छुट्टी में। उम्र बढ़ती गई तो लड़कियों की तरफ़ मेरा आकर्षित होना बढ़ता गया।
समय बहुत तेज़ी से भाग रहा था। मेरे लंड में तनाव आने लगा। मुझे अपने तने हुए लंड को सहलाना बहुत ही बढ़िया लगने लगा। फाइनल ईयर में अब हम सीनियर्स हो चुके थे। होस्टल में पहली रात थी और मैं पढ़ाई कर रहा था। अचानक 5 सहपाठी लड़के मेरे कमरे में घुसे और उन्होंने रुम का दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया।
मैं: क्या यार, कल के क्लासेज़ के लिए पढ़ाई कर रहा था।
हम सभी लड़के बहुत ही गहरे दोस्त हो गये थे। मेरे बोलने का उनके उपर कोई असर नहीं हुआ। एक लड़के विनोद ने मेरे सामने कई किताबें फेंकी। आंखों के सामने कई तस्वीरें थी। कुछ तस्वीर में सिर्फ़ नंगी औरतें थी और कुछ में चुदाई के फ़ोटो थे।
विनोद: इन छुट्टियों में मैंने तीन माल को खूब चोदा। उन में से 2 मेरी मां की ख़ास सहेलियां थी। तीसरी मेरी एक पड़ोसन लड़की थी, जो ख़ुद ही मुझ से चुदवाने आती थी।
उसकी बातों से मेरा पढ़ाई का मूड ख़त्म हो गया, और हम सब अपनी लड़कियां दोस्त, मां और बहन की बातें करने लगे। विनोद ने विस्तार से अपनी सभी चुदाई की कहानी सुनाई और आख़िर में उसने कहा, “इस बार जैसे भी हो अरविंद सर की पत्नी रेखा को ज़रूर चोदूंगा। उसे जब भी देखता हूं, लंड पैंट फाड़ कर बाहर आने के लिए बेताब हो जाता है।”
विनोद की पसंद सही में बहुत ही बढ़िया थी। स्कूल कंपाउंड में जितनी भी औरतें थी रेखा सबसे ज़्यादा सुंदर और आकर्षक थी। मैंने किसी से कभी नहीं कहा कि रेखा को देख कर मुझे हमेशा अपनी मां की याद आती थी। सच तो यह है कि सिर्फ़ रेखा के कारण ही मैंने अपनी मां को मिस नहीं किया। क़रीब एक घंटा बाद सभी बाहर चले गये।
पढ़ाई का मूड खत्म हो गया था। विनोद ने रेखा का नाम लिया तो रेखा की ख़ूबसूरती के साथ-साथ मुझे अपनी मां और दीदी अनीता की जवानी की याद आने लगी। और अचानक मुझे कुछ दिन पहले हुई पिता जी और दीदी की बात याद आ गई।
पिता जी को सरकारी मकान मिला हुआ था। चार बेडरूम का मकान था। खुला हुआ छत था। जैसा अक्सर होता है छुट्टियां ख़त्म होने को आती है, तो मन बेचैन रहने लगता है। मैं आप सब को बता दूं, घर में हम चार ही थे। लेकिन मेरी अपने पिता जी से ही ज़्यादा बनती थी। मैं मां या दीदी के साथ बहुत ही कम समय गुज़ारता था। जब घर से अगले ही दिन मुझे देहरादून के लिए निकलना था, तो रात में मुझे नींद नहीं आ रही थी, तो मैं छत पर चला गया। छत पर पहुंचा ही था कि आवाज़ सुनी।
पिता जी: अनीता, कितना और कब तक तड़पाओगी? तुम्हें बढ़िया से मालूम है कि मुझे क्या चाहिए। तुम मुझे देती क्यों नहीं?
अनीता की खिलखिलाती आवाज़ सुनाई दी।
अनीता: मेरे प्यारे पिता जी, आप को मैंने एक महीना पहले ही बता दिया था कि आपका सामान आपको कैसे मिलेगा। पहले आप मेरा काम कर दो, फिर अपना सामान लेलो।
उसके बाद भी दोनों बातें करते रहे, लेकिन मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। 5-7 मिनट के बाद-
अनीता: अब चलो बहुत हो गया। वो तुम्हें तभी मिलेगा जब तुम मुझे मेरी चीज़ दोगे। तब तक इतने से ही काम चलाओ।
मुझे समझ नहीं आ रहा था कि दोनों बाप-बेटी क्या लेने-देने की बात कर रहे थे। मैं अगर दस कदम आगे जाता, तो देखता कि पापा बिल्कुल नंगे बैठे थे। अनीता ने पैंटी के उपर एक मिनी फ़्रॉक पहनी थी। अनीता बाप का लंड सहला रही थी, और बाप-बेटी की जवानी को सहला रहा था।
डेढ़ महीना पहले मेरे बाबू जी नवीन ने अपनी बेटी को एक पार्क में किसी जवान आदमी की गोदी में बैठे देखा था। उसी रात बाप ने बेटी को चार्ज किया और पूछा कि ये रंडीपना कब से कर रही थी। अनीता को ना कोई शर्म आई ना ही कोई हिचक हुई।
अनीता: बाबू जी, अभी तक मैं ने रंडीपना शुरु नहीं किया है। थोड़ी बहुत मस्ती लेती हूं, लेकिन अब तक कुंवारी हूं। अगर आप मेरी मदद करो तो फिर आप को बेटी के कमरे में ताक-झांक करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। जब मैं नहाती हूं उस समय जो आप मेरी नंगी जवानी देखने के लिए मेहनत करते हो, वो सब नहीं करना पड़ेगा। मैं ख़ुद आपको सब कुछ दे दूंगी। लेकिन मेरा जवानी को सबसे पहले नरेन्द्र चाहिए। वो आपके ऑफिस में ही इंजीनियर है।
नवीन यह जानकर क्लीन बोल्ड हो गया कि बेटी को उसकी हरकतों की जानकारी थी।
नवीन: तुम मुझसे क्या चाहती हो?
बोलते हुए नवीन बेटी की दोनों चूचियों को पकड़ कर दबाने लगा। बेटी ने बाप के हाथ को गाउन के उपर से नहीं हटाया।
अनीता: मुझे नरेंद्र के साथ दिन में ही सुहागरात मनानी है। आप एक दिन घर में रहो। मैं नरेंद्र को बुला लूंगी। आप बाहर रखवाली करना और अंदर नरेंद्र आपकी बेटी की चूत फाड़ेगा, और जिस दिन नरेंद्र मुझे चोद लेगा, उसी रात इसी बेड पर आपके साथ चुदवाऊंगी।
उस रात के बाद से हर रात बाप बेटी से चुदवाने के लिए खुशामद करता रहा, और बेटी ज़िद पर अड़ी रही कि पहले नरेंद्र से चुदवायेगी। दो दिन बाद से ही बेटी बाप के लंड को सहलाने लगी। बहुत खुशामद करने पर बेटी ने लंड चूसना भी शुरु कर दिया। लेकिन नरेंद्र से चुदवाने की ज़िद पर अड़ी रही।
मैंने उस घटना को याद किया और रात में ही मां को चिट्ठी लिखी। छत पर मैंने बाप बेटी के बीच क्या बात हुई थी सब लिखा और अंत में अपना फ़ैसला सुनाया-
मैं: मां, मुझे लगता है कि बाबू जी अपनी बेटी को चोदते हैं। यह बहुत ग़लत है ना!?
मैंने चिट्ठी को लिफ़ाफ़े में डाला और मां जिस स्कूल में काम करती थी वहां का पता लिखा। अगली सुबह मैंने चिट्ठी पोस्ट कर दी। अगले शाम से मैं हर रोज़ मार्केटिंग कम्प्लेक्स में जाने लगा। कुछ ख़रीदारी करने नहीं सिर्फ़ रेखा की झलक देखने के लिए। मुझे ज़्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ा। तीन दिन बाद ही मैंने रेखा को एक दुकान से निकलते देखा। मेरे कई दोस्त साथ थे। लेकिन सबको छोड़ कर मैं रेखा के पास गया और झुक कर दोनों फ़ीट को छू कर प्रणाम किया।
अमित: प्रणाम मैडम। मैं अमित हूं, फाइनल ईयर में हूं। आप से बात करने का बहुत मन कर रहा है। क्या मैं आपके घर आ सकता हूं?
रेखा ने घूर कर अमित को देखा।
रेखा: नहीं। किस होस्टल में रहते हो?
मैंने होस्टल का नाम ही नहीं, रुम नंबर भी बताया। रेखा वहां से चली गई। रेखा को बढ़िया से मालूम था कि सीनियर क्लास के लड़के उसकी एक झलक के लिए तरसते थे। उसके पास लड़कों की लिखी हुई चिट्ठियां भी आती थी। किसी भी चिट्ठी पर भेजने वाले का नाम नहीं होता था।
अधिकतर चिट्ठियों में यही लिखा रहता था कि वो बहुत ही सुंदर है, बहुत सेक्सी है। लेकिन कुछ चिट्ठियों में सिर्फ़ सेक्स की बातें रहती थी। उसे चोदने की बात रहती थी। वैसी चिट्ठियों को रेखा अपने पति से शेयर करती थी। लेकिन आठ साल में यह पहला मौक़ा था जब किसी लड़के ने पब्लिक प्लेस में इस तरह उससे बात की हो। लड़के ने अपना नाम ही नहीं होस्टल और रुम नंबर भी बताया। उसने घूम कर पीछे देखा। मैं उसे घूर ही रहा था। रेखा ने मन ही मन कहा “बहुत हिम्मत है लड़के में।”
वापस होस्टल आकर पढ़ाई क्या करता, रेखा और अपनी मां इन्दिरा के बारे में ही सोचता रहा। रेखा से बात करने के 4 घंटा बाद जब अपने रुम में घुसा तो देखा कि दरवाज़े के पास फ़्लोर पर एक गुलाबी रंग का पेपर का चिट गिरा हुआ था। मैंने चिट उठाया। इससे पहले कि वो पढ़ता मेरा खास दोस्त विनोद रुम में घुसा और बेड पर लेट गया।
विनोद: तुम मेरी माल रेखा से क्या बात कर रहे थे?
अमित: जिसने तुम से ये बात कही उसने ये नहीं कहा कि मैंने रेखा मैडम का फ़ीट छू कर प्रणाम किया। यार रेखा बिल्कुल मेरी मां जैसी है।
विनोद: यानी तुम्हारी मां भी रेखा जैसी सुंदर है? रेखा को चोदूंगा यानी तेरी मां को चोद लूंगा।
अमित: सोचने की क्या ज़रूरत है। मेरे घर चलो और पटा कर मेरी मां को चोद लो। यार सच बोल, तुमने अपनी मां को भी चोद लिया है ना!
मेरी बात सुन कर विनोद बहुत दुखी हो गया।
विनोद: सच बोलता हूं दोस्त, सब से पहले जिस बूर में लंड पालना चाहता था वो मेरी अपनी मां का ही बूर है। कुतिया घर में ड्राइवर से चुदवाती है। तीन-चार साल से चुदवा रही है। एक साल पहले मैंने उसे ड्राइवर से चुदवाने रंगे हाथ पकड़ा। मैंने उसे बहुत धमकाया, डराया लेकिन उस बेशर्म पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा। उल्टा रंडी ने मुझे ही धमकाया कि वही सबसे कह देगी कि मैं अपनी मां को चोदना चाहता हूं।
विनोद: यार सभी औरत की ही बात सुनते है। फिर मैं उसकी बहुत खुशामद करने लगा। तब मैंने साफ़-साफ़ कह दिया कि वो दुनिया भर के कुत्तों से भी चुदवा लेगी लेकिन बेटे से कभी नहीं चुदवायेगी। लेकिन मां ने अपनी ही उम्र की अपनी दो सहेलियों को मुझसे चुदवाया।
विनोद की बात सुन कर मेरा लंड फिर टाइट हो गया और इस बार जो औरत मेरी आंखों के सामने आई, वो मेरी दीदी नहीं मेरी खूबसूरत मां इन्दिरा थी। उस समय पहली बार मां को चोदने का ख़्याल आया।
विनोद के जाने के बाद मैंने दरवाज़ा ठीक से बंद किया। पॉकेट से चिट निकाल कर पढ़ा। मेरे माथे पर पसीना आ गया। चिट में लिखा था। “अगर मुझसे मिलना चाहते हो तो आज रात मेरे घर आओ। मैं 12 बजे रात तक इंतज़ार करुंगी। अगर आज नहीं आये तो फिर कभी मेरे सामने मत आना, रेखा।
मैंने इस संदेश को बार-बार पढ़ा। पहले तो लगा कि किसी दोस्त ने मेरे साथ मज़ाक़ किया था। फिर मैंने फ़ैसला किया कि चांस लेने में क्या नुक़सान था। मैंने सोचा कि रेखा के घर तक जाऊंगा। अगर वो इंतज़ार करती हुई मिली तो ठीक, नहीं तो वापस आ जाऊंगा। रेखा का घर हमारे होस्टल से क़रीब 1 किलोमीटर की दूरी पर था।
मैं रात गुजरने का इंतज़ार करने लगा। संदेश में लिखा था कि वो 12 बजे रात तक ही इंतज़ार करेगी। मैंने सिर्फ़ एक पाजामा कुर्ता पहना। सर पर एक हुड डाला कि जल्दी से कोई मुझे पहचान ना सके। लेकिन एक समस्या थी, और वो समस्या था होस्टल के गेट का नाइट गार्ड। मैंने पॉकेट में सौ का 5 नोट लिया और सवा ग्यारह बजे अपने रुम से निकला। मैंने लॉक लगाया और सामने के एक फ्लावर पॉट में चाबी रख दी।
गेट पर पहुंचा ही कि गार्ड ने टोका, “अमित साहब, इतनी रात को कहां जा रहे हो?”
ये उसने लाउडली कहा फिर धीरे से बोला,
“किसी ने चोदने के लिए बुलाया है क्या?”
उसकी बात सुन मैं अकबका गया।
गार्ड: ये कोई नई बात नहीं है। पिछले बैच में एक आनंद साहब थे 23 नंबर के रुम में। वे अक्सर रात को किसी को चोदने जाते थे। लेकिन रात में ऐसे बाहर जाने से पकड़े जाने का डर है। आप को कोई माल चाहिए तो मैं आपके रुम में ही रात भर के लिए इंतज़ाम कर दूंगा। लड़की का 2 हज़ार और मेरा 2 सौ। मेरे हाथ में बहुत बढ़िया-बढ़िया माल है। सभी 25 साल से कम उम्र की। सब की सब स्कूल स्टाफ़ की बेटी है, बहन है, या घरवाली है।
गार्ड: और अगर आपको अपनी मां यानी मां की उम्र की ही औरत को चोदना है, तो मैं वैसी 4 माल की दलाली करता हूं। चारों की चारों आपके किसी टीचर की ही घरवाली है। लेकिन उनकी क़ीमत ज़्यादा है। वे सिर्फ़ 2 घंटा का 3 हज़ार लेती है। लेकिन साहब 2 घंटा में जो भी बोलोगे सब करेगी।
उसकी बातों से मेरी हिम्मत बढ़ी।
अमित: काका, आज एक बहुत बढ़िया माल ने बुलाया है। आज मुझे अपनी क़िस्मत आज़माने दो। अगर कल उसने नहीं बुलाया तो तुम अपनी किसी बढ़िया माल को रुम में भेज देना। मैं वापस आकर बताता हूं।
मैंने गार्ड को 2 सौ रुपया दिया। उसने मुझे बाहर जाने दिया लेकिन बोला कि 5 बजे के पहले वापस आ जाऊं।
जब मैं रेखा के घर पहुंचा, तो 11:45 हो गये थे। मैं यह देख कर बहुत खुश हुआ कि बरामदे में रेखा बैठी थी।