देवर ने भाभी के अकेला होने का उठाया फ़ायदा

उमीद है आप सब को पिछली स्टोरी पसंद आई होगी. जैसे की आपने पढ़ा होगा की मैने कैसे अपनी भाभी को संतुष्ट किया. मैने भाभी को बहुत आचे से छोड़ा, और फिर मैं उन पर सो गया. अब ज़्यादा वक़्त गावते नही, और आयेज बढ़ते है.

तो दो-टीन घंटे के बाद जब भाभी उठी, तो उन्होने क्या देखा की मैं उन पर सोया हुआ था. वो देख कर भाभी ने अचानक से मुझे धक्का दिया, और मुझसे पूछने लगी-

भाभी: ये क्या कर रहे हो देवर जी आप मेरे साथ? आपको ये सब करते हुए शरम नही आती?

मे: अर्रे भाभी, आप ही ने तो उकसाया था मुझे अपने साथ सेक्स करने के लिए.

भाभी (मॅन में): लगता है मैं देवर जी के लंड को देख कर मदहोश हो गयी होंगी, और देवर जी के साथ सेक्स कर लिया होगा.

भाभी: अर्रे देवर जी, इतना गुस्सा क्यूँ करते हो. मैं तो मज़ाक कर रही थी. मैं क्या अपने देवर के साथ मज़ाक भी नही कर सकती?

मे: श अछा.

अब भाभी अपने कपड़े पहन कर बातरूम में चली गयी नहाने (फ्रेश होने). मैं भी अपने कपड़े पहन कर पलंग पर बैठ गया, और अपना काम करने लगा. फिर भाभी बातरूम से आधी बाहर आते हुए मुझे अंदर आने का इशारा करती है. मैं उनको देख कर शॉक हो गया. मैने क्या देखा, की भाभी के रसीले बूब्स दिख रहे थे. मुझसे रहा नही गया, और मैं बातरूम के अंदर गया.

भाभी शवर के नीचे खड़ी हो कर नहा रही थी. उनके मक्खन जैसे बदन पर शवर का पानी गिर रहा था. मैं उनके पास गया, और उनके बूब्स दबाने काग़ा, और उनके निपल चूसने लगा.

भाभी: श आह आउच आह.

फिर मैं और भाभी एक-दूसरे को नहला रहे थे. मैने उनकी छूट से अपना माल (स्पर्म) सॉफ किया, और मुझे लिप्स किस दे रही थी. ऐसा तकरीबन 10 मिनिट तक चला. फिर मैं बाहर आ गया, क्यूंकी घर की डोरबेल बाजी थी. मैने दरवाज़ा खोला, और वाहा पर दूध वाला आया हुआ था दूध देने के लिए.

फिर मेरे मॅन में एक मस्ती सूझी. मैने दूध वाले के पास से एक थैली ज़्यादा दूध लिया. अब भाभी अपने कपड़े पहन कर, मतलब सारी पहन कर बाहर आई, और किचन में चली गयी खाना बनाने के लिए. मैने दूध की थैलियाँ फ्रिड्ज में रख दी, और एक थैली बाहर रहने दी.

फिर मैं भाभी के पास गया, और उनकी गांद दबाने लगा. नेरा एक हाथ उनकी गांद पर और एक हाथ बूब्स पर था. मैं सच में उनके पीछे पागल हो गया था.

भाभी: आह देवर जी छ्चोढिए ना. मुझे खाना बनाना है, प्लीज़.

अब भाभी बहुत ही गरम हो चुकी थी. मैने मौके का फ़ायदा उठा कर दूध की थैली खोली, और मैने सारा का सारा दूध भाभी पर गिरा दिया. ख़ास करके उनके बूब्स पर. भाभी पूरी तरह से दूध से भीग गयी थी. फिर उन्होने मुझे थप्पड़ मारा और बोली-

भाभी (गुस्से में): देवर जी, ये आप क्या कर रहे हो? ये बहुत ग़लत किया आपने, दूध को वेस्ट करके.

मे (रोमॅंटिक मूड में): अर्रे क्या हुआ भाभी जी, आपके मज़े ले रहा हू.

फिर मैने उनको कस्स कर पकड़ लिया.

भाभी: छ्चोढो मुझे. अब बहुत हुआ तुम मुझे छ्चोढो.

फिर मैने भाभी की सारी उपर की, और उनकी ब्लू कलर की पैंटी को निकाल दी, और फाटाक से अपना लंड भाभी की छूट में सेट कर दिया. भाभी सिसकियाँ लेती हुई बोली-

भाभी: ऊऊऊ सस्स्स्सस्स ऊवू इएर भाई सस्स्स्सस्स हह फक मे. और ज़ोर से देवर जी, और ज़ोर से.

मैं भाभी की ऐसी बात सुन कर फुल जोश में आ गया, और मैने अपना लंड भाभी की छूट में डीप में डाल दिया.

भाभी: रुक जाइए देवर जी, बस.

फिर मैं रुक गया. मुझे लगा की अब भाभी को बहुत दर्द हो रहा था, और भाभी मुझसे अलग हो गयी.

भाभी: कोई और दिन करते है. अभी मुझे काम करने दो, और मुझे दर्द हो रहा है प्लीज़.

फिर भाभी ने खाना बनाया, और हमने खा लिया. मैं खाना खा कर सो गया.

सुबह होने के बाद-

मैं सुबह उठा, तो मैने क्या देखा की भाभी मुझे उठाने आ रही थी. मुझे ऐसा फील हुआ की जैसे मेरी बीवी मुझे उठाने रही हो.

भाभी: चलो देवर जी, उठिए अब, सुबह हो गयी है.

मे (मॅन में): लगता है भाभी का दर्द शांत हो गया है, अब मज़ा आएगा.

मे: हा भाभी.

फिर मैने भाभी को लिप्स पे किस किया. थोड़ी देर के बाद डोरबेल बाजी, और भाभी ने दरवाज़ा खोला. दरवाज़े पर भैया थे. वो अपना काम ख़तम करके घर आ गये थे. फिर कुछ दीनो के बाद भैया के रूम के अंदर से आवाज़ आती है भाभी की. वो ज़ोर-ज़ोर से भैया पर चिल्ला रही थी.

कुछ सॉफ सुनाई नही दे रहा था, लेकिन मुझे पता चल गया की भाभी भैया से लड़ रही थी. फिर भाभी गुस्से में बाहर आई, और पानी का जुग लेकर अंदर चली गयी. मैने सोचा की भैया के लंड के वजह से भाभी गुस्सा हो गयी थी. मुझे पता था की भैया का बार-बार निकल जाता था.

मैने एक बार उन दोनो को सेक्स करते हुए देखा था. भैया जैसे ही भाभी को छोड़ना स्टार्ट करते थे, तुरंत ही वो अपना माल (स्पर्म) निकाल देते थे. इसलिए भाभी भी संतुष्ट नही हो पाती है. इसीलिए वो मेरे पास आती थी.

छुट्टी का दिन-

मैं सुबह उठा, और नहा धो कर छाई-नाश्ता करके लॅपटॉप पर बैठ गया, और भैया भी अपना काम करने लगे. इस बीच भाभी बोर हो रही थी, तो भैया ने कहा-

भैया: चलो कही बाहर मोविए देखने चलते है, और तोड़ा बाहर घूम के आते है.

भाभी का पिछली रात का गुस्सा उतरा नही था, और वो कटाक्ष में बोली-

भाभी: नही मुझे नही जाना. आप पहले अपना इलाज कारवओ.

मैं समझ गया भाभी किसकी बात कर रही थी. पर मैने अंजान बनते हुए कहा-

मे: क्या भाभी, कों सा इलाज?

भाभी: नही-नही कुछ नही. वो तो मैं मज़ाक कर रही थी.

फिर भाभी ने टेबल के ड्रॉयर में से ताढ़ के पत्ते निकाले.

भाभी: चलो ताश के पत्ते खेलते है.

मे: हा चलो-चलो खेलते है.

फिर भाभी ने सब को ताश के पत्ते बाँट लिए. हमने डू-टीन ग़मे खेली. लेकिन मैं और भैया बोर होने लगे.

फिर भैया ने कहा: चलो इस ग़मे में ट्रूथ ओर डरे आड करते है. जो भी हारेगा, वो ट्रूथ या डरे चूस करके उसको करना पड़ेगा.

भाभी: हा ठीक है, चलो न्यू ग़मे स्टार्ट करते है.

मे: हा चलो.

फिर ग़मे स्टार्ट हुई, और मैं पहली ही ग़मे हार गया.

भाभी: चलो देवर जी, ट्रूथ या डरे?

मैं सोच में पद गया, ट्रूथ या लू या डरे. मैने सोचा अगर ट्रूथ लूँगा, तो मुझसे कोई सच बुलवा देंगी भाभी. इसलिए मैं डरे ही लेता हू.

मे: डरे.

भाभी: चलो एक पैर पर खड़े हो जाओ.

मे: ठीक है.

फिर मैं एक पैर पर खड़े हो गया. थोड़ी देर के बाद भाभी ने कहा-

भाभी: चलो आ जाओ, नेक्स्ट ग़मे स्टार्ट करते है.

इस बार भाभी हार गयी.

भैया: बोल किंजल, ट्रूथ या डरे?

भाभी: ट्रूथ.

भैया: चल बता तेरा और ध्रुव का कोई सच?

मे (मॅन में): अर्रे बाप रे, ये भैया ने क्या कह दिया. (मैं भाभी को इशारा करते हुए) प्लीज़ भाभी कुछ बोलना नही.

भाभी: वो क्या है, आपके भाई मेरे साथ बहुत मस्ती करते है. बाकी तो कुछ है नही हमारे दोनो के बीच और सच.

भैया की फोन की घंटी बजती है. फिर भैया ने फोन उठाया और उन्होने कहा-

भैया: मुझे अभी फ़ौरन ही गाओं जाना पड़ेगा. वो जो हमने प्रॉपर्टी खरीदी है, गाओं में, उस पर किसी ने क़ब्ज़ा कर लिया है, और पापा को पीटा है. तो मैं जाता हू.

मे: रुकिये भैया, मैं भी आता हू. किसकी हिम्मत हुई मेरे पापा को मारने की.

भैया: नही रुक तू इधर ही रह. यहा घर और अपनी भाभी का ख़याल रख. मैं गाओं जेया कर आता हू.

फिर भैया तुरंत ही गाओं के लिए निकल गये, और इधर भाभी को टेन्षन होने लगी की क्या हुआ होगा पापा को, और भैया ने कहा था की भाभी का ध्यान रखो. फिर मैने भाभी को देखा टेन्षन में. तो भाभी का ध्यान बाँटने के लिए मैने उनका ध्यान ग़मे पर डाला.

मे: अर्रे भाभी, कुछ नही हुआ होगा? भैया गये है ना, टेन्षन मत लीजिए. चलिए भाभी ग़मे कंटिन्यू करते है.

भाभी: हा चलिए.

फिर हमने दोबारा पत्ते बाँटे. इस बार मैं जीटा. अब मेरे खुराफाती दिमाग़ में एक आइडिया आया, की मैं और भाभी घर में अकेले थे, तो क्यूँ ना भाभी को ग़मे के थ्रू छोड़ा जाए.

मे: चलो भाभी अब मैं जो काहु आपको करना पड़ेगा.

भाभी: आप जो कहेंगे मैं वही करूँगी.

मे: इसके बाद से सारी ग़मे में जो हारेगा वो अपने कपड़े उतारेगा एक-एक करके.

भाभी (मॅन में): लगता है देवर जी कुछ करना चाहते है आज मेरे साथ.

भाभी: ठीक है.

दूसरी ग़मे स्टार्ट होते हुए इस बार भाभी जीत गयी, और मैं हार गया. पर मैने कहा-

मे: बोलिए भाभी क्या करू?

भाभी अपनी आँखों से मेरे लंड की तरफ इशारा करती हुई.

अगली स्टोरी में जानिए कैसे मैने ग़मे के थ्रू भाभी की ग़मे बजाई.

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