गांडू दोस्त की बीवी की चुदाई के सच की कहानी

बातों से ही लग रहा था, कि युग अपनी शादी की पहली रात को चित्रा के साथ चुदाई ना हो पाने के कारण बड़ा मायूस था। ये सब बातें युग मेरे साथ तो कर सकता था, मगर किसी और के साथ नहीं।

फिर कुछ देर की चुप्पी के बाद युग ही बोला, “राज छोड़ सब, ये बता यार तू कब वापस आ रहा है? तेरे यहां होने से कुछ हौंसला तो होगा। ऐसी हालत में बड़ा अकेलापन सा लग रहा है। किसी से इस बारे में बात भी नहीं कर सकता।”

उस पल मुझे युग पर बड़ा तरस आया। मैंने बस इतना ही कहा कहा, “हिम्मत मत हार मेरे दोस्त। इसी साल के आखिर में हमारी फाइनल परीक्षा है। 2022 जनवरी-फरवरी में रिजल्ट आ जाएगा। उसके बाद सर्टिफिकेट मिल जाएंगे। ये समझ लो फरवरी या मार्च तक इंडिया वापस आ जायेंगे।”

युग ने बस इतना ही कहा, “चल ठीक है फिर। जब तू आएगा तभी बात करेंगे।” इसके युग के साथ बाद मेरी बात तो होती थी, मगर मैंने कभी फिर चित्रा का जिक्र नहीं किया। ना ही मैंने कुछ पूछा ना उसने ही मुझे कुछ बताया।

2022 फरवरी में हमारा रिज़ल्ट आ गया। मार्च के पहले हफ्ते में हमारी वापसी थी। युग को मैंने वापसी का प्रोग्राम बता दिया। युग ने खुश होते हुए कहा, “ये तो बढ़िया हो गया। चल आ जाओ फिर बात करेंगे। मुझे एक बार फोन करके पूरा प्रोग्राम बता देना।”

जाने से चार दिन पहले से हमने जो पारुल, तबस्सुम और किम की चुदाई की, वो याद रखने लायक थी। उन्होंने भी हर वो काम कर लिया, जो शायद पहले ना किया हो। लंड चूसने से ले कर हमारे चूतड़ चाटने तक सब कुछ कर लिया। तीनों ने चूस-चूस कर लंड का पानी बार-बार मुंह में छुड़ाया। हमारे चलते वक़्त बलविंदर, सुमित और तीनों लड़कियां पारुल तबस्सुम और किम उदास हो गयी थी।

किम से तो अब मुलाक़ात होनी नहीं थी, मगर बलविंदर, सुमित, पारुल और तबस्सुम ने इंडिया आने पर मिलने का वादा जरूर किया। जाते-जाते हम सब ने एक-दूसरे की फ़ोन नंबर भी ले लिए।

— हमारी लखनऊ वापसी।

आखिर हमारी वापसी हो गयी। दिल्ली पहुंच कर एयरपोर्ट से मैंने शिवाज़ रीगल की व्हिस्की की दो बोतलें ले ली। एक अपने पापा के लिए, और एक युग के पापा, त्रिपाठी अंकल के लिए। दिल्ली एयरपोर्ट से हमने लखनऊ के लिए सीधी टैक्सी ले ली।

पापा तो दो साल पहले ही लखनऊ के गोमतीनगर शिफ्ट हो चुके थे। हेमंत को उसके घर पर उतार कर मैं टैक्सी में अपने घर गोमतीनगर की तरफ रवाना हो गया। घर पहुंच कर सफर की थकान के कारण जाते ही मैं सो गया और अगले दिन दोपहर को जा कर नींद खुली।

पापा जा चुके थे। मैंने ऑटो पकड़ा और शोरूम पहुंच गया। पापा ने शोरूम बढ़िया बनाया था। सारे ऊंचे ब्रांड के टीवी, फ्रिज और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक घरेलू सामान से शोरूम भरा पड़ा था। कुछ देर वहां रुकने के बाद पापा मुझे दूसरी वाली जगह पर ले गए जिसमे फ़ास्ट फ़ूड का रेस्टोरेंट खुलना था। रेस्टोरेंट का कुछ सामान आ चुका था। साज सजावट में कुछ वक़्त लगने वाला था।

मैंने पापा को कहा, “पापा मैं दो तीन दिनों के लिए बाराबंकी चला जाऊं। त्रिपाठी अंकल से भी चाची के गुजरने का अफ़सोस कर लूंगा। युग से भी मिल लूंगा।”

पापा ने कहा, “तू इतने साल बाद आया है अभी कुछ दिन घूम फिर मौज मस्ती ले।

इलेक्ट्रॉनिक चीजों का शोरूम तो चल ही रहा है। रेस्टोरेंट का कुछ सामान अमेरिका से आना है इस लिए इसे चालू होने में अभी कम से कम डेढ़ दो महीने से ज्यादा वक़्त लगने वाला है। जब तेरा मन चाहे तू बाराबंकी चले जाना। गाड़ी ले जाना। अपने घर के एक चाबी त्रिपाठी के घर पर रहती है वो ले लेना।”

अगले ही दिन दोपहर से कुछ पहले मैं कार से बाराबंकी के लिए रवाना हो गया। लखनऊ से बाराबंकी की सड़क चौड़ी हो चुकी थी। सड़क के दोनों तरफ कालोनियां और दुकानें बन चुकीं थीं। चार साल में काफी कुछ बदल चुका था। आधे घंटे में मैं बाराबंकी पहुंच गया।

सोच रहा था कैसी दिखती होगी चित्रा। एक बार तो चित्रा की चुम्मियां चूचियां और उसका लंड पकड़ना याद आ गया। दूसरे ही पल मैंने ये ख्याल दिमाग झटक दिए। चित्रा अब मेरे दोस्त की बीवी थी।

— चित्रा से आमना सामना।

मैंने त्रिपाठी अंकल के घर की दरवाजे की घंटी बजाई और इंतजार करने लगा। दरवाजा काम वाली ने खोला। कोइ नई काम वाली थी। अंदर से जनाना आवाज आयी, “कौन है लक्ष्मी?”

“लक्ष्मी।” शायद काम वाली का नाम था। मैंने कहा, “बोलो ऑस्ट्रेलिया से राज आया है।” लक्ष्मी ने वहीं से आवाज लगाई, “दीदी ऑस्ट्रेलिया से राज आये हैं।”

सुनते ही चित्रा बहार ही चली आयी। भरी पूरी जवान चित्रा, बला की खूबसूरत औरत बन गयी थी। भरा हुआ कड़क जिस्म। तनी हुई चूचियां, उभरे हुए चूतड़। चेहरे पर गुलाबीपन की चमक थी। चेहरे की चमक से कम से कम ऐसा तो नहीं लग रहा था की युग की चित्रा के साथ चुदाई ना होती हो। चुदाई की प्यासी औरत के चेहरे पर इतनी चमक नहीं होती। आते ही बोली, “अरे राज अंदर आ। ये अचानक? युग को मालूम है तू आने वाला है?”

मैंने कहा, “युग को मेरा इंडिआ आने का तो पता था। यहां बाराबंकी आने का मैंने नहीं बताया था। सोचा सरप्राईज़ दूंगा।”

चित्रा ने हंसते हुए कहा, “तुम और तुम्हारे सुरप्राइज़।” और चित्रा अंदर जाने के लिए मुड़ गयी।

हम अंदर ड्राईग रूम में आ गए। लक्ष्मी पानी का गिलास ले आयी। कुछ देर बैठने के बाद इधर-उधर की बातें मैंने पूछा ,”कैसी हो चित्रा? मेरा मतलब युग से शादी के बाद। आती तो तुम इस घर में पहले भी थी।”

चित्रा ने जवाब दिया, “ठीक हूं, तुम्हारे सामने हूं। तम्हें कैसी लग रही हूं?”

फिर चित्रा कुछ रुक मुझसे ही सवाल कर दिया, “और अगर तुम मेरी और युग की शादी के चक्कर में पूछ रहे हो कि मैं कैसी हूं, तो फिर तुम ही बताओ कैसी होना चाहिए मुझे? युग से शादी के बाद कैसी होना चाहिए मुझे। तुम बताओ, तुम तो युग के खास दोस्त हो।”

जिस तरीके से चित्रा ने उल्टा मुझसे ही सवाल कर दिया था, एक पल को तो मेरी बोलती बंद हो गयी। मुझे समझ ही नहीं आया की मैं क्या जवाब दूं। तभी लक्ष्मी चाय ले आयी। चाय पीते-पीते मैंने पूछा, “क्या बात है चित्रा ऐसे क्यों कह रही हो?”

चित्रा ने वैसे ही जवाब दिया, “ठीक ही तो कह रही हूं। अगर तुम्हारा सवाल मेरी और युग की शादी के बारे में है तब तो तुम बताओ कैसी होना चाहिए मुझे युग से शादी के बाद? क्या तुम्हें नहीं पता युग के बारे में? तुम तो बचपन से इकट्ठे रहे हो। बचपन के दोस्त हो।”

मैं समझ गया कि चित्रा युग के गांडू होने की बात कर रही थी। ये इस बात का भी सबूत था के अब भी युग के साथ चित्रा की चुदाई ढंग से नहीं होती। लेकिन फिर ख्याल आया, अगर चुदाई ढंग से नहीं होती तो फिर चित्रा के चेहरे का ये गुलाबीपन, ये चमक? अगर चुदाई नहीं हो रही तो फिर ये क्या था? चित्रा के चेहरे पर तो उदासी नाम की चीज ही नहीं थी।”

तभी लक्ष्मी आ गयी और बोली, “दीदी दोपहर का काम तो हो गया। शाम को आती हूं। आते आते कुछ लाना है तो बता दो।”

चित्रा बोली, ” नहीं कुछ नहीं लाना। आज अंकल आएंगे वो बाजार से होते हुए सामान ले कर ही आएंगे।”

“ठीक है दीदी, मैं चलती हूं ” बोल कर लक्ष्मी चले गयी।

हम फिर बैठ गए। अभी तक युग की बात ही नहीं हुई थी। मैं सोच रहा था शायद युग फार्म पर गया होगा। मैंने कहा, “मैं जरा अंकल से बात कर लूं।”

मैंने अंकल को फोन मिला दिया, उधर से अंकल ने फोन उठाया तो मैंने कहा, “अंकल प्रणाम, मैं राज।” कुछ रस्मी बातें हुई, मैंने चाची के देहांत का दुःख जताया। फिर मैंने पूछा, “अंकल युग वहां है?”

अंकल ने बड़े रूखेपन से जवाब दिया, “नहीं यहां नहीं है। चलो शाम को मिलते हैं।”

अंकल के रूखेपन से मुझे हैरानी हुई। चित्रा बोली, क्या कहा अंकल ने युग के बारे मे?” मैंने बता दिया और साथ ही पूछा, ” बात क्या है चित्रा, अंकल ने ऐसे क्यों जवाब दिया?”

चित्र बोली, “इस लिए क्यों कि युग यहां नहीं है। वो अपने जैसे दोस्तों के साथ तीन चार दिन के लिए घूमने कहीं गया हुआ है।”

“अपने जैसे दोस्त?” क्या चित्रा का मतलब था गांडू, समलिंगी दोस्त? मैंने चित्रा को फिर पूछा, “अपने जैसे कैसे चित्रा? साफ़-साफ़ बताओ ये सब क्या है। सब लोग पहेलियां क्यों बुझा रहे हैं?”

चित्रा बोली, “कोइ पहेलियां नहीं बुझा रहा है? पहले तो तुम बताओ। तुमने मुझसे पूछा, युग से शादी करके कैसी हूं। अब तुम बताओ क्या तुम्हें पता नहीं युग क्या है? और ऐसे लड़के से शादी करके कोइ लड़की कैसी होगी? क्या तुम नहीं जानते युग समलिंगी है? लड़कियों में उसकी कोइ दिलचस्पी नहीं?”

चित्र के ये कहने पर मेरी बोलती बंद हो गयी। बोलता भी तो क्या बोलता? क्या बोलता के युग गांडू था? उस हिसाब से तो मैं कौन सा कम था। युग अगर बॉटम वाला गांडू था तो मैं भी तो टॉप वाला गांडू था। चुप रहने से काम नहीं चलने वाला था। मैंने कहा, “हां चित्रा मैं जानता हूं युग समलिंगी है।”

चित्रा ने बीच ही मुझे टोक कर कहा, “तुम तो बचपन के दोस्त थे। होस्टल में भी इकट्ठे रहते थे एक ही कमरे में। अगर वो समलिंगी है तो फिर बताओ तुम क्या हो?”

मुझे जवाब नहीं सूझ रहा था। मैंने बोलने की कोशिश की चित्रा मैं? मैं… मैं… मेरा मतलब… मुझे…।”

चित्र ने फिर मुझे टोक दिया ,” क्या मैं-मैं मेरा-मेरा, मुझे-मुझे लगा रखी है। बताते हुए शर्म आ रही है की तुम क्या हो? जब लखनऊ आते थे और मेरी चुम्मियां लेते थे मेरी चूचियां दबाते थे लंड मेरे हाथ में देते थे, तब शर्म नहीं आती थी? अब बताते हुए शर्म आ रही है कि तुम कौन से वाले समलिंगी हो?”

चित्र के इतना साफ़-साफ़ बोलने से मुझे बड़ी हैरानी सी हुई। मैंने कह ही दिया, “मैं युग जैसा समलिंगी नहीं था।”

चित्रा ने फिर कहा, ” मतलब तुम भी समलिंगी तो थे मगर युग जैसे नहीं। क्या थे तुम? कैसे वाले समलिंगी थे?”

चित्रा जितना साफ़-साफ़ पूछ रही थी मुझे हैरानी हो रही थी। फिर भी मैंने जवाब दिया “मैं टॉप था।”

चित्रा फिर बोली, “मतलब युग की तरह बॉटम नहीं थे, वर्सेटाइल भी नहीं थे। तुम और युग तो इकट्ठे रहते थे। फिर तो तुमने युग की गांड में भी जरूर डाला होगा।”

जिस तरीके से चित्रा समलिंगियों के बारे में बात कर रही थी और जैसे गांड, लंड बोल बोल कर बात कर रही थी, मुझे तो शर्म ही आनी शुरू हो गयी। मैंने खाली हां में सर हिला दिया।

चित्रा ने बस इतना ही कहा, “वैसे तो हद्द ही है तुम गांडुओं की। अब वो साला बॉटम गांडू युग, लड़की की चुदाई के नाम से ही उसके पसीने छूटने लगते हैं। अब पता नहीं तुम्हारा क्या हाल है। अभी भी पूछोगे, “चित्रा कैसी हो?”

चित्रा जितना साफ़-साफ़ बोल रही थी उससे मेरी झिझक तो खत्म हो गयी, मगर लंड में खुजली मचने लग गयी थी। मैंने चित्रा से पूछा, “चित्रा अगर ऐसी बात थी तो युग ने शादी के लिए हां ही क्यों की?”

चित्र बोली, “युग तो कहता है मना किया था उसने, पर मुझसे तो किसी ने पूछा ही नहीं। सब यही कह रहे थे जाना पहचाना जिमीदारों का घर है। लखनऊ से ज्यादा दूर भी नहीं है। आती-जाती रहेगी। मुझे भी कोई ख़ास एतराज तो था नहीं। देखने भालने में भी युग में कोइ कमी नहीं थी। किसी और से प्यार व्यार का भी मेरा कोइ चक्कर नहीं था। तुम्हारी साथ भी जो चूमा चाटी थी वो भी कच्ची जवानी की मस्ती ही थी, इससे आगे कुछ नहीं था।”

मैंने सोचा अगर चित्रा जो बता रही है वो सच है तो फिर चित्रा के चेहरे की ये चमक, चेहरे का गुलाबीपन? चित्र का चेहरा तो कुछ और ही कहानी बता रहा था। तो क्या चित्रा किसी और से चुदाई करवा रही थी। अगर ऐसा है तो फिर किससे?

मैंने झिझकते हुए कहा, “मगर चित्रा अगर युग कुछ नहीं कर पाता, मेरा मतलब है वो कुछ भी नहीं कर पाता,‌ तो फिर तुम…?” मुझे समझ नहीं आ रहा था कैसे कहूं कि चित्रा तुम्हारे चेहरे की चमक तो कुछ और ही कह रही है। इससे तो लग रहा है कि तुम्हारी चुदाई मस्त होती है।

चित्रा बोली, “बोलो-बोलो। क्या हुआ, रुक क्यों गए? यही बोलना था ना कि चित्रा तुम्हारे चेहरे से तो लग रहा है तुम्हारी अच्छी खासी चुदाई होती है।”

अब मेरी शर्म भी लगभग खत्म हो चुकी थी। मैंने कह ही दिया, “हां चित्रा यही कहना चाहता था। तुम्हारे चेहरे की चमक बता रही है तुम्हारी चुदाई होती रहती है वो भी मस्त। बिना किसी रुकावट के, बिना की डर के।”

चित्रा उठ कर मेरे पास आ गयी और मेरा हाथ अपने हाथ में ले कर बोली, “राज, बहुत कुछ जान गया है तू लड़कियों की चुदाई के बारे में? सच बता, बहुत लड़कियां चोदता आया है क्या ऑस्ट्रेलिया से?”

चित्रा की इस बात का मैंने कोइ जवाब नहीं दिया। फिर कुछ रुक कर चित्रा बोली, “हां राज मेरी चुदाई होती है और वो भी मस्त बिना किसी रुकावट के और बिना किसी डर के और वो भी जी भर कर – ऐसी चुदाई, जैसी चुदाई करवाने की हर लड़की की इच्छा होती है।”

मैंने चित्रा के हाथ पर हाथ रख कर पूछा, “कौन करता है चित्रा? युग का कोइ दोस्त है? युग के रिश्तेदारों को तो मैं जानता हूं। उनमें तो ऐसा कोइ नहीं जो तुम्हारी…” मैंने जानबूझ कर बात पूरी नहीं की।

चित्रा बोली, ” तुम ठीक कह रहे हो राज, यहां युग के रिश्तेदारों में कोइ नहीं जो मेरी चुदाई करे। और फिर युग के दोस्त तो युग जैसे ही गांडू होंगे। घर में युग और अंकल के अलावा एक ही मर्द आता है और वो है लक्ष्मी का पति बद्री। याद है बद्री? वही तुम लोगों का बचपन का दोस्त बद्री। पहले वाली काम वाली शारदा ताई का बेटा।”

चित्रा बता रही थी, “बद्री अब हमारे यहां ही काम करता है। पूरा जवान निकला है और यहां आता-जाता भी रहता है। मगर अब वो हमारे यहां ही नौकरी करता और नौकर चुदाई करवाना मुझे ठीक नहीं लगता।” फिर कुछ रुक कर मेरा हाथ दबाती हुई चित्रा बोली, “राज, युग के पापा, देसराज अंकल करते हैं मेरी चुदाई।”

मुझे जैसे करेंट लगा। मैंने अपना हाथ चित्रा के हाथ से छुड़ाया और बोला, “अंकल? युग के पापा? मगर चित्रा वो तो तुम्हारे…।” मैंने फिर बात अधूरी छोड़ दी।

चित्रा ने फिर से मेरा हाथ पकड़ा और बोली, “हां राज, युग के पापा मेरे ससुर, देसराज अंकल। वो चोदते हैं मुझे। और अब तो ये चुदाई शुरू हुए भी चार पांच महीने हो चुके हैं। अंकल के साथ मेरी चुदाई लगातार हो रही है।”