ही फ्रेंड्स, मैं दीप्ति अपनी स्टोरी के नेक्स्ट पार्ट के साथ आप सब के सामने हाज़िर हू. जिन लोगों ने अभी तक पिछला पार्ट नही पढ़ा है, वो पहले पिछला पार्ट ज़रूर पढ़े. पिछला पार्ट पढ़ने के बाद आपको कहानी बेहतर समझ में आएगी.
पिछले पार्ट में आप सब ने पढ़ा, की दादा जी रात को मेरे कमरे में आ गये. फिर उन्होने मुझे नंगा करके मेरी छूट चूसी, और मेरा पानी निकाल दिया. उसके बाद उन्होने मेरा पानी पिया, और मूह पोंछ कर कमरे से बाहर निकल गये. मैं तक चुकी थी, और वैसे ही सो गयी. अब आयेज बढ़ते है.
सुबा जब मैं उठी, तो मुझे बड़ा अछा फील हो रहा था. हल्का-हल्का सा फील हो रहा था, जैसे शरीर का भार हल्का हुआ हो. फिर मैं बातरूम में गयी, और नहाने लगी. नहाते हुए मुझे रात का सीन याद आ गया, जब दादा जी ने मेरी छूट चूसी थी. अब मुझे कुछ भी ग़लत नही लग रहा था.
फिर मैं नहा कर रेडी हो गयी, और बाहर चली गयी. दादी, मम्मी, और टाई जी रसोई में नाश्ता तैयार कर रही थी. फिर मैं जाके नाश्ते की टेबल पर बैठ गयी. बाकी सब लोग भी आ गये, और हम सब ने मिल कर नाश्ता किया.
आज भी दादा जी मेरे सामने वाली कुर्सी पर ही बैठे थे. वो मुझे देख कर स्माइल पास कर रहे थे. आज मेरा भी दिल कर रहा था की मैं भी उनको देख कर स्माइल करू, लेकिन मैने नही की. तभी दादा जी बोले-
दादा जी: दीप्ति आज तुम मेरे साथ खेत चलना. मैं तुम्हे खेतों की ताज़ी हवा खिला के लाता हू.
उन्होने सब के सामने ये बोल दिया. अब मैं सब के सामने ना कैसे बोलती, तो मैने ‘जी दादा जी’ बोल दिया. मुझे अंदाज़ा था की दादा जी वाहा भी ज़रूर वही सब करेंगे मेरे साथ. लेकिन 2 बार के मज़े के बाद मेरा भी दिल था दोबारा अपनी छूट चुसवाने का.
फिर मैं रेडी हुई. मैने ब्लॅक कलर का सलवार सूट पहना था. उसमे मैं मस्त लग रही थी. मेरा सूट पूरी फिटिंग वाला था, जिसमे मेरा उपर का फिगर एक-दूं सॉफ नज़र आ रहा था. जब मैं दादा जी के सामने आई, तो वो मुझे उपर से नीचे देखने लगे.
फिर हम कार में बैठे, और खेतों की तरफ चल दिए. दादा जी गाड़ी चला रहे थे, और मैं उनके साथ वाली सीट पर बैठी थी. वो कुछ बोल नही रहे थे, लेकिन मेरी धड़कने हर पल बढ़ रही थी. 10 मिनिट की ड्राइव के बाद हम खेतों में पहुँच गये.
फिर हम उतरे, और दादा जी मुझे खेत घूमने लगे. काफ़ी बड़ी ज़मीन है हमारी, तो खेत डोर-डोर तक फैले हुए है. घूमते-घूमते हम काफ़ी डोर निकल आए. अब मुझे हमारी गाड़ी नज़र भी नही आ रही थी. दादा जी मेरे साथ ही थे.
फिर एक जगह आई, जहा गन्ने लगे हुए थे. दादा जी उसके अंदर जाने लगे, तो मैं भी उनके पीछे-पीछे चल दी. अंदर जाके एक खाली घेरा बना हुआ था, जहा पत्ते बिछे हुए थे. दादा जी वाहा जाके बैठ गये. फिर उन्होने मुझे भी बैठने को कहा.
मैं भी बैठ गयी. दादा जी के पास एक पोटली थी. उन्होने पोटली खोली, और उसमे से खाने के लिए टोस्ट निकाले. हम दोनो टोस्ट खाने लगे. टोस्ट खाने के बाद वो बोले-
दादा जी: दीप्ति तोड़ा मज़ा करे?
मैं: क्या मतलब दादा जी?
दादा जी: बेटा भोली मत बनो. 2 बार पानी निकालने के बाद दिल तो तुम्हारा भी कर रहा होगा.
मैं (नाटक करते हुए): नही ऐसा कुछ नही है.
फिर दादा जी मेरे पास आए, और उन्होने मुझे लिटा लिया. मैने उन्हे माना नही किया, और चुप-छाप लेट गयी. फिर उन्होने मेरा शर्ट उठाया, और सलवार का नाडा खोल कर सलवार उतार दी. मेरी छूट अभी से गीली होनी शुरू हो गयी थी. अब दादा जी पनटी के उपर से मेरी छूट सूंघने लगे.
फिर उन्होने पनटी निकली, और मेरी छूट को चाटने लगे. मेरी सिसकियाँ निकालने लगी, और मुझे मज़ा आने लगा. वो बड़े प्यार से मेरी छूट पर उपर से नीचे जीभ फेर रहे थे. मैं मस्त हो गयी थी, और गांद उठा-उठा कर छूट चुसवाने लगी.
फिर उन्होने मेरी टांगे खोल ली, और छूट को चूसना शुरू किया. बड़ा मज़ा आ रहा था. मेरा हाथ अपने आप ही उनके सर पर चला गया, और मैं उनके सर को छूट में दबाने लग गयी. फिर उन्होने मुझे घुटनो के बाल आने को कहा और घोड़ी बना लिया.
अब वो पीछे से मेरी छूट में मूह मारने लगे. बड़ा सुकून मिल रहा था मुझे. दादा जी छूट के साथ-साथ गांद के च्छेद को भी अपनी जीभ से सहलाने लगे. इससे मेरा मज़ा और बढ़ गया. मैं आहह आ करने लग गयी थी. लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ, जिसका मुझे अंदाज़ा नही हुआ.
मुझे अपनी छूट पर एक सख़्त चीज़ महसूस हुई, जो उपर से नीचे रग़ाद रही थी. मुझे लगा दादा जी उंगली रग़ाद रहे थे. जब मैने पीछे देखा, तो वो उंगली नही उनके 8 इंच के लंड का टोपा था. उनके लंड को देख कर मैं दर्र गयी. मुझे ज़रा भी अंदाज़ा नही था की दादा जी मुझे छोड़ने वाले थे.
इससे पहले मैं कुछ बोलती, और उनको माना करती, दादा जी ने ज़ोर से आयेज की तरफ धक्का मारा. उनका आधा लंड मेरी कुवारि छूट की सील तोड़ता हुआ आधा अंदर चला गया. मेरी ज़ोर की चीख निकली. बहुत दर्द हुआ मेरी छूट में. ऐसा लग रहा था, जैसे किसी ने लोहे ही रोड घुसा दी हो. मैं ज़ोर से बोली-
मैं: दादा जी नही. प्लीज़ निकालो इसको आह.
लेकिन वो कहा सुनने वाले थे. दादा जी ने मेरी जांघों से मुझे पकड़ा, और ज़ोर से धक्के मार-मार कर अपना पूरा लंड मेरी छूट में घुसा दिया. मेरी चीखें निकल रही थी, और आँखों से आँसू निकल आए थे. लेकिन हरंखोर दादा को तो मेरी ठुकाई करनी थी बस.
अब दादा जी मेरी छूट में लंड अंदर-बाहर कर रहे थे. साथ में वो मेरे बूब्स दबाने लग गये. धीरे-धीरे मेरा दर्द कम हुआ, और मुझे मज़ा आने लग गया. अब मेरी चीखें आहों में बदल गयी. दादा जी ने अपनी स्पीड बधाई, और मेरी गांद पर थप्पड़ मार कर मुझे छोड़ने लगे.
वो फुल स्पीड पर मेरी चुदाई कर रहे थे. कुछ ही देर में मैं झाड़ गयी, लेकिन वो नही रुके. 5 मिनिट बाद मैं फिरसे झाड़ गयी, लेकिन वो धक्के मारते रहे. लगातार 20 मिनिट उन्होने मेरी ठुकाई की, और फिर अपना माल मेरे अंदर ही निकाल दिया. फिर वो खड़े हुए, उन्होने अपने कपड़े पहने, और वाहा से जाने लगे.
जाते हुए वो बोले: मैं आयेज होके आता हू, तुम अपने आप को सवार लो तब तक.
अब मैं सीधी लेट गयी. नीचे देखा तो मेरी छूट खून से लाल हुई पड़ी थी, और उसमे से दादा जी का पानी बाहर आ रहा था.
इसके आयेज क्या हुआ, ये आपको अगले पार्ट में पता चलेगा. अगर आपको कहानी पढ़ कर मज़ा आया हो, तो इसको अपने दोस्तों के साथ भी शेर करे. मैं चाहती हू मेरी कहानी हर कोई पढ़े.