शीला की जवानी के मज़े लिए

गली में एक सफाई वाली आती है – शीला – “शीला की जवानी” इसी शीला की कहानी है जो मैं सुनाने जा रहा हूं।

शीला की उम्र होगी बीस या फिर बाईस साल – अट्ठारह की भी हो सकती है। शीला बड़ी कमसिन जवान और कड़क है।

कम से कम शीला सफाई वाली तो नहीं लगती – सफाई करती भी कहां है। घरों का कूड़ा कचरा तो वो रेहड़ी वाले उठाते हैं। शीला तो बस इधर उधर डोलती रहती है।

शीला निहायत ही खूबसूरत है। देखने से ही लगता है शीला पर जवानी जरा ज़्यादा ही मेहरबान है – मेहरबान तो है ही जरा जल्दी भी आ गयी है।

शीला का रंग हल्का लाली लिए गेहुंआ है। मम्मे 30, कमर 26, चूतड़ 32 – मतलब छरहरा शरीर। नैन नक्श बेहद तीखे – किसी मद्रासी फ़िल्मी हीरोइन की तरह। ज्योति के बराबर ही लम्बी होगी। पांच फुट साढ़े आठ इंच – या आधा इंच कम ज़्यादा।

जैसे “पहली नजर” में मेरा मन मकान मालकिन ज्योति को चोदने का होने लगा था, ऐसे ही “पहली नजर” में मेरा मन शीला को चोदने का होने लगा।

क्या करूं मैं अपनी इस “पहली नजर” का?

मेरी मकान मालकिन ज्योति को शीला बड़ी अच्छी लगती है।

शीला पूरे मुहल्ले की आम ख़ास सभी खबरें ज्योति को देती। वैसे भी औरतों को दूसरों के घरों की चटपटी खबरें जांनने में खासी दिलचस्पी रहती है।

ज्योति अपने महंगे कपड़े शीला को दे देती है क्योकि ज्योति कोइ कपड़ा बहुत देर तक नहीं पहनती। ज्योति के ब्रांडेड कपड़े शीला पर फिट भी आते हैं और फबते भी बहुत हैं।

मुहल्ले की पूरी खोज खबर शीला को रहती है। छुट्टी वाले दिन शीला का ज्यादा समय – ज्योति के घर पर ही गुजरता है। छोटे मोटे इधर उधर के घर के काम – ज्योति की मालिश, फ्रिज की सफाई – ये सब शीला इतवार वाले दिन करती है I इतवार को शीला सुबह ऊपर ज्योति के घर आ जाती है फिर शाम को ही सीढ़ियां उतरती है।

शीला अब मुझसे भी गपशप करने लगी है।

गली के लोग बताते हैं कि शीला चुदाई की शौक़ीन है मगर चुदाई के लिए हर किसी को घास नहीं डालती।

मेरा तो खुद उसे चोदने का मन करता है – मगर कैसे और कहां ? मान लो वो पट भी गयी तो चुदाई कहां होगी – ये समस्या है। घर में तो चुदाई हो नहीं सकती, होटल में ही लेजानी पड़ेगी। तैयार हो जाएगी होटल में चुदाई के लिए ?

फिर मैंने सोचा, “ये सब भी देखा जाएगा – पहले सेक्सी शीला पटे तो सही”।

शीला हर वक़्त खुश रहने वाली – बातूनी लड़की है। कभी भी कुछ भी बोल देने वाली – मुंहफट है। पता नहीं कब क्या बोल दे। बात करते वक़्त गली में किसी का भी लिहाज नहीं करती – ज्योति को छोड़ कर।

शीला की इसी आदत के कारण गली की औरतें शीला से कन्नी काटती हैं

अभी इसी दिवाली की बात है। पड़ोस का ग्यारह साल का बंटू दिन में बोतल में रख हवाई – रॉकेट – चला रहा था। जैसे ही रॉकेट की बत्ती में आग लगाने लगा तो उधर से शीला आ गयी। बोली, “बंटू ध्यान से …. कहीं हवाई तेरी निक्कर में घुस गयी तो लुल्ली उड़ा देगी।

बंटू बेचारा परेशान। बंटू की मां जोर से शीला को बोली, ”क्या बोलती जा रही है शीला”। शीला और बंटू का पापा दोनों हंस रहे थे। मैं भी वहीं था – मेरी भी हंसी छूट गयी।

गली के सारे मर्द शीला से खुश रहते हैं। खुश क्या रहते हैं आंखों की आगे शीला का नंगा शरीर घूमता होगा – तनी हुई चूचियां, मस्त चूतड़, और छोटी छोटी रेशमी झांटों से ढंकी चूत।

शीला की जवानी है ही ऐसी।

मर्द हमेशा शीला के साथ गप्पें मारने के बहाने ढूढ़ते हैं – शीला भी उन्हें मायूस नहीं करती। ऐसे मर्दों की बीवियां इसी परेशानी में रहती हैं की कहीं उनके मर्दों का शीला के साथ कोइ चक्कर ही ना चल जाए।

जितना मुहल्ले के मर्द उससे खुश रहते हैं, उतनी ही औरतों की उससे गांड फटती है। कारण वही – उसका मुंहफट होना।

अभी पिछले हफ्ते मुहल्ले में सब्जी वाले के ठेले पर औरतें इक्क्ठी थी – सब्ज़ी तो ले ही रहीं थी गप्पें भी मार रहीं थी। औरतों की गप्पों में अपनी बीमारियों का और दूसरों की बुराईयों का ढिंढोरा पीटना आम है।

105 नंबर वाली सरला बड़े खुफिया अंदाज़ में ठेले के आस पास खड़ी औरतों से बोली – जैसे बड़े राज की बात बता रही हो। “अरे तुम्हें पता है वो 113 नंबर मकान वाली रिंकू – वो मेरे देवर रमेश पर लाइन मारती है। शादी शुदा है, पर शर्म नहीं आती”।

शीला भी वहीं खड़ी थी। एकदम से बोली, “अरे सरला भाभी ये क्या कह रही हैं आप ? उस दिन तो रिंकू भाभी शशि आंटी को बोल रही थी की रमेश भैया लौंडे बाज हैं”।

सब चुप्प। सब्जी वाला तो दूसरी तरफ ही देखने लग गया। सरला सब्जी लेना ही भूल गयी। बाकी औरतें मुंह में चुन्नी – साड़ी का पल्लू डाल कर फिस्स…. फिस्स…. फिस्स…. कर हंसने लगी।

एक दिन साथ वाली उषा का पति अशोक सुबह देर से उठा। बाल बिखरे हुए, शकल के बारह बजे हुए थे। अपनी पत्नी उषा को ढूंढता ढूंढता मुंह धोये बिना और बिखरे बालों के साथ ही बाहर आ गया। बाहर आते ही शीला से सामना हो गया।

सात आठ औरतों का झुण्ड सुबह सुबह मंदिर से लौट रहा था। झुण्ड में उषा भी थी। औरतों के सामने ही शीला बोल पडी, “अरे अशोक भइया क्या हुआ ? उषा भाभी ने ज्यादा बैंड बजा दिया क्या ? लगता है पूरी रात को सोने नहीं दिया “?

बेचारे अशोक की नजर झुण्ड में उषा पर पडी और अंदर भाग गया – सीधा बाथरूम में ।

उषा ने शीला को गुस्से से बोला, “शर्म आती है कि नहीं तुझे शीला, सोच समझ कर बोला कर”।

पर शीला तो शीला ही है। पलट कर बोली, “मुझ पर क्यों गुस्सा कर रही हो भाभी। किसी से भी पूछ लो, अशोक भैया ऐसे नहीं लग रहे थे जैसे पूरी रात जाग कर काम करते रहे हों ? अब ये बताओ आप, रात को घरों मियां बीवी के बीच में तो एक ही काम होता है”। शुक्र है शीला ने ये नहीं कह दिया, “रात मियां बीवी के बीच चुदाई ही तो होती है, और क्या होता है “।

फिर शीला ने औरतों की तरफ देख कर आगे आगे वाली से पुछा, “आप ही बताओ रेनू भाभी क्या मैं कुछ गलत कह रही हूं “?

अब रेनू क्या बोलती – ये बोलती हां एक ही काम होता है या ये बोलती नहीं एक ही काम नहीं होता”।

वाह री शीला

एक इतवार को सुबह दस मैं बाहर कुर्सी पर बैठा अखबार पढ़ रहा था कि शीला आ गयी। ज्योति का ही दिया गुलाबी सूट पहना हुआ था। मेरी और शीला की नजर मिली तो मेरा मन मचल गया और मैंने शीला को गंदा सा इशारा करते हुए एक आंख दबा दी।

शीला एकदम ही हंसते हुए बोल पड़ी, “क्या हुआ अजीत भैया, आंख में कुछ पड़ गया क्या? निकाल दूं”? ये तो शुक्र है वहां कोइ था नहीं। मैंने भी दुबारा आंख आंख दबा दी और बोला, “आजा निकाल दे”।

शीला फिर से कतिल हंसी हंसी और ऊपर सीढ़ियां चढ़ गयी।

मैंने भी सोचा “हंसी समझो फंसी”।

मैं बता ही चुका हूं इतवार को शीला ज्योति के घर ही टाइम गुजारती थी। छोटे मोटे काम कर देती थी और गली की सारी खबरें ज्योति को देती थी। शीला ने मेरी उसको आंख मारने वाली बात भी ज्योति को बता दी।

शाम को ज्योति मिली तो हंसते हुए बोली, “जीते तेरी बड़ी शिकायतें आ रहीं हैं”।

मैंने भी हंसते हुए ही पूछा,”क्या हुआ भरजाई”?

ज्योति बोली, “शीला कह रही थी तू उस पर लाइन मारता है। क्या बात है मन आ रहा क्या लड़की पर”?

मैंने भी ढिठाई से कहा, “आ तो रहा है भरजाई, वो है ही ऐसी। और फिर तुम्हारे वाले गुलाबी सूट में तो और भी गजब की लग रही थी “।

ज्योति बोली, “बात करवा दूं तेरी “?

मैंने भी बात आगे बढ़ाई,” बात करवाने से क्या होगा भरजाई”?

ज्योति बोली “क्यों ? बात करने से ही बात आगे बढ़ेगी”।

मैंने भी ढिठाई और बेशर्म होते हुए कहा, “बात बढ़ भी गयी तो क्या होगा भरजाई, जगह भी तो होनी चाहिए “।

“जगह भी तो होनी चाहिए”। अब ज्योति इतनी भी पागल नहीं थी कि इस बात का मतलब ना समझ सके कि मैं शीला की चुदाई की बात कर रहा था।

ज्योति हंस कर बोली, “अच्छा तो ये बात है “?

मैं और ज्योति इशारों इशारों में – ढकी छुपी भाषा में बात कर रहे थे।

अचानक ज्योति मेरी और देख बड़े सेक्सी अंदाज में बोली, “अच्छा जीते ये बता शीला पर ही मन आया या तेरा किसी और पर भी आया है”?

ये कहते हुए ज्योति ने अपने उभरे हुए मम्मों पर दुपट्टा ठीक किया।

औरतों को जब मर्दों को जब चुदाई की बात समझानी होती है तो या वो अपने मम्मों पर दुपट्टा ठीक करती हैं, या चूत में से साड़ी या सलवार निकालती हैं। इस बात से कोइ फरक नहीं पड़ता की साड़ी या सलवार चूत में घुसी हुई भी है या नहीं।

मैंने भी सोचा क्या ज्योति अपनी बात कर रही है ? मैंने बस इतना ही कहा “क्या भरजाई आप भी”!!!

ये कहते हुए मैंने अपने खड़े होते हुए लंड को खुजलाया। ज्योति ने मुझे लंड खुजलाते हुए देखा – हंसी और चली गयी।

मैंने सोचा “एक और हंसी – “हंसी समझो फंसी”।

आने वाले शनिवार को ज्योति के पति अमित ने दस बारह दिन के लिए कम्पनी की काम से बाहर जाना था।

उससे अगले दिन ही इतवार के दिन ज्योति का जन्म दिन था।

मैं रात का खाना या तो बाहर से खा कर आता हूं या ऑर्डर करके मंगवा लेता हूं I उस दिन भी मैंने ऑर्डर कर के मंगवा लिया था। खाना आ चुका था।

अभी सात ही बजे थी – मैंने भी सोचा इतनी जल्दी खाना खा कर क्या करना है, मैंने विस्की का पेग बनाया और टीवी लगा कर बैठ गया।

अभी एक पेग खत्म करके दूसरा पेग डाला ही था कि ज्योति आ गयी और दरवाजे पर ही खड़ी हो कर बोली – “जीते, ऊपर आ जा केक कट करना है “।

मैंने पूछा, “केक ? आज क्या है भरजाई “?

ज्योति हंस बोली, “मेरा जन्मदिन है। श्रेया पीछे पड़ गयी केक काटना है। आजा”। ज्योति ने बुलाया तो किसी को नहीं, बस केक ले आयी और अपनी बेटी श्रेया के साथ ही केक काट कर जन्मदिन मना लिया।

फिर विस्की के गिलास की तरफ देख कर बोली, ये भी ऊपर ही ले आ। कोइ नहीं हैं, बस हम तीनों ही हैं “।

मैंने भी विस्की का भरा गिलास उठाया और पूंछ हिलाता ज्योति के पीछे पीछे ऊपर चला गय।

डाइनिंग टेबल पर केक रक्खा था। श्रेया वहीं बैठी थी। मैंने विस्की के गिलास में से बड़ा सा घूंट लिया और गिलास एक तरफ रख दिया। एक बड़ा पेग मैं लगा चुका था। दुसरे पेग ने दिमाग हल्का कर दिया था। डेढ़ पेग पीने के बाद तो ज्योति और भी सुन्दर लग रही थी – मस्त – सेक्सी – चोदने का मन हो रहा था।

केक पर श्रेया ने मोमबत्तियां जलाई और ज्योति ने मोम बत्तीयां बुझा दी। हम तीनो ने तालियां बजा कर ज्योति को “हैप्पी बर्थडे” बोला।

सब से पहले श्रेया ने ज्योति को केक खिलाया और फिर ज्योति ने श्रेया को। ज्योति ने बड़ा सा केक का बड़ा सा टुकड़ा प्लेट में रख कर श्रेया को दे दिया।

बच्चे तो केक के शौक़ीन होते ही हैं। श्रेया प्लेट ले कर अपने कमरे में भाग गयी – टीवी पर कार्टून देखने।

ज्योति ने फिर एक टुकड़ा मुझे खिलाया – बड़े ही प्यार के साथ।

फिर मैंने केक का टुकड़ा ज्योति के मुंह में डाला। ज्योति ने मेरा हाथ पकड़ लिया। ज्योति ने केक खा लिया मगर मेरा हाथ नहीं छोड़ा।

अचानक ज्योति ने मेरी उंगली मुंह में ले ली और चूसने लगी – जैसे लड़कियां लंड चूसती हैं जोर जोर से I ज्योति उंगली के सिरे पर जुबान लगा रही थी, जैसे उंगली ना हो लंड ही हो। ज्योति उंगली चूसती ही जा रही थी और मेरा लंड हरकत में आ रहा था।

मैं समझ गया कि ज्योति का मुझसे मुझ से चुदाई का मन है। डायन के सात घर छोड़ने वाली कहावत तो मुझे अब फिजूल लगने लगी। यहां तो ज्योति चूत खोल कर लेटने लगी थी।

मैंने मन ही मन सोचा, “लंगोट के कच्चे अजीत, अब क्या करेगा तू ”?

ज्योति के साथ चुदाई के ख्याल से खड़े होते लंड को मैंने पेण्ट के अंदर इधर उधर हिला कर ठीक किया।

ज्योति मुझे पेण्ट के अंदर लंड ठीक करते देख रही थी लेकिन उसने उंगली चूसना बंद नहीं किया।

मैंने कह ही दिया, “भरजाई मेरा खड़ा होने लगा है”। “लंड” शब्द मैंने नहीं बोला – ज्योति के लिए अंदाजा लगाने के लिए छोड़ दिया।

ज्योति ने एक मिनट उंगली कर चूसी फिर मेरे हाथ का चुम्मा ले कर मेरा हाथ छोड़ दिया और पूछा, ” क्या खड़ा हो रहा है ? कौन खड़ा होने लगा है “?

अब लुकी छुपी बात करने का कोइ फायदा नहीं था। मैंने पेण्ट के ऊपर से खड़े लंड को पकड़ा और बोला, “ये – ये खड़ा होने लगा है”। फिर मैंने ज्योति की चूचियां सहलाईं और चूत पर हाथ फेरते हुए बोला, “भरजाई लगता है लगता है इसको ढूंढ रहा है”।

ज्योति बोली, “क्या कर रहा है अजीत, श्रेया जाग रही है”। और फिर मेरे करीब आ कर धीरे से बोली, “श्रेया अभी सो जाएगी। मैं तुझे मिस काल मारूंगी I तू पीछे की सीढ़ियों से आ जा” और मेरे लंड की तरफ इशारा करके बोली, “इसका इलाज करती हूं मैं आज”।

मुझे तो अपनी किस्मत पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। मैंने गिलास उठाया और ज्योति की चूचियां एक बार और दबाई और हुए नीचे उतर आया। कपडे बदले – कुर्ता पायजामा पहन लिय। ना नीचे अंडरवेयर ना बनियान। तीसरा पेग बना कर सामने रख लिया मगर पीने की जल्दी नहीं की। मोबाइल मैंने सामने रख लिया।

अब मुझे ज्योति की मिस काल आ इंतज़ार था। चालीस मिनट के मुश्किल इंतज़ार के बाद मोबाइल की घंटी बजी और बंद हो गयी।

देखा तो ज्योति की मिस्ड कॉल थी। लंड को एक झटका लगा और लंड एकदम पूरा खड़ा हो गया।