गाओं में दादा ने पोती की चूत चाती

ही फ्रेंड्स, मैं दीप्ति अपनी स्टोरी के नेक्स्ट पार्ट के साथ आप सब के सामने हाज़िर हू. जिन लोगों ने अभी तक पिछला पार्ट नही पढ़ा है, वो पहले पिछला पार्ट ज़रूर पढ़े. पिछला पार्ट पढ़ने के बाद आपको कहानी बेहतर समझ में आएगी.

पिछले पार्ट में आपने पढ़ा, की दादा जी हमे गाओं लेने आए थे. फिर बस में दादा जी ने मुझे टच करना शुरू किया. पहले मुझे लगा वो नींद में थे, लेकिन ऐसा कुछ नही था. फिर उन्होने मेरी छूट रग़ाद कर मुझे मेरा पहला ऑर्गॅज़म दिया. अब आयेज बढ़ते है.

मेरा पानी निकल चुका था. पानी निकालने के बाब जब मैने दादा जी की तरफ देखा, तो वो हस्स रहे थे. फिर वो मुझे बोले-

दादा जी: बड़ा पानी छ्चोढा है तेरी छूट ने रंडी. भारी पड़ी है तू अंदर से. कोई नही, तेरा सारा पानी गाओं में निकलेगा.

ये बोल कर वो फिसे आँखें बंद करके लेट गये. मैं अब सोचने लग गयी, की मेरे साथ क्या हो गया था. मेरी कक़ची पूरी गीली हो चुकी थी, जैसे मेरा सस्यू निकल गया हो. मुझे समझ नही आ रहा था, की मैं क्या करू. अगर मम्मी-पापा को बताती तो वो क्या सोचते.

जो भी था, लेकिन मुझे आज अलग सा ही मज़ा भी आया था. ऐसा मज़ा, जो आज से पहले कभी नही आया था. लेकिन जब मैं सोचती की मेरे दादा जी ने ये मेरे साथ किया था, तो मुझे घिंन आने लगती. मैं पुर रास्ते यही सोचती रही, और सोचते-सोचते हम गाओं पहुँच गये.

हम बस से उतरे, तो टाइया जी आयेज गाड़ी लेके खड़े थे. मेरे दादा जी के दो बेटे है, एक मेरे पापा, और दूसरे टाइया जी. गाओं में दादा-दादी के साथ टाइया जी, टाई जी, और उनका बेटा रहते है. वो खेती-बाड़ी का काम देखते है.

फिर हम सब गाड़ी में बैठ गये. दादा जी टाइया जी के साथ आयेज बैठ गये, और मैं, मम्मी, और पापा पीछे की सीट पर बैठ गये. मुझे अपनी कक़ची में ठंडा-ठंडा फील हो रहा था, क्यूंकी मेरी कक़ची भीगी हुई थी.

मैं पीछे ड्राइवर की सीट की बॅक्सीट पर बैठी थी. मैने देखा, की दादा जी रियर व्यू मिरर में से मुझे देखे जेया रहे थे. लेकिन मैने अपनी नज़र वाहा से हटता ली. थोड़ी देर में हम घर पहुँच गये.

दादी ने बड़े प्यार से हमारा स्वागत किया. टाई जी ने भी मुझे प्यार दिया, और उनका बेटा चेतन जो 23 साल था, उसके साथ भी मेरी ही-हेलो हुई. फिर दादी ने हम सब को हमारे रूम्स का बताया, और हम सब अपने-अपने रूम्स में चले गये.

मम्मी-पापा को अलग रूम मिला था, और मुझे अलग. मैं जैसे ही रूम में गयी, जल्दी से बातरूम में घुस्स गयी. मैने अपनी जीन्स और पनटी निकली, और गीला कपड़ा लेके अपनी छूट सॉफ की. फिर मैने पाजामा और त-शर्ट और नयी कक़ची पहन ली, और बातरूम से बाहर आके बेड पर लेट गयी.

थोड़ी देर में मेरी आँख लग गयी, लेकिन तभी बाहर से दादी की आवाज़ आई. वो डिन्नर के लिए बुला रही थी. मैं बाहर गयी, तो सब डिन्नर टेबल पर बैठे थे. मैं भी जाके टेबल पर बैठ गयी. डिन्नर करते हुए मैने दादा जी की तरफ देखा, तो वो मेरी तरफ देख कर स्माइल करने लगे. उनके स्माइल करते ही मेरी छूट में झंझनाहट होने लग गयी. फिर मैने जल्दी से डिन्नर ख़तम किया.

डिन्नर के बाद मैं अपने रूम में आ गयी. मैने थोड़ी देर मोबाइल उसे किया, और फिर लेट गयी. तभी अचानक मुझे बस वाला सीन याद आ गया. पता नही क्यूँ जो दादा जी ने मेरे साथ किया, मुझे वो सोच कर मज़ा आने लगा. मेरे बदन में करेंट सा लगने लगा. यही सोचते-सोचते मैं कब सो गयी, मुझे पता ही नही चला.

आधी रात को जब मैं सो रही थी, तो मुझे अपने चेहरे पर कुछ महसूस हुआ. मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे कोई मेरे उपर चढ़ा हुआ था. तभी मैने आँखें खोली, और देखा तो दादा जी मेरे उपर थे. उनको देख कर मैं एक-दूं से दर्र गयी

मैं बोली: दादा जी आप.

तभी दादा दी ने अपनी उंगली अपने लिप्स पर रख कर मुझे “स्शह” बोला. मैं चुप हो गयी. जब मैं चुप हुई, तो दादा जी ने अपना फेस आयेज बढ़ाया, और मेरे गालों पर किस करने लगे. मैं उनको हटाने की कोशिश करने लगी, लेकिन मेरी कोशिश वेस्ट थी. उनमे मुझसे बहुत ज़्यादा ताक़त थी.

मेरे गालों को किस करते हुए वो मेरी गर्दन पर आए, और चूमने लगे. मेरी साँसे तेज़ होने लगी. फिर वो चूमते-चूमते नीचे गये, और मेरे पाजामे में हाथ डाल कर पाजामा नीचे करने लगे. मैने अपना पाजामा पकड़ लिया, लेकिन उन्होने ज़ोर से खींच कर पाजामा उतार दिया. साथ ही उन्होने मेरी कक़ची भी उतार दी.

अब मैं नीचे से नंगी थी. मुझे समझ नही आ रहा था की दादा जी क्या करने वाले थे, और मैं क्या करू. मैं उन्हे रोकना चाहती थी, लेकिन मेरे बदन में उठ रही सनसनी मुझे उनको रोकने नही दे रही थी.

तभी दादा जी ने अपना मूह मेरी छूट में घुसा दिया. इससे मेरी ज़ोर की आहह निकल गयी. मेरी आवाज़ बंद करने के लिए दादा जी ने मेरे मूह में मेरी कक़ची घुसा दी. फिर वो मेरी छूट पर जीभ फेरने लगे. उनके जीभ फेरने से मेरे बदन में करेंट दौड़ने लगा. मैं आहें भर रही थी, लेकिन मेरे मूह में फ़ससी कक़ची मेरी आवाज़ को बाहर आने नही दे रही थी.

दादा जी ज़ोर-ज़ोर से अपनी ज़ुबान मेरी चूत के अंदर-बाहर करने लगे. मैं अपने आप को रोक नही पा रही थी, और अब मैं भी गांद हिला-हिला कर अपनी छूट चुसवाने का मज़ा लेने लगी. दादा जी की स्पीड बढ़ती जेया रही थी, और मैं चरमसुख के करीब पहुँचती जेया रही थी.

तकरीबन 5 मिनिट तक वो अपनी जीभ से मेरी छूट छोड़ते रहे. फिर मेरी छूट ने ऐसी पिचकारी छ्चोढी, की उनका मूह पूरा मेरे पानी से भर गया. कुछ पानी उनके मूह के बाहर भी लग गया. दादा जी ने मेरा सारा पानी पी लिया, और खड़े हो गये. फिर अपना मूह पोंछते हुए रूम से बाहर निकल गये. मैं वैसे ही पड़ी-पड़ी सो गयी.

इसके आयेज क्या हुआ, आपको अगले पार्ट में पता चलेगा. अगर आपको कहानी पढ़ कर मज़ा आया हो, तो इसको अपने दोस्तों में भी ज़रूर शेर करे. ताकि वो भी इसका मज़ा ले सके.